बासमती पर 1200 डॉलर प्रति टन का एमईपी जारी रखने का फैसला, निर्यातकों ने की बासमती धान की खरीद बंद

घरेलू बाजार में चावल की कीमतों को नियंत्रित रखने के मकसद से सरकार ने बासमती चावल के निर्यात पर 1200 डॉलर प्रति टन की न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) की शर्त को जारी रखने का फैसला किया है। वहीं बासमती उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में निर्यातकों ने बासमती धान की खरीद बंद कर दी है। जिसके चलते इसकी कीमतों में बड़ी गिरावट की स्थिति पैदा हो सकती है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय द्वारा 14 अक्तूबर को जारी ऑफिस मेमोरेंडम में कहा गया है कि बासमती चावल के निर्यात पर 1200 डॉलर प्रति टन का एमईपी 15 अक्तूबर के बाद भी जारी रहेगा। वहीं निर्यातकों को उम्मीद थी कि सरकार 15 अक्तूबर के बाद एमईपी को 850 डॉलर प्रति टन के आसपास ला सकती है और उसके चलते बातमती की 1509 व दूसरी जल्दी आने वाली प्रजातियों के किसानों को 3600 से 3800 रुपये प्रति क्विंटल तक की कीमत मिली। पिछले कुछ दिनों में बासमती धान की कीमत घटकर 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई है

बासमती पर 1200 डॉलर प्रति टन का एमईपी जारी रखने का फैसला, निर्यातकों ने की बासमती धान की खरीद बंद

घरेलू बाजार में चावल की कीमतों को नियंत्रित रखने के मकसद से सरकार ने बासमती चावल के निर्यात पर 1200 डॉलर प्रति टन की न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) की शर्त को जारी रखने का फैसला किया है। वहीं बासमती उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में निर्यातकों ने बासमती धान की खरीद बंद कर दी है। जिसके चलते इसकी कीमतों में बड़ी गिरावट की स्थिति पैदा हो सकती है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय द्वारा 14 अक्तूबर को जारी ऑफिस मेमोरेंडम में कहा गया है कि बासमती चावल के निर्यात पर 1200 डॉलर प्रति टन का एमईपी 15 अक्तूबर के बाद भी जारी रहेगा। वहीं निर्यातकों को उम्मीद थी कि सरकार 15 अक्तूबर के बाद एमईपी को 850 डॉलर प्रति टन के आसपास ला सकती है और उसके चलते बातमती की 1509 व दूसरी जल्दी आने वाली प्रजातियों के किसानों को 3600 से 3800 रुपये प्रति क्विंटल तक की कीमत मिली। पिछले कुछ दिनों में बासमती धान की कीमत घटकर 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई है। निर्यातकों का कहना है कि अगर सरकार द्वारा 1200 डॉलर प्रति टन का एमईपी जारी रखने के फैसले में बदलाव नहीं होता है तो बासमती धान की कीमत में 500 रुपये प्रति क्विंटल तक की और कमी आ सकती है। बासमती की 1121 किस्म और पारंपरिक बासमती की किस्म उगाने वाले किसानों को कीमतों में गिरावट के चलते भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन (एआईआरईए) के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने रूरल वॉयस को बताया कि अभी तक केवल 30 फीसदी बासमती धान बाजार में आया है और 70 फीसदी फसल का बाजार में आना बाकी है। ऐसे में सरकार 1200 डॉलर प्रति टन की एमईपी जारी रखने के फैसले से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। निर्यातकों ने फिलहाल सभी बासमती उत्पादक राज्यों में बासमती धान की खरीद रोक दी है। अगर सरकार अपना फैसला बदलती है तो हम इसे शुरू कर सकते हैं।

पिछले साल देश से करीब 48 हजार करोड़ रुपये का 45 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया गया था।

केंद्र सरकार ने अगस्त में कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात संवर्धन अथारिटी (एपीडा) को निर्देश दिया था कि बासमती चावल के  निर्यात के लिए रजिस्ट्रेशन एवं अलोकेशन सर्टिफिकेट जारी करने के लिए 1200 डॉलर प्रति टन की शर्त पर अमल करे। इस मुद्दे पर निर्यातकों ने सरकार के साथ बैठक की जिसके बाद एक समिति का गठन किया गया जिसे इस फैसले पर अक्तूबर में रिपोर्ट देने के लिए कहा गया। इस समिति ने बासमती उत्पादक राज्यों में संबंधित पक्षकारों के साथ बैठकें की। निर्यातकों को उम्मीद थी कि सरकार एमईपी में कटौती करेगी। विजय सेतिया ने बताया कि इस समिति ने 7 राज्यों में बैठकें कर अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी थी। निर्यातकों से संगठन की भी वाणिज्य मंत्री के साथ बैठक हुई थी। हमें आश्वासन दिया गया था कि एमईपी में बदलाव किया जाएगा और उसके 850 डॉलर प्रति टन होने की उम्मीद में निर्यातकों ने 3600 रुपये से 3800 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर बासमती धान खऱीदा। लेकिन अभी 70 फीसदी फसल बाजार में आना बाकी है। सरकार द्वारा फैसले में देरी के चलते बासमती धान की कीमत घटकर 3500 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गई है। वहीं अगर सरकार फैसला नहीं बदलती है तो इसमें 500 रुपये प्रति क्विंटल तक की और गिरावट आ सकती है।

उनका कहना है कि भारत का करीब 80 फीसदी बासमती चावल मध्य पूर्व के देशों में जाता है। वहां बिरयानी में इस्तेमाल होने वाला पारबॉयल्ड बासमती जाता है। पिछले तीन साल में इसकी कीमत का औसत 2020-21 में 850 डॉलर, 2021-22 में 894 डॉलर और 2022-23 में 1054 डॉलर प्रति टन रहा है। ऐसे में सरकार के इस कदम से हमारा 80 फीसदी निर्यात प्रभावित हो रहा है क्योंकि हम 1200 डॉलर की कीमत पर इसे निर्यात करने की स्थिति में नहीं है।

सेतिया कहते हैं कि हमने सेटेलाइट इमेजिंग के जरिये फसल का जो अनुमान लगाया है उसमें इस साल पाकिस्तान की फसल पिछले साल के दोगुना है। सरकार के इस फैसले ने वैसे ही पाकिस्तान को दो माह का खुला विंडो दे दिया जिसका वह फायदा उठाएगा। जबकि हम निर्यात करने की स्थिति में ही नहीं हैं। उनका कहना है कि बासमती की 1121 किस्म का कुछ चावल जो स्टीम्ड राइस के रूप में इस्तेमाल होता है वह 1200 डॉलर पर निर्यात हो सकता है लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम है।

सरकार द्वारा एमईपी तय करने के फार्मूले पर उनका कहना है कि सीजन के अंत में पुराना चावल जाता है जिसके लिए दाम अधिक मिलता है। अभी भी दो साल पुराना चावल 1600 डॉलर तक कीमत पर जा सकता है वहीं छोटे पैकेट में दाम इससे भी अधिक है। लेकिन यह सीमित मात्रा है। इसे एमईपी का आधार नहीं बनाया जा सकता है।

अभी बासमती की सबसे अधिक उत्पादन वाली किस्म 1121 और पारंपरिक बासमती की फसल बाजार में आनी है। ऐसे में इनके उत्पादक किसानों को कीमतों में गिरावट की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

निर्यातकों का कहना है कि वैश्विक बाजार में भारत का बड़ा प्रतिस्पर्धी पाकिस्तान 900 डॉलर प्रति टन की कीमत के आसपास बासमती का निर्यात कर रहा है। ऐसे में भारत के लिए 1200 डॉलर या उसके उपर की कीमत पर बासमती का निर्यात करना मुश्किल हो जाएगा। पिछले वित्त वर्ष (2022-23) में देश से चावल का कुल निर्यात 223 लाख टन तक पहुंच गया था। जिसमें 45 लाख टन बासमती और बाकी मात्रा गैर बासमती चावल की थी। चावल के वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी तक पहुंच गई थी। लेकिन घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ने के चलते सरकार ने गैर बासमती व्हाइट राइस के निर्यात पर रोक लगा दी थी। जिसका करीब 100 लाख टन का निर्यात हुआ था। वहीं इसके बाद पारबॉयल्ड चावल (सेला चावल) के निर्यात पर 20 फीसदी का निर्यात शुल्क लगा दिया था। इस शुल्क की अवधि को भी अब 31 मार्च, 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

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