मौजूदा खाद्य प्रणाली से हर साल 15 लाख करोड़ डॉलर के बराबर नुकसान, इसमें बदलाव जरूरीः रिपोर्ट

हमारी खाद्य प्रणाली, यानी जिस तरह से हम खाद्य पदार्थ उपजाते हैं, उनकी मार्केटिंग करते हैं तथा उन्हें खाते हैं, ने एक तरफ हमारी खाद्य ज़रूरतें पूरी की हैं तो दूसरी तरफ निरंतर अल्प पोषण, मोटापा, जैव विविधता और पर्यावरण को नुकसान तथा जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं भी पैदा की हैं। इन समस्याओं को अगर मूल्य में देखा जाए तो यह लगभग 15 लाख करोड़ डॉलर सालाना के आसपास होता है। हमारी खाद्य प्रणाली वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जो योगदान करती है, यह उससे कहीं अधिक है।

मौजूदा खाद्य प्रणाली से हर साल 15 लाख करोड़ डॉलर के बराबर नुकसान, इसमें बदलाव जरूरीः रिपोर्ट

हमारी खाद्य प्रणाली, यानी जिस तरह से हम खाद्य पदार्थ उपजाते हैं, उनकी मार्केटिंग करते हैं तथा उन्हें खाते हैं, ने एक तरफ हमारी खाद्य ज़रूरतें पूरी की हैं तो दूसरी तरफ निरंतर अल्प पोषण, मोटापा, जैव विविधता और पर्यावरण को नुकसान तथा जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं भी पैदा की हैं। इन समस्याओं को अगर मूल्य में देखा जाए तो यह लगभग 15 लाख करोड़ डॉलर सालाना के आसपास होता है। हमारी खाद्य प्रणाली वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जो योगदान करती है, यह उससे कहीं अधिक है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारी खाद्य प्रणाली जितना वैल्यू क्रिएट करती है, उससे कहीं अधिक का नुकसान करती है। फूड सिस्टम इकोनॉमिक्स डॉट ओआरजी (foodsystemeconomics.org) ने ‘द इकोनॉमिक्स ऑफ द फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन’ नाम से जारी रिपोर्ट में यह बात कही है।
इसमें कहा गया है कि अगर इस समस्या की अनदेखी की गई तो इसके नकारात्मक प्रभाव अत्यंत भीषण होंगे। इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन जैसी नीतिगत चर्चाओं में खाद्य प्रणाली की लंबे समय से अनदेखी की जाती रही है। इसमें बदलाव से पूरी दुनिया को फायदा होगा। अगर हम अपनी खाद्य प्रणाली में बदलाव करते हैं तो इससे होने वाला लाभ प्रतिवर्ष 5 से 10 लाख करोड़ डॉलर का होगा। यह हमारी वैश्विक जीडीपी के चार से आठ प्रतिशत के बराबर होगा। खाद्य प्रणाली में बदलाव से यह भी सुनिश्चित हो सकेगा कि इस सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री से नीचे रहे।
रिपोर्ट के अनुसार 1970 के दशक से अब तक विश्व की आबादी दोगुनी हो चुकी है और हमारी खाद्य प्रणाली इनकी खाद्य जरूरतें पूरी कर रही है। लेकिन लोगों को तथा धरती को इस खाद्य प्रणाली का जो नुकसान है, वह सालाना 15 लाख करोड़ डॉलर के आसपास है। यह वर्ष 2020 में दुनिया की जीडीपी के 12% के बराबर है।
फूड सिस्टम इकोनॉमिक्स कमीशन के अनुसार सबसे अधिक 11 लाख करोड़ डॉलर का नुकसान स्वास्थ्य पर होता है। खाद्य प्रणाली के सेहत पर प्रभाव का आकलन श्रम उत्पादकता में कमी से किया गया है। यह कमी डायबिटीज, हाइपरटेंशन और कैंसर जैसे गैर संक्रामक रोगों के कारण हो रही है जिसके लिए हमारी खाद्य प्रणाली जिम्मेदार है। इसके अलावा दुनिया में करीब 77 करोड़ लोग मोटापे की बीमारी से ग्रस्त हैं।
पर्यावरण को होने वाला नुकसान तीन लाख करोड़ डॉलर सालाना के आसपास है। हमारी खाद्य प्रणाली वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एक तिहाई के लिए जिम्मेदार है। इसमें जंगलों की कटाई से होने वाला उत्सर्जन भी शामिल है। प्रतिवर्ष 60 लाख हेक्टेयर प्राकृतिक जंगल खत्म हो रहे हैं। पर्यावरण को नुकसान में जैव विविधता को नुकसान तथा सरप्लस नाइट्रोजन से होने वाला नुकसान भी शामिल है, जो पानी में पहुंचता है और हवा को प्रदूषित करता है।
रिपोर्ट के अनुसार अगर सभी देश पर्यावरण उत्सर्जन घटाने के राष्ट्रीय लक्ष्यों (एनडीसी) का पालन करें तब भी हमारी खाद्य प्रणाली से होने वाला नुकसान पूरी तरह बंद नहीं होगा। अगर मौजूदा ट्रेंड जारी रहा तो वर्ष 2050 तक वैश्विक उत्सर्जन में खाद्य प्रणाली का एक तिहाई योगदान बना रहेगा। ऐसा होने पर औद्योगिक युग की शुरुआत से पहले की तुलना में इस सदी के अंत तक वातावरण का तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा।

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