दार्जिलिंग के चाय बागानों पर पड़ रही दोहरी मार, उत्पादकता और कीमत दोनों घटी

चाय उत्पादकों का कहना है कि दार्जिलिंग के 87 चाय बागानों का सालाना उत्पादन 80 लाख किलो से अधिक हुआ करता था जो घटकर 65-70 लाख किलो रह गया है। पुराने पौधों, जलवायु परिवर्तन और कीटों के हमलों के कारण उत्पादकता घटी है। तराई और दुआर क्षेत्र की दूसरी फ्लश चाय दूसरी सबसे बड़ी फसल है जो मार्च के मध्य से जून तक होती है। यह सबसे महंगी चाय है। हालांकि, गर्मी के कारण इस चाय की मांग घटी है और उत्पादन भी घटा है।

दार्जिलिंग के चाय बागानों पर पड़ रही दोहरी मार, उत्पादकता और कीमत दोनों घटी
संकट से गुजर रहा दार्जिलिंग का चाय उद्योग

भारत की प्रीमियम चाय बेल्ट दार्जिलिंग के चाय उत्पादक इन दिनों दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तरफ उत्पादकता घट रही है, तो दूसरी ओर निर्यात बाजारों में कम कीमत मिलने से वे चिंतित हैं। उत्तर बंगाल के तराई और दुआर क्षेत्रों में उत्पादित चाय का बाजार मूल्य उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है। निराशाजनक आर्थिक स्थितियों की वजह से पश्चिमी यूरोप और जापान जैसे पारंपरिक बाजारों में कम कीमत मिल रही है।

चाय उत्पादकों का कहना है कि दार्जिलिंग के 87 चाय बागानों का सालाना उत्पादन 80 लाख किलो से अधिक हुआ करता था जो घटकर 65-70 लाख किलो रह गया है। पुराने पौधों, जलवायु परिवर्तन और कीटों के हमलों के कारण उत्पादकता घटी है। तराई और दुआर क्षेत्र की दूसरी फ्लश चाय दूसरी सबसे बड़ी फसल है जो मार्च के मध्य से जून तक होती है। यह सबसे महंगी चाय है। हालांकि, गर्मी के कारण इस चाय की मांग घटी है और उत्पादन भी घटा है।

भारतीय चाय निर्यातक संघ (आईटीईए) के अध्यक्ष अंशुमान कनोरिया का कहना है, “दार्जिलिंग चाय उद्योग आईसीयू में है। उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है, जबकि प्रतिकूल जलवायु के कारण फसल कम हो रही है। पश्चिमी यूरोप और जापान जैसे बाजारों में निराशाजनक आर्थिक स्थितियों की वजह से प्रीमियम चाय के निर्यात में गिरावट आ रही है। प्रीमियम चाय का मुख्य आधार निर्यात ही रहा है। दार्जिलिंग के कई बागान बंद होने की कगार पर हैं क्योंकि उनका संचालन जारी रखना मुश्किल होता जा रहा है।” उन्होंने कहा कि इस ज्वलंत मुद्दे पर आईटीईए चाय बोर्ड को संवेदनशील बनाने की कोशिश कर रहा है।

कनोरिया का कहना है, "दार्जिलिंग चाय उद्योग उन कारकों से प्रभावित हुआ है जो उनके नियंत्रण में नहीं हैं। यह उद्योग बिना सरकारी सहायता के जीवित नहीं रह सकता है। इस क्षेत्र के चाय बागान मालिकों को एकमुश्त सब्सिडी और प्रचार गतिविधियों के लिए फंड दिए जाने की आवश्यकता है।" कनोरिया ने कहा कि कि इस उद्योग को बचाए रखने और रियल एस्टेट कंपनियों को बागानों की बिक्री रोकने के लिए एकमुश्त सब्सिडी की आवश्यकता है।  मैत्री संधि के तहत नेपाल से मुक्त आयात के कारण दार्जिलिंग के चाय उद्योग को बहुत नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि आईटीईए ने डंपिंग को रोकने के लिए नेपाल से आयात की जाने वाली चाय पर न्यूनतम आयात मूल्य लागू करने का सुझाव दिया है।

आईटीईए के महासचिव अरिजीत राहा का कहना है, 'दार्जिलिंग में उत्पादन और कीमत दोनों में कमी आई है।2016 में उत्पादन 81.3 लाख किलो था जो 2022 में घटकर 66 लाख किलो रह गया। चाय की फसल का औसत नीलामी मूल्य 2021 में 365.45 रुपये प्रति किलो था जो 2022 में कम होकर 349.42 रुपये रह गया।'

राहा के मुताबिक, 2023 में खराब मौसम ने दार्जिलिंग में चाय के उत्पादन पर प्रतिकूल असर डाला है। मार्च में उत्पादन 43 फीसदी घट गया था। पिछले कुछ वर्षों में नेपाल से चाय के आयात में वृद्धि की वजह से भी दार्जिलिंग के चाय उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने बताया कि नेपाल से आयातित चाय की मात्रा दार्जिलिंग में होने वाले उत्पादन को पार कर गई जिससे कीमतों में स्थिरता आई। 2017 में नेपाली चाय के आयात की मात्रा 1.14 करोड़ किलो थी जो 2022 में बढ़कर 1.73 करोड़ किलो हो गई।

इसे देखते हुए आईटीईए ने नेपाल से आयातित चाय पर न्यूनतम आयात मूल्य लागू करने  के अलावा चाय उद्योग के पुनरुद्धार के लिए वित्तीय पैकेज की मांग की थी। वित्तीय पैकेज के तहत कार्यशील पूंजी कर्ज में वृद्धि और ब्याज दरों को पांच फीसदी किए जाने की मांग की गई थी।  

उत्तर बंगाल के टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया (टीएआई) के अध्यक्ष चिन्मय धर ने कहा, "बाजार में चाय की मांग कम हो गई है जिसकी वजह से सबसे अधिक बिकने वाली दूसरी फ्लश चाय की कीमत में 30-40 रुपये प्रति किलो की कमी आई है। साथ ही तापमान में बढ़ोतरी के कारण चाय की पत्तियों की नमी बनाए रखने के लिए कृत्रिम सिंचाई पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ा है। चाय की पत्तियों का उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में अप्रैल में 10 फीसदी तक कम रहा है। इसके अलावा जून से श्रमिकों की मजदूरी में 18 रुपये की वृद्धि हुई है। बागान मालिकों को हुए नुकसान की भरपाई अकेले बारिश से पूरी नहीं हो सकती है।"

भारतीय लघु चाय उत्पादक संघों के कन्फेडरेशन (CISTA) के अध्यक्ष बिजयगोपाल चक्रवर्ती ने कहा, “पिछले साल हमने दूसरे फ्लश की चाय की पत्तियों को चाय फैक्ट्रियों को लगभग 33 रुपये प्रति किलो की दर पर बेचा था लेकिन अब 15-18 रुपये कम मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि छोटे चाय उत्पादकों (एसटीजी) ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय को एक स्थिति रिपोर्ट सौंपी है जिसमें उनके सामने आने वाली समस्याओं को उजागर किया गया है और क्लस्टर स्थापित करके उनके संचालन के लिए सरकार से सहायता मांगी गई है।

चक्रवर्ती ने कहा, "हरी चाय की पत्तियों की कीमत के मुद्दे के समाधान के लिए चाय बोर्ड की अंतिम बोर्ड बैठक के दौरान एक दीर्घकालिक योजना पर चर्चा की गई थी। प्रभावित राज्य में प्रत्येक छोटे चाय बागान में एक फैक्ट फाइंडिंग कमिटी बनाने का निर्णय लिया गया था। हालांकि यह फैसला अभी तक लागू नहीं हुआ है। चिंता इस बात की है कि अगर चाय बोर्ड ने सरकारी स्तर पर तत्काल उपाय नहीं किए तो बड़े नुकसान और छोटे चाय बागानों के बंद होने का बड़ा खतरा है। स्थिति को और बिगड़ने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।” उन्होंने दावा किया कि देश के कुल चाय उत्पादन में छोटे चाय बागानों का योगदान 52 फीसदी के करीब है लेकिन उन्हें लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहा है, जबकि उत्पादन लागत बढ़ रही है।

सीआईएसटीए के मुताबिक, 2022 में उत्पादित 135 करोड़ किलोग्राम चाय में से 52 फीसदी का योगदान छोटे चाय उत्पादकों द्वारा किया गया था। मौजूदा समय में भारत में 2.4 लाख छोटे चाय उत्पादक हैं जिनका संयुक्त उत्पादन लगभग 69 करोड़ किलोग्राम है।

इस बीच, तृणमूल कांग्रेस के चाय बागान श्रमिक संघ (टीसीबीएसयू) के अध्यक्ष बीरेंद्र बारा उरांव ने जोर देकर कहा कि यदि चाय बागान को नुकसान होता है तो यह श्रमिकों को भी प्रभावित करता है। राज्य सरकार ने चाय बागानों के लिए बहुत कुछ किया है लेकिन चाय बोर्ड को इन मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है।

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