यूपी में कैसे उभरा नया नायक, नए सियासी समीकरण का संकेत

बसपा के खिसकते जनाधार में चंद्रशेखर सेंध लगा सकते हैं, यह कयास कई साल से लगाए जा रहे थे। नगीना में उन्होंने यह कर दिखाया। साथ ही एक नया सियासी समीकरण साधने में कामयाबी हासिल की है। यह उनकी सबसे बड़ी ताकत और विपक्षी दलों के उनसे किनारा करने की प्रमुख वजह है।

यूपी में कैसे उभरा नया नायक, नए सियासी समीकरण का संकेत
नगीना से निर्वाचित सांसद चंद्रशेखर

इन लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में कई बड़े उलटफेर हुए। राज्य की नगीना लोकसभा सीट पर आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के उम्मीदवार चंद्रशेखर आजाद ने 1.51 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल कर सबको चौंका दिया। चंद्रशेखर की जीत बसपा के लिए खतरे की घंटी बताई जा रही है। नगीना में पिछली बार बसपा जीती थी। लेकिन इस बार बसपा उम्मीदवार को मात्र 13 हजार वोट मिले और वह चौथे स्थान पर रहा। नगीना में चंद्रशेखर को 51.19 फीसदी, भाजपा को 36.06 फीसदी, सपा को 10.22 फीसदी और बसपा को मात्र 1.33 फीसदी वोट मिले।

मायावती पहली बार 1989 में बिजनौर लोक सभा सीट से संसद पहुंची थीं। अब उसी बिजनौर जिले की नगीना सीट से दलित राजनीति ने करवट ली है और एक नया दलित नेता उभरा है। लेकिन चंद्रशेखर की जीत सिर्फ बसपा के लिए ही खतरे की घंटी नहीं है। नगीना में उन्होंने जिस तरह मुस्लिम, दलित और जाट समुदाय का समर्थन प्राप्त किया, वह यूपी के तमाम राजनीतिक दलों की बेचैनी बढ़ाएगा। यह उसी पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) से मिलता-जुलता समीकरण है जिसे अखिलेश यादव यूपी में अपनी कामयाबी का श्रेय दे रहे हैं। जिसके चलते समाजवादी पार्टी 37 लोक सभा सीटें लेकर संसद में यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। 

नगीना में चंद्रशेखर भी इसी सियासी समीकरण को साधने में कामयाब रहे, जिसके चलते भाजपा उम्मीदवार और तीन बार के विधायक ओम कुमार को उन्होंने भारी अंतर से शिकस्त दी। साथ ही सपा के उम्मीदवार मनोज कुमार को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया, जो लगभग चार लाख वोटों के अंतर से हारे। यूपी में शानदार प्रदर्शन करने वाली सपा की किसी भी मुस्लिम बहुल सीट पर इतनी बड़ी हार नहीं हुई है, जितनी नगीना में हुई। इन नतीजों को देखकर समझना मुश्किल नहीं है, आखिर क्यों विपक्षी दलों ने चंद्रशेखर से किनारा कर लिया था।

यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से ही चंद्रशेखर नगीना से चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गये थे। उन्हें पूरी उम्मीद थी विपक्षी गठबंधन में सपा, रालोद और कांग्रेस का समर्थन उन्हें मिलेगा। लेकिन लोक सभा चुनाव से ठीक पहले सपा-रालोद का गठबंधन टूट गया। फिर सपा ने नगीना में अपना उम्मीदवार उतार दिया। यह चंद्रशेखर के लिए बड़ा झटका था। लेकिन नगीना में चंद्रशेखर को जिस तरह का जन समर्थन मिल रहा था, उससे उन्हें अकेले अपने दम पर चुनाव में उतरने का फैसला किया। पश्चिमी यूपी की इस सीट पर किसान आंदोलन का असर भी था।

दिल्ली में किसान आंदोलन और पहलवानों के प्रदर्शन के दौरान चंद्रशेखर ने जिस तरह वहां पहुंचकर समर्थन दिया था, उससे किसानों के बीच भी उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। दलित-पिछड़ों और अल्संख्यकों के मुद्दों पर लगातार जमीनी संघर्ष के कारण चंद्रशेखर एक यूथ आइकन बनकर उभरे। मायावती जहां सरकार से सीधा टकराव मोल लेने से बचती दिखीं, वहीं चंद्रशेखर कमजोर के साथ खड़े होने वाले सबसे पहले लोगों में शुमार हो गये। इस छवि का नगीना में उन्हें फायदा मिला। 

चंद्रशेखर को समर्थन न देने का इंडिया गठबंधन को अब मलाल जरूर होगा। लेकिन इसके पीछे सियासी दलों की आपसी प्रतिस्पर्धा और नेताओं का असुरक्षा बोध है। ऐसी खबरें आई कि सपा चाहती थी कि चंद्रशेखर समाजवादी पार्टी से साइकिल के सिंबल पर चुनाव लड़े। जिसके लिए वह तैयार नहीं हुए और अकेले अपनी पार्टी से चुनावी रण में हुंकार भर दी। नगीना में लंबे समय से डटे रहने का फायदा उन्हें मिला। साथ ही वे गांव-गांव जाकर लोगों के बीच में रहे। उनसे कनेक्ट बनाने में कामयाब रहे।  

विपक्षी दलों के चंद्रशेखर से किनारा करने और बसपा के आकाश आनंद की उन पर हल्की टिप्पणियों का उन्हें फायदा ही हुआ। लोगों की सहानुभूति उनकी तरफ बढ़ने लगी। अखिलेश यादव ने भी नगीना लोकसभा क्षेत्र में जनसभा की और चंद्रशेखर पर निशाना साधा था। लेकिन नगीना की जनता चंद्रशेखर को जीत दिलाने का मन बना चुकी थी। दरअसल, दलितों के साथ-साथ मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा जीतने की उनकी क्षमता बसपा के साथ-साथ सपा के लिए भी चुनौती बन सकती है। नगीना में उन्होंने जाट मतदाताओं में भी खासी लोकप्रियता हासिल की है। वहीं, उनकी जीत का अंतर बढ़ने का प्रमुख कारण है। 

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद साफ हो गया है कि बसपा का जनाधार खिसक रहा है। 2019 के लोकसभा में बसपा को यूपी में 10 सीटें और 19.43 फीसदी मत प्राप्त हुए थे। इससे पहले 2014 में बसपा को कोई सीट तो नहीं मिली थी लेकिन वोट प्रतिशत तब भी 19.77 फीसदी था। 2024 में बसपा का खाता भी नहीं खुला है और वोट प्रतिशत घटकर 9.39 फीसदी रह गया। यानी बसपा का लगभग आधा वोट बैंक खिसक चुका है। कई साल से लग रहा था कि बसपा के कमजोर होने का फायदा चंद्रशेखर उठा सकते हैं। आखिरकार नगीना में उन्होंने यह कर दिखाया। बसपा के खिसकते जनाधार का फायदा सपा और कांग्रेस को भी मिला है। ऐसे में अगर विपक्षी गठबंधन चंद्रशेखर को साथ लेता तो उसकी बढ़त में इजाफा ही होता।  

अब सवाल यह है कि क्या नगीना में कामयाबी दिलाने वाले दलित, मुस्लिम और जाट गठजोड़ के फार्मूले को चंद्रशेखर पश्चिमी यूपी में विस्तार दे पाएंगे? राष्ट्रीय लोकदल के विपक्षी खेमे को छोड़कर भाजपा से हाथ मिलाने के बाद पश्चिमी यूपी की विपक्षी राजनीति में एक खालीपन पैदा हुआ है। चंद्रशेखर इस खालीपन को भरने का प्रयास करेंगे। अगर वे अपनी जुझारू छवि और बसपा के घटते जनाधार के साथ नगीना की कामयाबी के फार्मूले को विस्तार दे पाए तो यूपी में मायावती की तरह बड़ी राजनीतिक ताकत बन सकते हैं।

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