विकसित कृषि संकल्प अभियान से कृषि प्रसार को नया विस्तार

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 113 संस्थानों, 731 कृषि विज्ञान केंद्रों और वैज्ञानिकों की 2170 टीमों ने गांव-गांव तक पहुंचकर ज्ञान-विज्ञान का अभूतपूर्व प्रसार किया। देश भर में 1.42 लाख गांवों के 1.35 करोड़ से अधिक किसानों की भागीदारी ने इस महाभियान को कृषि प्रसार की ऐतिहासिक मुहिम बना दिया।

विकसित कृषि संकल्प अभियान से कृषि प्रसार को नया विस्तार

भारत में कृषि से जुड़े ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार का बड़ा पुराना और मजबूत तंत्र रहा है। लेकिन बदलते दौर के साथ नई चुनौतियां, नई तकनीक और नए लक्ष्य सामने हैं। जलवायु परिवर्तन जैसे संकट के बीच खेती को किसानों के लिए फायदे का सौदा बनाना है। आधुनिक तकनीक, उभरते बाजार और किसानों के बीच की दूरी को मिटाना है। 
विज्ञान और किसान के बीच की दूरी पाटने यानी ‘लैब टू लैंड’ की अवधारणा को धरातल पर उतारने के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 29 मई से 12 जून 2025 तक खरीफ सीजन के लिए देशव्यापी ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ चलाया गया। इसके तहत किसानों को खेती की उन्नत बीज, तकनीक और पद्धतियों की जानकारी दी गई, ताकि खेती की लागत घटाने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिल सके।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 113 संस्थानों, 731 कृषि विज्ञान केंद्रों और वैज्ञानिकों की 2170 टीमों ने गांव-गांव तक पहुंचकर ज्ञान-विज्ञान का अभूतपूर्व प्रसार किया। देश भर में 1.42 लाख गांवों के 1.35 करोड़ से अधिक किसानों की भागीदारी ने इस महाभियान को कृषि प्रसार की ऐतिहासिक मुहिम बना दिया।

केंद्रीय कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव तथा आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. मांगी लाल जाट बताते हैं कि किसानों का जीवन बदलना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ में हमारे सभी संस्थान, वैज्ञानिक और देशभर के किसान ‘एक राष्ट्र-एक कृषि-एक टीम’ के रूप में एकजुट हुए। सबके सहयोग से यह अभूतपूर्व अभियान साबित हुआ। किसानों से सीधा संवाद हुआ तो कई बातें पता चलीं। सबसे बड़ी सीख यह है कि रिसर्च के मुद्दे सिर्फ दिल्ली में बैठकर तय नहीं होंगे। शोध की दिशा अब किसानों की आवश्यकता के आधार पर तय की जाएगी।

मेरठ के दबथुवा गांव में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चारपाई पर बैठकर किसानों से चर्चा की तो गन्ना किसानों की दिक्कतें सामने आईं। मध्यप्रदेश में सोयाबीन के किसानों ने हर्बिसाइड से बर्बाद हुई फसल के बारे में बताया। किसानों ने घटिया खाद-बीज और कीटनाशकों की समस्या सामने रखी। इस तरह किसानों के मुद्दों और समस्याओं के बारे में पता चला, जिनके समाधान के प्रयास किए गये। 

आईसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. देवेंद्र कुमार यादव ने बताया कि यह अभियान किसानों को उन्नत तकनीकों से जोड़ने और कृषि को समृद्ध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ। 15 दिनों तक चले इस अभियान के तहत वैज्ञानिकों ने किसानों के बीच पहुंचकर उनसे सीधा संवाद किया। उस क्षेत्र की जलवायु, पानी, मिट्टी व अन्य बातों का ध्यान रखते हुए कौन-सी फसल बोनी चाहिए, कौन-सी किस्म होनी चाहिए और खाद का कितना संतुलित उपयोग करना चाहिए, ये सब जानकारियां दी गईं। प्राकृतिक खेती के संबंध में भी किसानों से चर्चा की गई। 

महिलाओं की भागीदारी
‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के तहत देश भर के 60 हजार से अधिक गांवों में किसानों से संवाद हुआ। अभियान की एक प्रमुख उपलब्धि महिला किसानों की उल्लेखनीय भागीदारी रही। अभियान में शामिल 1.35 करोड़ से अधिक किसानों में 95.7 लाख पुरुष और 39.7 लाख (यानी 29 फीसदी) महिलाएं थीं। विशेषकर असम, ओडिशा, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में महिलाओं ने अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। पूर्वोत्तर राज्यों की महिलाओं ने अनुपातिक दृष्टि से अभियान में असाधारण भागीदारी निभाई।

आदिवासी जिलों में आयोजन
विकसित कृषि संकल्प अभियान का आयोजन देश के 176 आदिवासी जिलों में भी किया गया। यहां 504 टीमों ने 31,048 गांवों में कुल 15,445 कार्यक्रम आयोजित किए, जिनमें 25.5 लाख से अधिक किसानों ने भाग लिया। इनमें ओडिशा सबसे आगे रहा, जहां 5,093 गांवों में 948 कार्यक्रमों के माध्यम से 5.83 लाख आदिवासी किसानों तक पहुंचा गया। इसके बाद मध्य प्रदेश और झारखंड में आदिवासी किसानों ने भाग लिया।

आकांक्षी जिले
यह अभियान देश के 112 आकांक्षी जिलों में पहुंचकर अपनी सार्थकता साबित करने में कामयाब रहा। आकांक्षी जिलों के लगभग 23 हजार गांवों में 20 लाख से अधिक किसानों से संपर्क हुआ। आकांक्षी जिलों में किसानों तक पहुंच के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे रहा जहां 2,936 गांवों में 818 कार्यक्रमों के माध्यम से 2.93 लाख किसानों तक पहुंचा गया। इसके बाद ओडिशा में 3.08 लाख, झारखंड में 2.35 लाख और बिहार में 2.18 लाख किसानों ने भाग लिया।
इस तरह यह अभियान ना सिर्फ अपनी भौगोलिक पहुंच के लिहाज से, बल्कि महिला किसानों, आदिवासी इलाकों और आकांक्षी जिलों तक पहुंच बनाने की दृष्टि से मील का पत्थर साबित हुआ है। 

फोलोअप प्लान
विकसित कृषि संकल्प अभियान के बाद आगे की राह के बारे में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि अब यह अभियान थमेगा नहीं, बल्कि अलग-अलग फसलों के लिए भी जारी रहेगा। उनका कहना है कि ज्ञान, अनुसंधान व क्षमताओं का जो गैप है, उसे पाटने की कोशिश करेंगे। फसलवार और क्षेत्रवार सम्मेलन आयोजित कर रोडमैप तैयार किया जाएगा। 
कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) को हर जिले के लिए नोडल एजेंसी बनाया जाएगा, जो किसानों के हित में कोऑर्डिनेट करेगी। केवीके के वैज्ञानिक अनिवार्य रूप से सप्ताह में तीन दिन खेतों में किसानों के बीच जाएंगे। राज्यवार कृषि के लिए आईसीएआर की तरफ से एक नोडल अफसर तय किया जाएगा जो उस राज्य में सारे वैज्ञानिक प्रयोगों और समस्याओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखकर सलाह और सुझाव देगा।

घटिया खाद-बीज पर शिकंजा
‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ ने किसानों की कई व्यावहारिक समस्याओं को उजागर किया। खासतौर पर घटिया खाद-बीज और कीटनाशकों की शिकायतें सामने आई हैं। इस मसले पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सख्त रुख अपनाने हुए अधिकारियों को कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। मध्य प्रदेश में हर्बिसाइड से सोयाबीन की फसल को हुए नुकसान और बायोस्टीमुलेंट्स के मामले में कृषि मंत्री ने सख्ती दिखाई है। जिन कंपनियों के उत्पाद से फसल को नुकसान हुआ है, उनके लाइसेंस रद्द किए जा रहे हैं।

किसानों के नवाचार
अभियान के दौरान किसानों के कई नवाचार भी सामने आए, जिन्हें देखकर वैज्ञानिक भी हैरान थे। किसानों ने स्थानीय परिस्थितियों और जरूरत के हिसाब से नए प्रयोग किए हैं। इन नवाचारों को वैज्ञानिक मान्यता दिलाने के लिए प्रयास किए जाएंगे।
किसानों ने ऐसा उपकरण विकसित करने की जरूरत बताई जिससे नकली खाद और कीटनाशक का पता लगाया जा सके। डॉ.एम.एल. जाट ने बताया कि अभियान के दौरान शोध के लिए लगभग 500 नए विषय उभरकर सामने आए हैं, जो अब शोध की दिशा तय करेंगे। दलहन-तिलहन की उत्पादकता बढ़ाने और छोटे किसानों के लिए कृषि यंत्र विकसित करने पर जोर दिया जाएगा। 

रबी सीजन के लिए अभियान
रबी की फसल के लिए ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ फिर से चल रहा है। इसके लिए दो दिवसीय सम्मेलन नई दिल्ली में 15 और 16 सितंबर को आयोजित किया गया। अभियान की शुरुआत 3 अक्टूबर, 2025 को विजय पर्व के साथ हुई और यह 18 अक्टूबर, धनतेरस तक चलेगा। 

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