भारत में आलू प्रोसेसर्स एसोसिएशन की आवश्यकता क्यों

भारत हर साल 6 करोड़ टन से ज्यादा आलू का उत्पादन करता है, जो चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। फिर भी प्रसंस्करण के मामले में - खासकर दो प्रमुख उत्पादों, क्रिस्प्स (स्नैक चिप्स) और फ्रेंच फ्राइज (फ्रोजन आलू) - भारत अब भी अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन कर रहा है। गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में आलू प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित हो रहे हैं, लेकिन इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण तत्व का अभाव है: एकजुट आवाज।

भारत में आलू प्रोसेसर्स एसोसिएशन की आवश्यकता क्यों

आज किसी भी सुपरमार्केट में चले जाएं, अनेक कहानियां आपके सामने तैरने लगेंगी। चमकदार पैकेटों में हॉट चिप्स से लेकर ठंडे आइल में रखे फ्रोजन फ्राइज तक, आलू अब सिर्फ किसानों का मुख्य भोजन नहीं रह गया है - यह भारत में सबसे तेजी से बढ़ते स्नैक और फ्रोजन फूड क्रांति की रीढ़ है।

भारत हर साल 6 करोड़ टन से ज्यादा आलू का उत्पादन करता है, जो चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। फिर भी प्रसंस्करण के मामले में - खासकर दो प्रमुख उत्पादों, क्रिस्प्स (स्नैक चिप्स) और फ्रेंच फ्राइज (फ्रोजन आलू) - भारत अब भी अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन कर रहा है। गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में आलू प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित हो रहे हैं, लेकिन इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण तत्व का अभाव है: एकजुट आवाज।

यूरोप में एक यूरोपीय आलू प्रसंस्करणकर्ता एसोसिएशन (EUPPA) है। वर्ष 1968 से इसने पूरे महाद्वीप में गुणवत्ता, सुरक्षा, सस्टेनेबिलिटी और निर्यात के मानक स्थापित किए हैं। अमेरिका में आलू एसोसिएशन (PAA) है, जो प्रसंस्करणकर्ताओं को सार्वजनिक अनुसंधान संस्थानों से जोड़ता है। दूसरी ओर, भारत में प्रसंस्करणकर्ताओं, किसानों और नीति निर्माताओं के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए ऐसा कोई निकाय नहीं है। अब भारतीय आलू प्रसंस्करणकर्ता एसोसिएशन (PPAI) गठित करने का समय आ गया है।

एक भारतीय एसोसिएशन की परिकल्पना

1. नीतिगत शक्ति
भारत के आलू प्रसंस्करणकर्ता राज्य-स्तरीय नियमों के चक्रव्यूह में काम करते हैं। इनमें खरीद प्रतिबंधों और असमान बायबैक मॉडल से लेकर भंडारण और कोल्ड चेन से जुड़े असंगत मानदंड तक शामिल हैं। इस स्थिति के कारण प्रसंस्करणकर्ताओं के लिए असमान स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि किसानों को कीमतों और बाजार पहुंच को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है।
एक राष्ट्रीय एसोसिएशन प्रसंस्करणकर्ताओं को पॉलिसी कॉरीडोर में एक विश्वसनीय आवाज प्रदान करेगी। यह निम्न कार्य कर सकती है:
• किसान-प्रसंस्करणकर्ता बायबैक व्यवस्था के लिए एक समान ढांचे की वकालत करना, यह सुनिश्चित करना कि किसान और प्रसंस्करणकर्ता दोनों सुरक्षित रहें।
• प्रसंस्करण-अनुकूल प्रोत्साहनों पर जोर देना, जिसमें कोल्ड स्टोरेज के लिए सब्सिडी और निर्यातोन्मुख संयंत्रों के लिए कर लाभ शामिल हैं।
• यह सुनिश्चित करना कि आलू प्रसंस्करण को डेयरी, चावल और अन्य रणनीतिक खाद्य क्षेत्रों के साथ सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल किया जाए।
स्पष्ट, निष्पक्ष और स्थिर नीतियों के साथ भारत अपने विशाल आलू उत्पादन को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी प्रसंस्कृत खाद्य क्षेत्र में बदल सकता है।

2. प्रमाणित बीज और GAP मानक
विश्वस्तरीय फ्राइज और क्रिस्प का रास्ता मिट्टी से शुरू होता है। आज प्रसंस्करणकर्ता असंगत बीज गुणवत्ता और वैरिएबल कृषि पद्धतियों से जूझ रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप आलू के कंद असमान होते हैं, निर्यात की खेपें अस्वीकृत होती हैं और फ्राई सुनहरे की जगह जले-से दिखने लगते हैं।

एक PPAI निम्न कार्य कर सकता है:
• राष्ट्रीय बीज प्रमाणन प्रणाली को बढ़ावा देना, जो रोग-मुक्त, वैराइटी-विशिष्ट बीजों (फ्राइज के लिए सैन्टाना और इनोवेटर, क्रिस्प के लिए लेडी रोसेटा, और अन्य उच्च-प्रदर्शन वाले क्लोन) तक पहुंच सुनिश्चित करे।
• सिंचाई, मृदा स्वास्थ्य, कीटनाशक अवशेषों की सीमा और फसल प्रबंधन को शामिल करते हुए अच्छी कृषि पद्धतियों (GAP) को लागू करना।
• GAP-अनुपालक खेतों का एक समूह बनाए, जो प्रमाणित और ऑडिट के लिए तैयार हों, और घरेलू संयंत्रों तथा निर्यात श्रृंखलाओं दोनों को पोषण प्रदान करें।
बीज और खेत स्तर पर मानक निर्धारित करके भारत एकरूपता, ट्रेसेबिलिटी और विश्वसनीयता प्रदान करेगा - जो वैश्विक खरीदारों की मांग के अनुरूप होगा।

3. गुणवत्ता सर्वोपरि
सभी आलू एक जैसे नहीं होते। फ्राइज को सुनहरे और कुरकुरेपन के लिए लंबे, उच्च-शुष्क पदार्थ वाले कंदों की आवश्यकता होती है। कुरकुरे के लिए कम चीनी वाले कंद चाहिए। थोड़ा सा भी असंतुलन जलने के निशान जैसे धब्बे या एक्रिलामाइड का जोखिम पैदा कर सकता है।
अभी मानकों के अभाव के कारण प्रसंस्करणकर्ताओं को असमान आपूर्ति का सामना करना पड़ता है। निर्यातकों के सामने भी कंसाइनमेंट अस्वीकृत किए जाने का जोखिम रहता है। 

एक PPAI यह कर सकता है:
• प्रोसेसिंग-ग्रेन आलू के लिए देशव्यापी मानक स्थापित करे।
• शुष्क पदार्थ, शर्करा का स्तर और अवशेषों की जांच के लिए मान्यताप्राप्त प्रयोगशालाएं स्थापित करे।
• घरेलू और वैश्विक बाजारों के लिए विश्वास के प्रतीक के रूप में ‘भारत के प्रसंस्कृत आलू’ की मुहर लगाए।
प्रसंस्करण में गुणवत्ता वैकल्पिक नहीं - यह अस्तित्व का मसला है।

4. अनुसंधान और नवाचार
हर उत्तम फ्राई या चिप्स के पीछे वर्षों का विज्ञान छिपा होता है। गर्मी सहन करने वाली किस्मों के प्रजनन से लेकर तेल बचाने वाले फ्रायर तक, इनोवेशन वस्तुओं को विश्वस्तरीय उत्पादों से अलग करता है। लेकिन भारत में अनुसंधान अब भी बिखरा हुआ है।

इसके लिए वैश्विक मॉडल देखे जा सकते हैं। अमेरिका में पोटैटो एसोसिएशन (PAA) दर्शाती है कि कैसे प्रसंस्करणकर्ता सीधे सार्वजनिक अनुसंधान का समर्थन कर सकते हैं। प्रसंस्करणकर्ता वैरायटी संबंधी कार्यक्रमों का सह-वित्तपोषण करते हैं, व्यावसायिक परिस्थितियों में क्लोन का सत्यापन करते हैं, और प्रयोगशाला से बाजार तक स्थानांतरण में तेजी लाते हैं। भारत भी इसे दोहरा सकता है। 

PPAI के माध्यम से प्रसंस्करणकर्ता ये कार्य कर सकते हैंः
• भविष्य के लिए तैयार किस्म के विकास के लिए सह-वित्तपोषण हेतु केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (CPRI) और उसके क्षेत्रीय केंद्रों के साथ साझेदारी कर सकते हैं।
• संयुक्त परीक्षण प्लेटफॉर्म बनाएं जहां प्रसंस्करण परिस्थितियों में CPRI किस्मों का सत्यापन किया जा सके।
• भंडारण, खाद्य प्रौद्योगिकी और कृषि विज्ञान में उद्योग फेलोशिप और अनुसंधान पीठों की शुरुआत करें।
• विज्ञान को प्रसंस्करणकर्ताओं से सीधे जोड़ने के लिए गुजरात, पंजाब और उत्तर प्रदेश में नवाचार केंद्र स्थापित करें।
सीपीआरआई की वैज्ञानिक क्षमता को उद्योग की बाजारोन्मुखता के साथ जोड़कर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि अनुसंधान प्रतिस्पर्धी वैश्विक उत्पादों में तब्दील हो।

5. कोल्ड चेन और मशीनीकरण
भारत अपनी आलू की फसल का 20% तक हार्वेस्टिंग के बाद खो देता है। इससे लाभप्रदता कम हो जाती है। प्रसंस्करणकर्ताओं के लिए इसका अर्थ है अस्थिर आपूर्ति, अधिक लागत और निर्यात की संभावनाओं का चूकना।

एक पीपीएआई निम्न कार्य कर सकता है:
• फ्राई और क्रिस्प किस्मों के लिए सटीक नियंत्रण वाले प्रसंस्करण-ग्रेड कोल्ड स्टोर की वकालत करना।
• आधुनिक हार्वेस्टर, स्लाइसर और ग्रेडर के साथ साझा मशीनीकरण क्लस्टर को बढ़ावा देना।
• फ्राई लाइन और कोल्ड स्टोर के लिए कुशल तकनीशियनों के दल को प्रशिक्षित करना।
• लागत और उत्सर्जन में कटौती के लिए नवीकरणीय ऊर्जा-चालित भंडारण पर ज़ोर देना।

क्षेत्रीय स्तर पर पश्चिम और उत्तर में गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश आज इस उद्योग के केंद्र हैं। पश्चिम बंगाल, बिहार और असम जैसे पूर्वी राज्य आपूर्ति केंद्र के रूप में उभर सकते हैं, जबकि महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु, विशेष रूप से क्रिस्पिंग के लिए, ऑफ-सीजन उत्पादन प्रदान करते हैं। ये सभी क्षेत्र मिलकर भारत को पूरे साल आपूर्ति करते हैं। यह बुनियादी ढांचा उद्योग के लिए एक वरदान साबित होगा।

6. निर्यात प्रतिस्पर्धा
दुनिया को फ्राइज और क्रिस्प बहुत पसंद हैं, और भारत में इन्हें बड़े पैमाने पर उपलब्ध कराया जा सकता है। फिर भी इसका निर्यात यूरोप या उत्तरी अमेरिका के निर्यात का एक अंश मात्र है।

एक पीपीएआई निम्नलिखित कार्य कर सकता है:
• "भारत के प्रसंस्कृत आलू" ब्रांड लॉन्च करना, जो विश्वास और ट्रेसेबिलिटी का संकेत देता हो।
• गल्फूड, एसआईएएल, अनुगा और पोटैटो यूरोप में भारत की उपस्थिति के लिए कोऑर्डिनेशन करना।
• बाजार पहुंच सुनिश्चित करने और वैश्विक खाद्य सुरक्षा मानकों के अनुरूप कार्य करने के लिए सरकार के साथ मिलकर काम करना।
• मांग और सैनिटरी-फाइटोसैनिटरी (एसपीएस) आवश्यकताओं पर नजर रखने के लिए निर्यात इंटेलिजेंस हब की स्थापना करना।
• जीएपी-कंप्लायंट, बीज-प्रमाणित आपूर्ति श्रृंखलाओं को भारत की यूएसपी के रूप में स्थापित करना।

इस तरह के एक मंच के साथ भारत का फ्राई और क्रिस्प निर्यात 2030 तक दोगुने से भी अधिक हो सकता है, जिससे देश एक मूल्यवर्धित केंद्र में बदल जाएगा।

इसमें प्रत्येक हितधारक के लिए क्या हैः
• किसान - सुनिश्चित मांग, प्रमाणित बीज और GAP अनुपालन के लिए प्रीमियम, अस्वीकृति का कम जोखिम।
• शोधकर्ता (CPRI और विश्वविद्यालय) - वित्तपोषण, बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय आंकड़ों तक पहुंच, विभिन्न वैरायटी को तेजी से जारी करना, मजबूत इनोवेशन के पाइपलाइन।
• उद्योग - आपूर्ति मं स्थिरता, गुणवत्ता पर कम लागत, निर्यात पहुंच, मजबूत सौदेबाजी की शक्ति।
• भारत - अधिक निर्यात, ग्रामीण रोजगार, कम बर्बादी, और प्रसंस्करण महाशक्ति के रूप में वैश्विक प्रतिष्ठा।

यूरोप और अमेरिका से सबक
EUPPA के सदस्य सालाना लगभग 70 लाख टन फ्राइज और अन्य आलू उत्पाद तैयार करते हैं, 25 हजार से ज़्यादा लोगों को रोजगार देते हैं और यूरोपीय यूनियन की व्यापार नीति को प्रभावित करते हैं। उनकी ताकत एकता और मानकों में निहित है। पोटैटो एसोसिएशन ऑफ अमेरिका (PAA) दिखाता है कि कैसे प्रसंस्करणकर्ता सार्वजनिक अनुसंधान संस्थानों को मजबूत बना सकते हैं, वैज्ञानिक उपलब्धियां किसानों और कारखानों तक तेजी से पहुंचा सकते हैं। विशाल किसान आधार, क्षेत्रीय विविधता और वैश्विक महत्वाकांक्षा के अनुसार भारत दोनों मॉडलों को अपना सकता है।

फ्राई-एंड-क्रिस्प क्रांति का इंतजार
भारत के पास आलू है, पौधे हैं, बाजार हैं। बस कमी है तो प्लेटफॉर्म की। भारतीय आलू प्रसंस्करणकर्ता एसोसिएशन बिखरे हुए विकास को समन्वित सफलता में बदल सकता है। वह किसानों को दुबई के सुपरमार्केट, नैरोबी के स्नैक्स गलियारों और टोक्यो के फ्रीजर कैबिनेट से जोड़ सकता है। सीपीआरआई और अन्य साझेदारों के साथ खेत से प्रयोगशाला और बाजार तक के एकीकरण को सक्षम बनाकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसके फ्राइज और क्रिस्प न केवल घर पर परिवारों का पेट भरें, बल्कि दुनिया भर में गर्व से प्रतिस्पर्धा भी करें।
(लेखक हाइफार्म, हाइफन फूड्स के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर हैं)

Subscribe here to get interesting stuff and updates!