राज्य चुनाव तय करेंगे आगे की आर्थिक नीतियां

विधानसभा चुनावों के बाद मुक्त बाजार के मंत्र और विकास के निचले स्तर तक पहुंचने की नीतियों में व्यापक बदलाव हो सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में दो साल रह गए हैं। इसलिए आर्थिक नीतियां ऐसी होंगी कि सभी लोगों से जुड़ा जा सके

राज्य चुनाव तय करेंगे आगे की आर्थिक नीतियां

अभी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश का चुनाव है। इन चुनावों के नतीजे तय करेंगे कि भारत आने वाले दिनों में किस राजनीतिक-आर्थिक दिशा में आगे बढ़ेगा। इन चुनावों के नतीजे 10 मार्च को आएंगे, जब सभी वोटिंग मशीनों की गिनती होगी और टेलीविजन स्क्रीन विजेताओं और हारने वालों के नामों से भरे पड़े होंगे।

कोविड-19 के कारण प्रतिबंधों के बावजूद चुनाव प्रचार अभियान काफी सघन दिख रहा है। यह इसलिए भी सघन है क्योंकि किसान आंदोलन ने खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को इस बात का एहसास कराया है कि मतदाता कितने शक्तिशाली हैं। आंदोलन ने यह संदेश भी दिया कि आप अपने आप को एकजुट करके बड़ा वोट बैंक बनिए और तब राजनीतिक दल वही चाहेंगे जो आप उनसे करवाना चाहते हैं। ग्रामीण मतदाताओं ने पूरे उत्तर प्रदेश में यह संदेश दिया है।

किसानों के लिए कारोबार की परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। चाहे वह गन्ने की कीमत का मुद्दा हो, चीनी मिलों पर किसानों के बकाया का मुद्दा हो (रूरल वॉयस की रिपोर्ट के अनुसार 7,000 करोड़ रुपए बकाया) या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी), उर्वरकों की किल्लत, बिजली बिल और इन सबसे ऊपर अच्छी नौकरियों की कमी, ये सब प्रदेश में आम जनता के मुद्दे हैं। हालांकि राजनीतिक दलों और उनके सहयोगी मीडिया की तरफ से बड़ी चालाकी के साथ लोगों को मुद्दों से भटकाने की कोशिश की गई है, लेकिन ग्रामीण मतदाता इन मुद्दों को बार-बार उठा रहे हैं।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती बड़ी है। उसने पहले कभी सोचा भी नहीं था कि अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी उसे इतनी कड़ी टक्कर देंगे। ग्रामीण मतदाताओं ने स्पष्ट संकेत दिया है कि जो हमसे जुड़ा है वही जीतेगा। भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों के लिए विकल्प खुले हैं कि वह जाएं और किसानों से ग्रामीण मतदाताओं से जुड़ें।

विधानसभा चुनावों के बाद मुक्त बाजार के मंत्र और विकास के निचले स्तर तक पहुंचने की नीतियों में व्यापक बदलाव हो सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में दो साल रह गए हैं। इसलिए आर्थिक नीतियां ऐसी होंगी कि सभी लोगों से जुड़ा जा सके। ज्यादा विकल्प हैं भी नहीं। कोरोना महामारी ने अमीर और गरीब के बीच भाई को इतना चौड़ा कर दिया है कि उनके बीच असमानता काफी बढ़ गई है। वरना क्या कारण है कि शहरों में 10 लाख रुपये से अधिक कीमत वाले एसयूवी यात्री वाहनों की बिक्री तो तेजी से बढ़ी है लेकिन दुपहिया वाहनों की बिक्री में गिरावट आई है। दुपहिया कि ज्यादा बिक्री ग्रामीण इलाकों में होती है। ट्रैक्टर की बिक्री का भी यही हाल है। हाल के वर्षों में पहली बार शहरी मांग की तुलना में ग्रामीण इलाकों से मांग कमजोर है। यह स्थिति लगातार अच्छे मानसून के बावजूद है। हिंदुस्तान यूनिलीवर के चेयरमैन संजीव मेहता समेत इंडस्ट्री लीडर्स ने इस बात को स्वीकार किया है

इन विधानसभा चुनावों के बाद 2024 के महत्वपूर्ण आम चुनाव को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्र को केंद्र में रखकर नीतियां बनाए जाने की उम्मीद है। वरना वोट मिलना मुश्किल हो जाएगा। 13 महीने तक चले किसान आंदोलन ने ग्रामीण इलाकों के लोगों में नया भरोसा पैदा किया है। नीति आयोग और कृषि भवन में बैठे लोग अब जमीनी हकीकत से जुड़ने की कोशिश करेंगे। वे किसानों के साथ बातचीत करके उन्हें स्वीकार्य नीतियां बनाएंगे। हर राज्य और क्षेत्र की जरूरतें अलग हैं, इसलिए सबके लिए एक जैसी नीति को छोड़ना पड़ेगा। बिहार और तमिलनाडु में खेती के लिए जलवायु की स्थिति बिल्कुल अलग है। नीति निर्माताओं को ऐसी बातों को ध्यान में रखना पड़ेगा तभी वे अपने राजनीतिक आकाओं की मदद कर सकेंगे।

 

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