रूरल वॉयस विशेषः बायो फर्टिलाइजर से कम होगी खेती की लागत, मिट्टी भी अधिक उपजाऊ होगी

बायो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल बीज उपचार और मृदा उपचार के जरिए किया जाता है। इससे केमिकल उर्वरकों का इस्तेमाल 35 से 40 फीसदी कम कर सकते हैं। बायो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए भी जरूरी है

केमिकल फर्टिलाइजर के ज्यादा इस्तेमाल और जैविक खाद के कम प्रयोग से मिट्टी की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। इससे उर्वर जमीन भी अनुपजाऊ की श्रेणी में आ गयी है। मिट्टी की गिरती उर्वरता को कैसे बचाया जाए जिससे फसलों से अच्छी पैदावार हो सके, आज यह बड़ा प्रश्न है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार नैचुरल कार्बनिक खाद से पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने के आलावा प्रकृति में मिलने वाले जीवाणुओं की पहचान कर उनसे खेतों को उपजाऊ बनाने औऱ पर्यावरण को लाभ पहुंचाने वाली कई तरह की खाद तैयार की गई हैं। इन्हें जैव उर्वरक यानी बायो फर्टिलाइजर कहते हैं। बायो फर्टिलाइजर से प्राकृतिक तरीके से पौधों को जरूरी पोषक तत्व मिलता है। यह रासायनिक उर्वरकों से बेहतर और सस्ते होते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) पूसा दिल्ली की माइक्रोबायलोजी डिवीजन की पूर्व प्रमुख डॉ. के. अन्नपूर्णा ने टिकाऊ खेती के लिए बॉयो फर्टिलाइजर की आवश्यकता पर रूरल वॉयस के एग्री टेक शो में बताया। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।

डॉ. अन्नपूर्णा ने बताया कि सबसे पहले समेकित पोषण प्रबंधन प्रणाली (इंट्रीग्रेटेड न्यूट्रीएंट मैनेजमेंट सिस्टम) को अपनाना जरूरी है। इस प्रणाली में प्रकृति में उपलब्ध कार्बनिक, जैविक साथ रासायनिक उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल किया जाता है। इन तीनों पोषक तत्वों के स्रोतों को फ़सलों की ज़रूरत के मुताबिक 1:2:2 अनुपात में इस्तेमाल किया जाता है। नैचुरल कार्बनिक खाद पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने के साथ मृदा में कार्बन की उपलब्धता को भी बढ़ाता है। इससे जमीन में रहने वाले लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है जिसकी वजह से मिट्टी की सेहत अच्छी रहती है। किसान बायो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल कर मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ा सकते हैं। डॉ. अन्नपूर्णा ने बताया कि हरी खाद और कम्पोस्ट खाद के आलावा प्रकृति में मिलने वाले जीवाणुओं को पहचान कर उनसे कई तरह के जैव उर्वरक यानी बायो फर्टिलाइजर तैयार करते हैं।

उन्होंने बताया कि नाइट्रोजन देने के लिए दलहनी फसलों में राईजोबियम कल्चर और खाद्यान्न फसलों में एज़ोटोबैक्टर, एज़ोस्पाइरिलम, एसीटोबैक्टर का इस्तेमाल किया जाता है। इसके आलावा धान की फसल में नाइट्रोजन देने के लिए नीला हरित शैवाल का इस्तेमाल किया जाता है। फसलों को फॉस्फोरस मिल सके, उसके लिए फास्पोबैक्टर, एसपर्जिलस, पैनिसिलियम, स्यूडोमोनॉस, बैसिलस बायो फर्टिलाईजर का इस्तेमाल किया जाता है। पोटाश और आयरन तत्व फसलों को मिले इसके लिए बैसिलस, फ्रैच्युरिया, एसीटोबैक्टर का इस्तेमाल किया जाता है।

डॉ. अन्नपूर्णा ने कहा कि बायो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल बीज उपचार और मृदा उपचार के जरिए किया जाता है। इससे केमिकल उर्वरकों का इस्तेमाल 35 से 40 फीसदी कम कर सकते हैं। बायो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल न केवल आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए भी जरूरी है।

बायो फर्टिलाइजर दो तरह के होते हैं। पहला ठोस और दूसरा तरल रूप में उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि बायो फर्टिलाइजर के इस्तेमाल के लिए बीज उपचार सबसे अच्छी विधि है। बायो फर्टिलाइजर ठोस में 200 ग्राम और तरल में 50 ग्राम और 100 ग्राम के बोतल में आते हैं। फर्टिलाइजर से बीज उपचार के लिए सबसे पहले आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ मिलाकर घोल बना लेते हैं, और इस घोल में 200 ग्राम पैकेट की मात्रा किसी भी एक बायो फर्टिलाइजर जैसे राइजोबियम कल्चर, एजोक्टौ बैक्टर पीएसबी कल्चर को मिलाते हैं। इसके बाद तैयार घोल को एक एकड़ बीज पर इस प्रकार छिड़काव करते है, जिससे प्रत्येक बीज पर घोल की परत बन जाय। इसके बाद उपचारित बीजों को कुछ देर तक छाया में सुखा लेते हैं और सूखने के बाद बीजों की खेतों में तुरन्त बुवाई कर देते हैं। एक एकड़ बीज के लिए 100 ग्राम तरल बायो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन तरल का इस्तेमाल और दूसरे तरीके से किया जा सकता है। इसको पौधों को ड्रिप इरीगेशन सिस्टम, स्वायल ड्रेंचिग और सिंचाई के माध्यम दिया जा सकता है।

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के ग्राम भूरेका के प्रगतिशील किसान सुधीर अग्रवाल ने रूरल वॉयस बताया केमिकल फर्टिलाइजर का प्रयोग कम करते हुए, वे कई वर्षो से बॉयो फर्टिलाइजर का प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि खेत में कई पोषक तत्वों की कमी थी, लेकिन लगातार कई वर्षो से बायो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करने से खेतों की उपजाऊ क्षमता बढ़ गई है और उनकी खेतों से मिलने वाली उपज की गुणवत्ता भी बेहतर हो गई है। उन्होंने कहा कि अब खेतों में लगभग 30 फीसदी कम केमिकल फर्टिलाइजर इस्तेमाल करना पड़ता है।

अग्रवाल ने कहा कि वे बायो फर्टिलाइजर का प्रयोग धान, गेहूं ,चना, सरसों, मूंग, आलू और अरहर सहित कई फसलों में प्रयोग करते हैं। इसके इस्तेमाल करने से फसलों की पैदावार बढ़ने के साथ लागत में भी कमी आई है। उन्होंने सुझाव दिया कि किसानों को केमिकल फर्टिलाइजर का प्रयोग कम करके बोने से पहले बायो फर्टिलाइजर से बीजों का उपचार और मृदा उपचार करना चाहिए।

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