खेतों में उतर वैज्ञानिकों ने शुरू की नई कृषि क्रांति

विकसित कृषि संकल्प अभियान केवल फसल उत्पादकता के बारे में नहीं है। यह भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर बनाने की गहन राष्ट्रीय आकांक्षा का हिस्सा है। दशकों से भारत के किसान देश का पेट भरते आए हैं। लेकिन विडंबना यह है कि भारत अब भी अपने 60% से अधिक खाद्य तेल के लिए आयात पर निर्भर है, दालों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है, और बार-बार इनपुट की गुणवत्ता संबंधी समस्याओं का सामना करता है।

खेतों में उतर वैज्ञानिकों ने शुरू की नई कृषि क्रांति

बात जून की शुरुआत की है। ओडिशा के एक छोटे से गांव की तपती दोपहरी में 65 वर्षीय किसान धनंजय साहू आम के पेड़ के नीचे बैठे थे। उनके चारों ओर साथी किसान और युवा वैज्ञानिकों की एक टीम थी। वे भाषण देने वाले नहीं, बल्कि श्रोता, अपने काम का प्रदर्शन करने वाले, समस्याओं का समाधान देने वाले लोग थे। उनके पास मृदा परीक्षण किट, उन्नत किस्मों के बीज और सबसे महत्वपूर्ण, उनमें विनम्रता थी।

धनंजय के लिए यह कोई साधारण सरकारी कार्यक्रम नहीं था। उन्होंने कहा, "ऐसा लगा जैसे कोई हमें सिखाने नहीं, बल्कि हमारे साथ खड़ा होने आया है।" यह भावना 1.4 लाख से ज्यादा गांवों में विकसित कृषि संकल्प अभियान 2025 के तहत गूंज रही है। एक शांत, दृढ़ क्रांति जो भारतीय कृषि को नई परिभाषा दे सकती है।

मिट्टी से जुड़ा अभियान
29 मई 2025 को शुरू हुए इस 15-दिवसीय अभियान में 2,100 से अधिक टीमें और लगभग 16,000 कृषि विशेषज्ञ शामिल हुए। ये 728 जिलों के 1.35 करोड़ से ज्यादा किसानों तक पहुंचे। हरियाणा के कपास के खेतों से लेकर छत्तीसगढ़ की आदिवासी बस्तियों तक, आईसीएआर संस्थानों और कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के वैज्ञानिक खेतों में गए, किसानों के साथ बैठे और उनकी बातें सुनीं।

उन्होंने बताया कि मृदा स्वास्थ्य कार्डों का प्रभावी उपयोग कैसे किया जा सकता है, खरीफ फसलों के लिए बीज उपचार विधियों की व्याख्या की और कम लागत वाले कीट प्रबंधन उपायों पर चर्चा की। लेकिन जानकारी से ज्यादा, वे एकजुटता का संदेश लेकर आए- आप इस सफर में अकेले नहीं हैं। विज्ञान आपके साथ है। यह एकतरफा प्रसारण नहीं था। किसानों ने इनपुट की घटिया गुणवत्ता, महंगे कीट प्रबंधन, अप्रत्याशित बाजार और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं के बारे में कठिन सवाल पूछे। विशेषज्ञों के पास सभी के जवाब नहीं थे, लेकिन उन्होंने सवालों को गंभीरता से लिया।

व्यापक परिदृश्य: कृषि में आत्मनिर्भरता
विकसित कृषि संकल्प अभियान केवल फसल उत्पादकता के बारे में नहीं है। यह भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर बनाने की गहन राष्ट्रीय आकांक्षा का हिस्सा है। दशकों से भारत के किसान देश का पेट भरते आए हैं। लेकिन विडंबना यह है कि भारत अब भी अपने 60% से अधिक खाद्य तेल के लिए आयात पर निर्भर है, दालों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है, और बार-बार इनपुट की गुणवत्ता संबंधी समस्याओं का सामना करता है। यह अभियान किसानों को ज्ञान से सशक्त बनाकर, इनपुट प्रणालियों में सुधार करके और सार्वजनिक विस्तार सेवाओं में विश्वास का पुनर्निर्माण करके इस प्रवृत्ति को उलटने का प्रयास करता है।

कृषि केवल आजीविका के लिए नहीं है, बल्कि गौरव, उद्यम और संप्रभुता का स्रोत भी है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के शब्दों में, "यह केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं है। यह एक जन-आंदोलन है। आत्मनिर्भर भारत के लिए जन आंदोलन।"

अभियान से मिशन तक: कृषि विस्तार का उदय
इस अभियान की असली ताकत आगे आने वाली बातों में निहित है। विकसित कृषि संकल्प अभियान (वीकेएसए) ‘कृषि विस्तार’ का लॉन्च पैड है। एक दीर्घकालिक राष्ट्रीय मिशन जो भारत द्वारा अपने किसानों को सहायता प्रदान करने के तरीके को नए सिरे से परिभाषित करेगा।

कृषि विस्तार कोई साधारण योजना नहीं है। यह एक व्यवस्थित बदलाव है। यह बदलाव ऊपर से नीचे की ओर सलाह देने से लेकर नीचे से ऊपर की ओर सह-निर्माण तक है। यह एक तरफ टुकड़ों में पहुंच से पूर्ण कवरेज तक जाता है, तो दूसरी तरफ आउटपुट मेट्रिक्स से लेकर परिणाम-उन्मुख प्रभाव तक बढ़ता है।

कुछ प्रमुख स्तंभ
• दलहन, तिलहन, बाजरा, कपास और गन्ने पर केंद्रित फसल-विशिष्ट अभियान (जिन्हें "क्रॉप वॉर" कहा जाता है)।
• डिजिटल उपकरणों का उपयोग - एआई-आधारित सलाह, रियल-टाइम पेस्ट अलर्ट, जलवायु डैशबोर्ड और दूर-दराज के खेतों तक पहुंचने के लिए मोबाइल ऐप।
• आईसीएआर, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू), गैर-सरकारी संगठनों, कृषि-स्टार्टअप और स्थानीय किसान समूहों को एक समन्वित रणनीति के तहत एक साथ लाना।
वीकेएसए ने भविष्य की एक झलक दिखाई है। किसानों को न केवल सूचित किया गया, बल्कि उन्हें इसमें शामिल भी किया गया। कई कार्यक्रमों का आयोजन एफपीओ के साथ मिलकर किया गया। युवा वॉलंटियर ने कृषि सखियों और कृषि मित्रों के रूप में काम किया। महिला किसानों ने कंपोस्ट खाद बनाने के तरीके और बाजरा से बने व्यंजनों का प्रदर्शन किया। यह विकेन्द्रीकृत और विविध था।

ऐसी कहानियां जो हमारे साथ रहेंगी
सीतापुर में सीमांत किसानों के एक समूह ने कटाई-तुड़ाई के बाद मूल्य संवर्धन का प्रशिक्षण मांगा ताकि वे मिर्च से अधिक कमाई कर सकें। अनंतपुर में एक बुज़ुर्ग महिला किसान ने शर्माते हुए पूछा कि क्या कोई उसकी जमीन के रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने में मदद कर सकता है। लातूर में, नौकरी पाने की नाकाम कोशिश के बाद शहर से लौटे एक युवक ने कहा, "अगर खेती-बाड़ी व्यावहारिक हो गई, तो मैं फिर कभी शहर नहीं जाऊंगा।" लद्दाख में एक महिला ने पूछा, "क्या मेरी खुबानी को सुखाकर अच्छा बाजार मिल सकता है?" पंजाब में एक बुज़ुर्ग किसान ने मशीनीकृत ट्रांसप्लांटर के बारे में पूछताछ की। अरुणाचल प्रदेश में एक युवा किसान ने पूछा, "क्या मैं अपनी अदरक और अनानास दिल्ली में बेच सकता हूं?"

ये कहानियां नीतिगत टिप्पणियां नहीं हैं। ये वो जीती-जागती हकीकत हैं जिन्हें कृषि संकल्प अभियान ने उजागर किया है, और जिन्हें अब कृषि विस्तार बड़े पैमाने पर संबोधित करना चाहता है।

यह आज क्यों मायने रखता है
आज कृषि केवल भोजन के बारे में नहीं है। यह जलवायु सुरक्षा, रोजगार, निर्यात प्रतिस्पर्धा और ग्रामीण सम्मान के बारे में है। 
• भारत के 86% से ज्यादा किसान छोटे और सीमांत हैं। उन्हें सटीक सलाह की जरूरत है, सबके लिए एक जैसी सलाह की नहीं।
• पानी की कमी और मिट्टी के क्षरण के साथ बाजार में अस्थिरता बढ़ती जा रही है। टेक्नोलॉजी मदद कर सकती है, लेकिन तभी जब वह सही हाथों में पहुंचे।
जन-प्रथम दृष्टिकोण न केवल संभव है, बल्कि यह शक्तिशाली भी है।

अलग तरह की हरित क्रांति
अगर पहली हरित क्रांति उत्पादन के बारे में थी, तो यह सहभागिता के बारे में है। अगर अतीत इनपुट से प्रेरित था, तो भविष्य संस्थाओं, समावेशिता और नवाचार से आकार लेगा।

जैसे-जैसे वीकेएसए 2025 का सूर्यास्त हो रहा है, क्षितिज पर एक नया सूर्योदय दिखाई देने लगा है। एक ऐसा सूर्योदय जहां भारत के किसान मदद का इंतजार नहीं कर रहे, बल्कि अपना भाग्य खुद गढ़ रहे हैं। कृषि विस्तार को मार्गदर्शक प्रकाश और आत्मनिर्भरता की भावना को ईंधन बनाकर, भारतीय कृषि जल्द ही न केवल सुधार, बल्कि एक शांत, सम्मानजनक क्रांति का भी गवाह बन सकती है। और इसकी शुरुआत तब हुई जब वैज्ञानिक खेतों में गए और किसानों की बातें सुनने का फैसला किया। 

(लेखक आईसीएआर  के उप महानिदेशक, कृषि विस्तार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)

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