बीटी कॉटन की नई जीएम किस्म के फील्ड ट्रायल को मंजूरी, तेलंगाना, गुजरात, महाराष्ट्र का ट्रायल से इन्कार, एचटीबीटी पर नहीं हुआ फैसला

जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने डीसीएम श्रीराम ग्रुप की हैदराबाद स्थित कंपनी बॉयोसीड रिसर्च लिमिटेड की हाइब्रिड कपास की जेनेटिकली इंजीनियर्ड (जीई) किस्म के फील्ड ट्रायल को मंजूरी दे दी है। इस प्रजाति में क्राई2एआई जीन का उपयोग किया गया है जो कपास में पिंक बॉलवार्म की बीमारी को रोकता है। जीईएसी ने इसके बीआरएल-1 ट्रायल की मंजूरी दी है जो एक साल के लिए होता है।

बीटी कॉटन की नई जीएम किस्म के फील्ड ट्रायल को मंजूरी, तेलंगाना, गुजरात, महाराष्ट्र का ट्रायल से इन्कार, एचटीबीटी पर नहीं हुआ फैसला
नई प्रजाति में क्राई2एआई जीन का उपयोग किया गया है जो कपास में पिंक बॉलवार्म की बीमारी को रोकता है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (जीईएसी) ने डीसीएम श्रीराम ग्रुप की हैदराबाद स्थित कंपनी बॉयोसीड रिसर्च लिमिटेड की हाइब्रिड कपास की जेनेटिकली इंजीनियर्ड (जीई) किस्म के फील्ड ट्रायल को मंजूरी दे दी है। इस प्रजाति में क्राई2एआई जीन का उपयोग किया गया है जो कपास में पिंक बॉलवार्म की बीमारी को रोकता है। जीईएसी ने इसके बीआरएल-1 ट्रायल की मंजूरी दी है जो एक साल के लिए होता है। जीईएसी की 17 मई, 2023 को हुई 149वीं बैठक में क्राई2एआई जीन वाली जेनेटिकली इंजीनियर्ड (जीई) किस्म को फील्ड ट्रायल वाले जीईएसी की 148वीं बैठक में मंजूर प्रस्ताव से संबंधित मिनट्स को मंजूरी दी गई है।  इसके अगले चरण में बीआरएल-2 ट्रायल होता है।

जीईएसी की 148वीं बैठक 31 जनवरी, 2023 को हुई थी। बॉयोसीड की हाइब्रिड कपास जीई किस्म का ट्रायल हरियाणा, तेलंगाना, महाराष्ट्र और गुजरात में करने की मंजूरी दी गई थी। हरियाणा को छोड़कर बाकी तीनों राज्यों ने कपास की इस किस्म के ट्रायल को अनुमति देने से इन्कार कर दिया है। जीईएसी की 17 मई, 2023 की बैठक में तेलंगाना, महाराष्ट्र और गुजरात से फील्ड ट्रायल नहीं करने की वजह बताने के लिए कहा गया है।

इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में जीईएसी ने कपास की हर्बीसाइड टॉलरेंट बीटी कॉटन (एचटीबीटी) किस्म जिसे बॉलगार्ड टू राउंडअप रेडी फ्लेक्स (बीजी टू आरआरएफ) के नाम से जाना जाता है को मंजूरी नहीं दी है। इसके लिए महाराष्ट्र की कंपनी म्हाइको प्राइवेट लिमिटेड ने आवेदन किया है। जीईएसी ने म्हाइको को इस किस्म के प्रभाव और इसके सामाजिक आर्थिक परिणामों के बारे में और अधिक जानकारी देने के लिए कहा है। जीईएसी के इस रुख के चलते यह लगभग तय है कि इस साल कपास के सीजन में इस किस्म को मंजूरी की संभावना नहीं रह गई है।

जहां तक बॉयोसीड की हाइब्रिड कपास के जीई किस्म के फील्ड ट्रायल की बात है तो इसके लिए हरियाणा में हिसार जिले के बरवाला को चुना गया है। तेलंगाना में जनवाडा, महाराष्ट्र में जालना और अकोला को फील्ड ट्रायल के लिए चुना गया है। वहीं गुजरात में जूनागढ़ को फील्ड ट्रायल के लिए चुना गया है। मगर तेलंगाना, महाराष्ट्र और गुजरात ने ट्रायल की अनुमति देने से इन्कार कर दिया है। जबकि कपास में पिंक बॉलवार्म बीमारी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र और गुजरात में ही होती है।

जीएम फसलों के मामले में यूपीए सरकार के समय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के कार्यकाल के दौरान 2011 में एक अधिसूचना जारी कर जीएम फसलों के फील्ड ट्रायल के लिए राज्यों से नो ऑबजेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) को अनिवार्य कर दिया गया था। जीईएसी की मंजूरी के बाद भी जीएम किस्मों के फील्ड ट्रायल के लिए राज्यों से एनओसी मिलना जरूरी है। इसी प्रावधान के चलते जीईएसी की मंजूरी के बाद भी बॉयोसीड की नई जीएम किस्म का फील्ड ट्रायल महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात में नहीं हो पा रहा है। हालांकि, जीईएसी लगातार राज्यों को इस संबंध में लिख रही है। 17 मई की बैठक में तेलंगाना के अधिकारी शामिल हुए थे। जीईएसी ने फील्ड ट्रायल से इन्कार करने की वजह बताने के लिए राज्यों से कहा है। वहीं राज्यों को जीएम किस्मों के संबंध में सेंसिटाइज करने की बात भी जीईएसी ने कही है।

भारत में कपास पहली फसल है जिसकी जीएम किस्म के व्यावसायिक उत्पादन को मंजूरी दी गई है। यह मंजूरी सबसे पहले 2001 में दी गई थी। मंजूर की गई किस्म अमेरिकी कंपनी मोनसेंटो और भारतीय कंपनी म्हाइको के संयुक्त उद्यम को दी गई थी। उसके बाद बोलगार्ड टू किस्म को मंजूरी दी गई। पर्यावरणविद फसलों की जीएम किस्मों को मंजूरी का विरोध करते रहे हैं। इसके चलते पिछले एक दशक से किसी जीएम किस्म के व्यावसायिक उत्पादन को मंजूरी नहीं मिली है। पिछले साल अक्टूबर में जीएम सरसों की किस्म के फील्ड ट्रायल को जीईएसी ने मंजूरी दी थी, लेकिन यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि देश में गैर-कानूनी तरीके से बड़े पैमाने पर एचटीबीटी किस्म की खेती हो रही है। ऐसे में एचटीबीटी की मंजूरी को टालने का कोई औचित्य नहीं है। 

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