कपास का भाव दो साल के निचले स्तर पर, उत्पादन घटने के बावजूद क्यों नहीं बढ़ रहे दाम, ये है वजह

पिंक बॉलवर्म के भयानक प्रकोप की वजह से इस साल उत्तर भारत के प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्रों, खासकर राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। इससे उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। इसके बावजूद कपास का भाव दो साल के निचले स्तर पर पहुंच चुका है। उत्तर भारत की ज्यादातर कृषि उपज मंडियों में इन दिनों कपास का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रहा है।

कपास का भाव दो साल के निचले स्तर पर, उत्पादन घटने के बावजूद क्यों नहीं बढ़ रहे दाम, ये है वजह

पिंक बॉलवर्म के भयानक प्रकोप की वजह से इस साल उत्तर भारत के प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्रों, खासकर राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में कपास की फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। इससे उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। इसके बावजूद कपास का भाव दो साल के निचले स्तर पर पहुंच चुका है। उत्तर भारत की ज्यादातर कृषि उपज मंडियों में इन दिनों कपास का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रहा है। इसे लेकर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने और पंजाब में कपास की खरीद एमएसपी पर करने का अनुरोध किया है।  

पंजाब में फिलहाल कपास का भाव 4700-6600 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। वहीं राजस्थान में औसतन 6200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव है। जबकि सबसे बड़े कपास उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की मंडियों में भाव एमएसपी से ऊपर चल रहा है। 2022 और 2021 के सीजन में किसानों को कपास का भाव 12,000-13,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिला था। केंद्र सरकार ने चालू सीजन के लिए लंबे रेशे वाले कपास का एमएसपी 7020 रुपये प्रति क्विंटल और मध्यम रेशे वाले का एमएमपी 6620 रुपये क्विंटल तय किया है।

नाम नहीं छापने की शर्त पर कपास उद्योग के एक सूत्र ने रूरल वॉयस को बताया कि उत्पादन घटने के बावजूद घरेलू बाजार में कीमतें नहीं बढ़ने के पीछे सबसे बड़ी वजह गुणवत्ता है। पिंक बॉलवर्म की वजह से न सिर्फ उत्पादन घटा है, बल्कि कपास के रेशे की गुणवत्ता भी काफी प्रभावित हुई है। उद्योग के सूत्रों का कहना है कि इस साल जैसी खराब गुणवत्ता पिछले 25-30 सालों में देखने को नहीं मिली है। इस वजह से विदेशों से ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। चीन, बांग्लादेश जैसे देश जिन्हें हम कपास का ज्यादा निर्यात करते थे, वे गुणवत्ता को देखते हुए ऑर्डर नहीं दे रहे हैं।

कपास की कीमतें अंतरराष्ट्रीय भाव से तय होती है। सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका, ब्राजील, तुर्की और ग्रीस जैसे प्रमुख कपास उत्पादक देशों में इस बार फसल अच्छी है और उनकी गुणवत्ता भी बेहतर है। जो आयातक पहले भारत से आयात करते थे, वे अब दूसरे देशों का रुख कर रहे हैं। गुणवत्ता की वजह से ही घरेलू खरीदारों (कपड़ा उद्योग) की ओर से भी मांग कम निकल रही है। घरेलू खरीदार महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कपास का इंतजार कर रहे हैं। वहां अभी कटाई नहीं हुई है और वहां इस साल पिंक बॉलवर्म का प्रकोप भी नहीं है।

राजस्थान के कपास किसानों के हितों के लिए काम करने वाले जोधपुर स्थित साउथ एशिया बायोटेक्नोलॉजी के संस्थापक भगीरथ चौधरी ने रूरल वॉयस को बताया,  “कपास उत्पादन को लेकर इस साल संकट की स्थिति है। एक तरफ उत्पादन 20 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने का अनुमान है, दूसरी तरफ किसानों को वाजिब कीमत भी नहीं मिल रही है। पिछले दो-तीन महीने से कपास के भाव एमएसपी से नीचे चल रहे हैं, जबकि आमतौर पर इसका भाव एमएसपी से ऊपर ही रहता है। इस बार उत्पादन अगर 290 लाख गांठ तक भी पहुंच जाए तो बहुत बड़ी बात होगी।”

कपास उद्योग के संगठन कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) ने 2023-24 में 295 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान लगाया है, जो पिछले साल के उत्पादन से करीब 7.5 फीसदी कम है। 2022-23 में करीब 319 लाख गांठ कपास का उत्पादन देश में हुआ था। सीएआई ने उत्तर भारत में इस साल 43 लाख गांठ (एक गांठ में 170 किलो) उत्पादन का अनुमान लगाया है। उत्तरी क्षेत्र में राजस्थान, हरियाणा और पंजाब आते हैं। मध्य क्षेत्र में 179.60 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान है, जो पिछले सीजन के 194.62 लाख गांठ से कम है। मध्य क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश हैं। वहीं दक्षिण भारत में उत्पादन 74.85 लाख गांठ से घटकर 67.50 लाख गांठ रहने का अनुमान सीएआई ने लगाया है।

भगीरथ चौधरी के मुताबिक, बाजार में कपास के कम भाव को देखते हुए सीसीआई (कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) को हस्तक्षेप करना चाहिए और पूरे देश में बड़े पैमाने पर एमएसपी पर कपास की खरीद करनी चाहिए। इस साल न सिर्फ पिंक बॉलवर्म का असर पड़ा है, बल्कि मौसम ने भी काफी नुकसान पहुंचाया है। साथ ही, इस साल कपास खेती की लागत भी ज्यादा रही। भाव नहीं मिलने से किसानों पर चौतरफा मार पड़ी है। उनका कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-हमास संघर्ष के चलते अंतरराष्ट्रीय सेंटीमेंट प्रभावित हुआ है और कपड़ा उद्योग की मांग में कमी आई है। आपूर्ति बाधित होने और मांग घटने के कारण कीमतों पर असर पड़ा है। इसे सुधारने के लिए केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए और देशों के स्तर पर द्विपक्षीय बातचीत के जरिये इसका समाधान निकालना चाहिए। पारंपरिक देशों के अलावा भारत को अन्य निर्यात बाजार भी तलाशने की जरूरत है।  

शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भी कपास को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा है कि उन्हें किसानों से शिकायतें मिली हैं कि भारतीय कपास निगम (सीसीआई) ने पंजाब में एमएसपी घटा दिया है और बहुत कम मात्रा में कपास खरीदा जा रहा है। सीसीआई गुणवत्ता के नाम पर एमएसपी में 150 रुपये की कटौती कर रहा है। साथ ही, सीसीआई थोड़ी-थोड़ी मात्रा में फसल खरीद रही है। इससे किसान निजी व्यापारियों को फसल बेचने के लिए मजबूर हैं। निजी व्यापारी 5000-5200 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर फसल खरीद रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में खरीदी गई लगभग 3.5 लाख क्विंटल कपास में से सीसीआई ने केवल एक लाख क्विंटल खरीदी है।

उन्होंने प्रधानमंत्री से कपास की खरीद सुनिश्चित करने के लिए सीसीआई को आवश्यक निर्देश देने का आग्रह करते हुए कहा कि किसानों को एमएसपी दिया जाना चाहिए। जिन्होंने अपनी फसल एमएसपी से कम पर सीसीआई को बेची, उन्हें बकाया भुगतान किया जाना चाहिए।

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