कपास की फसल पर मौसम व कीटों की मार, किसानों को खरीद मानकों में राहत की मांग
देश में असामान्य बारिश, जलभराव तथा कीट-रोगों के हमले से कपास की गुणवत्ता प्रभावित, खरीद मानकों के अनुरूप कपास उत्पादन हुआ मुश्किल, किसानों को FAQ मानकों में छूट देने की मांग

भारी बारिश, बाढ़ और कीट व रोगों के हमलों से कपास की फसल काफी प्रभावित हुई है। कॉटन पर जीरो आयात शुल्क के चलते घरेलू किसानों पर पहले ही औने-पौने दामों में कपास बेचने का संकट मंडरा रहा है। ऐसे में अगर नए सीजन की कपास भारतीय कपास निगम (CCI) द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों (FAQ) पर खरी न उतरी, तो किसानों की आजीविका पर संकट खड़ा हो जाएगा। क्योंकि उनकी उपज एमएसपी पर नहीं बिक पाएगी। इसलिए किसानों को कपास खरीद के गुणवत्ता मानकों से छूट देने की मांग की जा रही है।
जोधपुर स्थित साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर (SABC) ने केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह को पत्र लिखकर भारतीय कपास निगम (CCI) द्वारा कपास खरीद के लिए निर्धारित गुणवत्ता मानकों (FAQ) में तत्काल राहत प्रदान करने का अनुरोध किया है। इस पत्र की प्रतिलिपि देवेश चतुर्वेदी, सचिव (DA&FW), डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (DARE) तथा डॉ. आर.एस. परोदा, अध्यक्ष (TAAS) को भी भेजी गई है।
वस्त्र मंत्रालय ने 2025-26 सीजन के लिए कपास का एमएसपी मध्यम रेशा कपास के लिए 7,710 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे रेशे वाली कपास के लिए 8,110 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। आदेश के अनुसार, कपास की खरीद फेयर एवरेज क्वालिटी (FAQ) मानकों पर आधारित होगी। इसका अर्थ है कि कपास में निर्धारित रेशा लंबाई, ताकत, माइक्रोनेयर वैल्यू और नमी की सीमा को पूरा करना अनिवार्य होगा। यदि उपज इन मानकों से कमतर पाई जाती है, तो कटौती की जाएगी।
कपास पर संकट
- अत्यधिक नमी: लगातार वर्षा व जलभराव से कपास की नमी 12% से अधिक हो सकती है
- गुणवत्ता में गिरावट: रंग (discolouration), मजबूती (strength), ग्रेड और बीज गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर
- रेशा परिपक्वता: जलभराव से रेशों का परिपक्वन बाधित, जिससे माइक्रोनेयर वैल्यू पर असर
- संदूषण: अधखुले टिंडे (locules) के कारण चुगाई कठिन और संदूषण की संभावना अधिक
किसानों पर संभावित असर
साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी सेंटर के संस्थापक निदेशक डॉ. भागीरथ चौधरी ने कहा, “भारत सरकार द्वारा कच्चे कपास (raw cotton) पर आयात शुल्क हटाने से अंतरराष्ट्रीय कपास भारतीय बाजार में सस्ते दामों पर उपलब्ध होगा। इससे घरेलू किसानों की स्थिति और चुनौतीपूर्ण हो जाएगी क्योंकि उन्हें अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यदि चालू सीजन में CCI द्वारा FAQ मानकों में आवश्यक छूट नहीं दी गई, तो छोटे और सीमांत किसान गंभीर नुकसान झेलेंगे और उनकी आय व आजीविका पर गहरा संकट खड़ा हो जाएगा।”
भारत सरकार के पूर्व कृषि आयुक्त और SABC के अध्यक्ष डॉ. सी.डी. मायी ने कहा, “जलवायु परिवर्तन के कारण कपास में कीट व रोग की स्थिति लगातार बदल रही है। रस चूसक कीट, बॉल रॉट और पिंक बॉलवर्म जैसी गंभीर समस्याएं न केवल उत्पादन घटा रही हैं, बल्कि रेशों और बीज की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर डाल रही हैं। ऐसे हालात में अनधिकृत HtBt कपास संकर बीजों का तेजी से प्रसार हो रहा है। आयातित कपास के सामने देशी कपास टिक नहीं पा रहा है, जिसके कारण किसान कपास उत्पादन से पीछे हट रहे हैं। इसका सीधा असर है कि देश कपास उत्पादन में पिछड़ रहा है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए नीति-निर्माताओं को त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है।”
किसानों को राहत के उपाय
SABC ने वस्त्र मंत्रालय और कृषि मंत्रालय से आग्रह किया है कि किसानों की राहत हेतु CCI को FAQ मानकों में छूट के आधार पर कपास खरीद के निर्देश दिए जाएं।
- CCI किसानों की कपास एमएसपी पर खरीदे, चाहे गुणवत्ता में गिरावट हो
- नमी की स्वीकार्य सीमा 8% से बढ़ाकर 15% की जाए
- रंग और contamination आधारित ग्रेडिंग में ढील दी जाए
- फाइबर स्ट्रेंथ, माइक्रोनेयर वैल्यू और बीज गुणवत्ता जैसे तकनीकी मानकों में व्यावहारिक छूट दी जाए
- किसानों को अपनी पूरी उपज CCI को बेचने की अनुमति दी जाए और मात्रा पर कोई प्रतिबंध न हो
खरीफ 2025-26 में कपास की स्थिति
मध्य कपास क्षेत्र (विशेषकर महाराष्ट्र के नांदेड़ और वाशीम तथा गुजरात के तटीय इलाकों को छोड़कर) की स्थिति सामान्य से थोड़ी बेहतर है।
उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान) और दक्षिण भारत (विशेषकर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना) में असामान्य एवं निरंतर वर्षा से व्यापक स्तर पर जलभराव की स्थिति बनी।
कपास की गुणवत्ता (रंग, ग्रेड, फाइबर स्ट्रेंथ) प्रभावित हुई।
बॉल रॉट, रूट रॉट और पिंक बॉलवर्म के आक्रमण ने उत्पादन और गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डाला।
FAQ मानकों के अनुरूप कपास का उत्पादन किसानों के लिए कठिन हो गया है।