भारत के किसान चुका रहे हैं महंगाई में गिरावट की कीमत
मंडियों में टमाटर, प्याज़ और आलू लागत मूल्य से नीचे बिक रहे हैं। खाद्य तेलों के दाम एक साल पहले की तुलना में करीब 25 प्रतिशत कम हैं।
भारत में रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंची खुदरा महंगाई दर (CPI) भले ही उपभोक्ताओं के लिए राहत लेकर आई हो, लेकिन किसानों के लिए यह संकट का कारण बन गई है। अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मात्र 0.25 प्रतिशत बढ़ा जो 2012 के बाद से सबसे धीमी वृद्धि है। देशभर की मंडियों में खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जिससे किसानों की आमदनी घट गई है, भले ही फसल उत्पादन अच्छा रहा हो।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अनुसार, खाद्य महंगाई दर अक्टूबर में घटकर माइनस 5.02 प्रतिशत पर आ गई, जो सितंबर में माइनस 2.33 प्रतिशत थी। यह गिरावट एक दशक से भी अधिक समय में सबसे तीव्र है। सब्ज़ियों, अनाज, दालों, फलों और खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट की वजह अधिक पैदावार, बेहतर आपूर्ति श्रृंखला और वैश्विक दामों में नरमी को बताया गया है। सरल शब्दों में कहें तो किसानों की सफलता ही अब उनके खिलाफ काम कर रही है।
ग्रामीण महंगाई दर भी माइनस 0.25 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 0.88 प्रतिशत रही। सितंबर में ग्रामीण महंगाई 1.07 प्रतिशत थी। यह अंतर दर्शाता है कि जहां शहरी उपभोक्ता सस्ते खाद्य पदार्थों का लाभ उठा रहे हैं, वहीं ग्रामीण अर्थव्यवस्था मंदी जैसी स्थिति से गुजर रही है। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कीमतों में औसतन दो प्रतिशत तक की गिरावट आई है।
मंडियों में टमाटर, प्याज़ और आलू लागत मूल्य से नीचे बिक रहे हैं। खाद्य तेलों के दाम एक साल पहले की तुलना में करीब 25 प्रतिशत कम हैं। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया, “किसानों को उत्पादन लागत से कम दाम मिल रहे हैं। सब्ज़ियों के दाम 20 प्रतिशत से ज्यादा गिर चुके हैं, जबकि दालों और अनाज पर भी दबाव है। यह स्थिति स्वस्थ नहीं कही जा सकती।”
छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह समय बेहद कठिन है। डीजल और उर्वरक जैसी इनपुट लागतें ऊंची बनी हुई हैं, जबकि ग्रामीण मजदूरी ठहरी हुई है। परिणामस्वरूप कई किसान अच्छी पैदावार के बावजूद कर्ज़ में डूब रहे हैं। अर्थशास्त्री इसे भारतीय कृषि की “पुरानी विडंबना” बताते हैं — हर बार बंपर फसल आने पर कीमतें गिर जाती हैं।
दिल्ली स्थित एक कृषि विशेषज्ञ ने कहा, “यह दक्षता की कहानी नहीं, बल्कि छिपे हुए संकट की कहानी है। जब किसान ज़्यादा उत्पादन करते हैं, तो उन्हें कम दाम मिलते हैं। हमारे पास पर्याप्त भंडारण, प्रसंस्करण और मूल्य समर्थन की व्यवस्था नहीं है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य कीमतों में लंबी अवधि तक गिरावट रहने से ग्रामीण मांग पर असर पड़ सकता है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि का एक प्रमुख इंजन है। महंगाई में यह कमी जहां नीति-निर्माताओं के लिए राहत है और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को दिसंबर में दरों में कटौती की गुंजाइश दे सकती है, वहीं यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कमजोर स्थिति को भी उजागर करती है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के अनुसार, कई इलाकों में मंडी भाव अनाज और दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे चले गए हैं। उन्होंने कहा, “सांख्यिकीय आंकड़े अच्छे दिख रहे हैं, लेकिन इसके पीछे ग्रामीण संकट बढ़ रहा है।” उनका अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में औसत महंगाई लगभग 2.5 प्रतिशत रहेगी और मार्च 2026 तक यह 4 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मौजूदा स्थिति की विडंबना यह है कि महंगाई नियंत्रण में आने का कारण नीति-सफलता नहीं, बल्कि किसानों की घटी हुई आय है। जब तक खरीद व्यवस्था मज़बूत नहीं होती और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिलता, तब तक यह मंदी का दौर ग्रामीण संकट को और गहरा कर सकता है — भले ही उपभोक्ता थालियों में सस्ता भोजन देखकर संतुष्ट हों।

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