खेती में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने, किसानों की आय बढ़ाने को नज इंस्टीट्यूट ने तैयार की एग्री-इकिगई आधारित रूपरेखा

खेती में जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए एग्री-इकिगई के तहत 13 प्रमुख कार्य बिंदुओं की पहचान की गई है। इनमें धान की सीधी बुवाई, बीजों का उपचार, फसल चक्र आदि शामिल हैं। इकिगई एक जापानी तकनीक है जिसमें उन चीजों को करना बताया जाता है जिससे खुशी, मकसद और योगदान की भावना आती है।

खेती में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने, किसानों की आय बढ़ाने को नज इंस्टीट्यूट ने तैयार की एग्री-इकिगई आधारित रूपरेखा

खेती में जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने और किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए एग्री-इकिगई के तहत 13 प्रमुख कार्य बिंदुओं की पहचान की गई है। इनमें धान की सीधी बुवाई, बीजों का उपचार, फसल चक्र आदि शामिल हैं। इकिगई एक जापानी तकनीक है जिसमें उन चीजों को करना बताया जाता है जिससे खुशी, मकसद और योगदान की भावना आती है।

द नज इंस्टीट्यूट ने सभी हितधारकों - किसानों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण को फायदा पहुंचाने के मकसद से भारत में कृषि के लिए इकिगई पर आधारित एक रूपरेखा तैयार की है। 70 से अधिक संगठनों से बात करने के बाद, जिसमें निजी कंपनियां और सिविल सोसायटी  शामिल हैं, एग्री-इकिगई की रिपोर्ट में 13 प्रमुख कार्य बिंदु सामने आए हैं। किसानों को अधिक आय और उपभोक्ताओं को बेहतर भोजन प्राप्त करने में मदद करते हुए जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों को कम करने के लिए इन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

इन 13 कार्य बिंदुओं में धान की सीधी बुवाई, बीजों का उपचार, जैव-उत्तेजक, बड़े खेत वाले तालाब (गैर-प्लास्टिक), एकीकृत कीट प्रबंधन, फसल चक्र और शून्य जुताई शामिल हैं। ट्रांसफॉर्मिंग एग्रीकल्चर फॉर स्मॉलहोल्डर फार्मर्स (टीएएसएफ) कार्यक्रम द्वारा तैयार की गई संस्थान की इस रिपोर्ट का लक्ष्य "वित्तीय और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ तरीके से" एक करोड़ छोटे किसानों की आमदनी को दोगुना करना और आमदनी के उतार-चढ़ाव को कम करना है। इस अवधारणा को हितधारकों तक पहुंचा कर जाकर नए हस्तक्षेप कारोबार मॉडल की पहचान और विकास करने की संस्थान की इच्छा है।

द नज इंस्टीट्यूट में कृषि प्रैक्टिस का नेतृत्व करने वाले रवि त्रिवेदी कहते हैं, "देश के कुल किसानों में छोटे किसानों की हिस्सेदारी 27 फीसदी हैं और वे 25 फीसदी कृषि योग्य भूमि पर खेती करते हैं। उन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इस सूची में गैर-वैज्ञानिक प्रथाओं का इस्तेमाल, इनपुट और 'श्रम की ज्यादा लागत और अच्छी बाजार पहुंच की कमी शामिल है।''

रिपोर्ट में बताए गए कार्य बिंदुओं का परीक्षण करने के लिए संस्थान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कुछ पायलट परीक्षण कर रहा है। उन्होंने कहा, "हम धान की सीधी बुवाई (डीएसआर) के लाभों का अध्ययन करने के लिए लगभग 300 किसानों के साथ काम कर रहे हैं और अध्ययन के अंत में एक रिपोर्ट पेश करेंगे।" डीएसआर धान रोपाई का एक वैकल्पिक तरीका है जिसमें कम पानी का इस्तेमाल होता है और फसल चक्र कम होता है क्योंकि इसमें धान के पौध उगाने की आवश्यकता नहीं होती है। खरपतवार के उचित नियंत्रण से यह उत्सर्जन को काफी कम कर सकता है और श्रम की कमी को दूर कर सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि "मीथेन उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले गैसों में से एक है। डीएसआर इन उत्सर्जन में कमी लाता है। साथ ही डीएसआर 25 फीसदी तक पानी बचाता है क्योंकि धान की बुवाई के लिए खेतों में बाढ़ वाली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके अलावा यह 27 फीसदी तक ऊर्जा (डीजल की खपत) बचा सकता है क्योंकि इसमें खेत की तैयारी, पौध तैयार करने और खेत में लबालब पानी की आवश्यकता नहीं होती है।''

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