सिविल सोसायटी की चेतावनी- India UK CETA से निर्यात लाभ मामूली, कमजोर होगा विकास का एजेंडा
ब्रिटेन के साथ भारत के नए व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (CETA) की सिविल सोसायटी समूहों ने आलोचना की है। उनकी यह आलोचना खास तौर से स्वास्थ्य, डिजिटल डेटा और सार्वजनिक खरीद से संबंधित महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नीतियों से समझौता करने के लिए है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस समझौते के तहत निर्यात लाभ मामूली होंगे। यह समझौता भारत के विकास एजेंडे, रेगुलेटरी स्वायत्तता और दीर्घकालिक व्यापारिक स्थिति को कमजोर करने की कीमत पर है।

India-UK Agreement: भारत और यूनाइटेड किंगडम ने 24 जुलाई 2025 को व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (CETA) पर हस्ताक्षर किए। दोनों सरकारों ने इस समझौते को द्विपक्षीय व्यापार के लिए मील का पत्थर बताया। हालांकि फोरम फॉर ट्रेड जस्टिस के तहत 100 से ज़्यादा सिविल सोसायटी संगठनों और व्यापार शोधकर्ताओं ने इस समझौते के निहितार्थों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। आलोचकों का कहना है कि एक संतुलित व्यापार समझौता होने के बजाय, CETA भारत की पिछली मुक्त व्यापार प्रतिबद्धताओं में एक बड़ा बदलाव है। यह समझौता जन कल्याण, राष्ट्रीय डेटा संप्रभुता और समावेशी आर्थिक विकास की रक्षा करने की देश की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार, सबसे परेशान करने वाले पहलुओं में से एक यह है कि CETA कैसे WTO के TRIPS समझौते के तहत हासिल लचीलेपन को कमज़ोर करता है। यह समझौता दवाओं के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग की तुलना में स्वैच्छिक लाइसेंसिंग को प्राथमिकता देता है। यह कदम 2001 के दोहा घोषणापत्र को कमजोर करता है, जिसमें कॉरपोरेट पेटेंट अधिकारों की तुलना में जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी गई थी। पेटेंट पारदर्शिता को कम करने और विकसित देशों के पेटेंट मानदंडों के साथ सामंजस्य को प्रोत्साहित करने के कारण इस समझौते से भारत के लिए सस्ती दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना कठिन होगा। इससे लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। यह नागरिकों के स्वास्थ्य के संवैधानिक अधिकार का भी उल्लंघन होगा।
चौंकाने वाले आत्मसमर्पण
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व प्रोफेसर बिस्वजीत धर ने कहा, "यह समझौता बहुपक्षीय मंचों पर हमारी स्थिति और उन सिद्धांतों को कमज़ोर करता है जिनका भारत कभी वैश्विक मंचों पर समर्थन करता था।" उन्होंने बताया कि CETA में स्वैच्छिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की बात कही गई है। यह विश्व व्यापार संगठन और संयुक्त राष्ट्र जलवायु मंचों पर अनिवार्य टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के भारत के आह्वान को भी कमज़ोर करता है।
सीईटीए भारत की डिजिटल आर्थिक नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी प्रस्तुत करता है। इसमें प्रावधान है कि भारत आयातित सॉफ़्टवेयर के सोर्स कोड के एक्सेस की मांग नहीं कर सकता। यह कोड साइबर रेगुलेशन, कानून के प्रवर्तन और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है। इससे वंचित रहना भारत के नियामक अधिकार को सीमित करता है। आईटी फॉर चेंज की साधना संजय ने कहा, "यह डिजिटल संप्रभुता का एक चौंकाने वाला आत्मसमर्पण है।" उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह क्लॉज केवल बड़े पैमाने पर बाजार में उपलब्ध सॉफ़्टवेयर पर लागू नहीं होता, बल्कि सभी डिजिटल आयात को कवर करता है। इससे अनियंत्रित एआई विकास और डेटा दुरुपयोग पर गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं।
भारत ने सरकारी संस्थानों के पास रखे डेटा तक 'इच्छुक हितधारकों' के लिए पहुंच खोलने पर सहमति व्यक्त की है। इसमें उस डेटा के रिप्रोडक्शन या व्यावसायिक उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं है। डिजिटल सोसायटी के शोधकर्ता परमिंदर जीत सिंह ने कहा, "यह हमारी डेटा संप्रभुता का एक असाधारण समर्पण है। डेटा केवल एक संसाधन नहीं, यह राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक प्रतिस्पर्धा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।"
सरकारी खरीद में यूके की भागीदारी
भारत की सरकारी खरीद नीतियों के लिए भी यह समझौता चिंताजनक है। स्वतंत्र व्यापार विशेषज्ञ प्रो. अभिजीत दास ने कहा, "केंद्र सरकार का खरीद बाजार एमएसएमई की मदद करने का एक प्रमुख माध्यम है। यह अब यूके की भागीदारी के लिए खुला है।" मेक इन इंडिया के तहत भी, ब्रिटिश आपूर्तिकर्ताओं को अब घरेलू श्रेणी 2 आपूर्तिकर्ताओं के समान सुविधाएं मिलेंगी। यह भारत की आत्मनिर्भरता पहल को कमज़ोर करता है और साथ ही पारस्परिक पहुंच भी कम प्रदान करता है। क्योंकि इंग्लैंड की विदेशी खरीद ऐतिहासिक रूप से सालाना 10 अरब पौंड से कम रही है।
ब्रिटेन की अनसुलझी गैर-टैरिफ बाधाएं
भारत ने कुछ महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्रों की रक्षा की है, लेकिन ऑटोमोबाइल और व्हिस्की जैसे उद्योगों में टैरिफ में उल्लेखनीय कटौती से घरेलू निर्माताओं को नुकसान होने की आशंका है। उदाहरण के लिए, पहले वर्ष में कार टैरिफ 110% से घटकर 30% हो जाएगा तथा समय के साथ और कम होगा। व्हिस्की पर टैरिफ शुरुआत में 150% से घटकर 75% और एक दशक के भीतर 40% हो जाएगा। इससे दोनों सेक्टर में नौकरियों और विकास को खतरा है। इंग्लैंड में टैरिफ खत्म होने से निर्यात वृद्धि के अनुमानों के बावजूद, रंजा सेनगुप्ता जैसे व्यापार विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि ब्रिटिश भौगोलिक संकेतक (GI) और कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट (CBA) टैक्स जैसी अनसुलझी गैर-टैरिफ बाधाओं से भारत के लाभ कम होंगे।
भारत ने सेवा क्षेत्र में भी भारी रियायतें दी हैं। हालांकि वित्तीय सेवाओं का उदारीकरण वर्तमान स्तरों पर ही अटका हुआ है। इसका अर्थ है कि भारत भविष्य में, राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बावजूद, कड़े नियम लागू नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त, बहुप्रचारित दोहरा अंशदान संधि (Double Contributions Convention), जिससे ब्रिटेन में भारतीय कामगारों को लाभ होने की उम्मीद थी, अब भी बातचीत के दौर में है। इसके लाभ को लेकर केवल अटकलें ही हैं।
समझौते से किसे ज़्यादा फायदा
शायद CETA का सबसे बड़ा दोष इसकी विषमता है। ब्रिटेन के व्यवसाय और व्यापार विभाग के अनुसार, भारत को 2040 तक वार्षिक निर्यात में मामूली 3.7 अरब पौंड की वृद्धि का अनुमान है, जो उसके वर्तमान निर्यात का केवल 0.44% है। जबकि ब्रिटेन को लगभग 1.5 गुना अधिक लाभ होने की उम्मीद है। इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के पूर्व प्रोफेसर दिनेश अबरोल ने कहा, "इन मामूली लाभों के लिए, भारत ने अपनी नीतियों गुंजाइश से बहुत अधिक समझौता कर लिया है।"
बातचीत प्रक्रिया में पारदर्शिता और सार्वजनिक परामर्श का भी अभाव है। ब्रिटिश संसद तो अपने सीआरएजी अधिनियम (CRaG Act) के तहत इस समझौते की जांच करेगी, लेकिन भारत की ओर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है। स्वतंत्र कानूनी विशेषज्ञ शालिनी भूटानी ने कहा, "एक संसदीय लोकतंत्र में, इतने बड़े व्यापार समझौतों पर बहस होनी ही चाहिए।"
फोरम फॉर ट्रेड जस्टिस ने चेतावनी दी है कि सीईटीए भारत की भविष्य की व्यापार वार्ताओं के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करता है। यूरोपीय संघ पहले से ही इसी तरह की रियायतों पर नजर गड़ाए हुए है। विश्लेषकों को यह भी चिंता है कि यह समझौता अमेरिका के साथ वार्ता में भारत की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।