एग्रोफॉरेस्ट्री में किसानों की भूमिका जलवायु और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण, विशेषज्ञों ने किया प्रयास बढ़ाने का आह्वान
राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित एक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने भारत में एग्रोफॉरेस्ट्री यानी कृषि वानिकी के विस्तार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने जलवायु परिवर्तन और ग्रामीण आजीविका में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला। कृषि वानिकी के अंतर्गत केवल 8-10% कृषि योग्य भूमि है, इसलिए उन्होंने छोटे और सीमांत किसानों के सस्टेनेबल पद्धतियां अपनाने के लिए नीतिगत सुधारों और वित्तीय सहायता का सुझाव दिया।

कृषि वानिकी (एग्रोफॉरेस्ट्री) जलवायु परिवर्तन को रोकने, पारिस्थितिकी को सुधारने और ग्रामीण आजीविका के स्रोत के रूप में उभर रही है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में इसकी पूरी क्षमता का अभी तक दोहन नहीं हुआ है। नई दिल्ली में कृषि वानिकी के विस्तार पर आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में कृषि वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं ने इसे अपनाने को बढ़ावा देने के लिए मजबूत संस्थागत, वित्तीय और नीतिगत ढांचों का सुझाव दिया।
ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (TAAS) के चेयरमैन डॉ. आर.एस. परोदा ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, "कृषि वानिकी अपनाने वाले किसान एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय सेवा प्रदान कर रहे हैं। उन्हें उनके इस योगदान के लिए उचित पुरस्कार मिलना चाहिए।"
आईसीएआर के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) डॉ. राजबीर सिंह ने चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जहां 86% भारतीय किसान छोटे और सीमांत हैं, वहीं 2.8 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से केवल 8-10% ही कृषि वानिकी के अंतर्गत है। उन्होंने क्षमता निर्माण को मजबूत करने, क्षेत्र-विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉडल विकसित करने और विकास को गति देने के लिए संस्थागत कन्वर्जेंस सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।
तास, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), आईसीएआर-केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान, झांसी और विश्व कृषि वानिकी केंद्र (आईसीआरएएफ) के भारत कार्यालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस सम्मेलन में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ मौजूद थे। इसमें आईसीएआर के उप महानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) डॉ. ए. के. नायक, तास के सचिव डॉ. भाग मल, आईसीआरएएफ के पूर्व उप महानिदेशक डॉ. रवि प्रभु और सीआईएफओआर-आईसीआरएएफ, भारत के कंट्री डायरेक्टर डॉ. मनोज डबास शामिल थे। सीआईएफओआर-आईसीआरएएफ की सीईओ और आईसीआरएएफ, नैरोबी की महानिदेशक डॉ. एलियाने उबालिजोरो ने भी इस कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया। दो दिवसीय परामर्श 19 सितंबर को संपन्न हुआ।
डॉ. आर.एस. परोदा, चेयरमैन, तास
कृषि वानिकी की बढ़ती प्रासंगिकता
कृषि वानिकी में वृक्ष को कृषि प्रणाली में इंटीग्रेट किया जाता है। जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन के लिए कृषि वानिकी को वैश्विक समाधान के रूप में पहचाना गया है। प्राकृतिक वनों पर दबाव के बीच यह धरती पर हरियाली का विस्तार करने, बंजर भूमि के पुनर्वास और भोजन, चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और जैव विविधता का एक व्यवहार्य मार्ग प्रदान करती है।
विश्व स्तर पर लगभग 1.2 अरब लोग एक अरब हेक्टेयर में कृषि वानिकी करते हैं, जो कुल कृषि भूमि का 10% है। भारत में कृषि वानिकी औद्योगिक लकड़ी की आपूर्ति को बढ़ावा देने में सहायक रही है। यह औद्योगिक लकड़ी की लगभग 90% मांग को पूरा करती है, जबकि सरकारी वन 4% से भी कम योगदान देते हैं। 2015 से 2019 के बीच वनों के बाहर वृक्ष आवरण में 1.8% की वृद्धि हुई, जिसमें से 86% कृषि वानिकी के कारण हुई।
नीतिगत समर्थन और निवेश
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (NAP) ने कृषि वानिकी उप-मिशन के अंतर्गत 14.63 करोड़ डॉलर के आवंटन सहित महत्वपूर्ण प्रोत्साहन प्रदान किया है। इस नीति ने 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 650 प्रजातियों की खेती, कटाई और परिवहन संबंधी बाधाओं को दूर किया है। कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के तहत 3.5 अरब डॉलर के निवेश ने भी बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण पहलों को समर्थन दिया है।
वर्ष 2023 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत एक कृषि वानिकी घटक की शुरुआत की, जिसका प्रस्तावित बजट 5.4 करोड़ डॉलर है। यह राज्यों के साथ साझेदारी में गुणवत्तापूर्ण सामग्री के उत्पादन पर केंद्रित है।
डॉ. राजबीर सिंह, आईसीएआर के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार)
व्यापक रूप से अपनाने में चुनौतियां
नीतिगत प्रगति के बावजूद कई बाधाएं बनी हुई हैं। कुछ राज्यों में कृषि वानिकी प्रजातियों की कटाई और परिवहन पर नियामक प्रतिबंध किसानों को हतोत्साहित करते हैं। कई मंत्रालयों और राज्य सरकारों के विभागों को शामिल करने वाला प्रशासनिक ढांचा अक्सर विसंगतियां पैदा करता है।
इसके अलावा, भारत की कृषि की रीढ़ कहे जाने वाले छोटे और सीमांत किसान सीमित आर्थिक क्षमता, मूल्य संबंधी जानकारी के अभाव और कमजोर बाजार ढांचे के कारण कृषि वानिकी को अपनाने में कठिनाई का सामना करते हैं। हालांकि यह दीर्घकालिक रूप से लाभदायक है, लेकिन बाजार में उतार-चढ़ाव और अपर्याप्त संस्थागत समर्थन से होने वाले जोखिम अभी गंभीर चिंता का विषय बने हुए हैं।
विस्तार के अवसर
सम्मेलन में विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के जलवायु और विकास लक्ष्यों के लिए कृषि वानिकी में अपार संभावनाएं हैं। यह कार्बन अवशोषण में योगदान देता है, जैव विविधता को बढ़ावा देता है और मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। भोजन और चारे से लेकर इमारती लकड़ी और गैर-इमारती वन उत्पादों तक, विविध आजीविका विकल्प प्रदान करने की अपनी क्षमता के साथ कृषि वानिकी ग्रामीण आय को उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकती है।
भारत में पारंपरिक कृषि वानिकी प्रणालियों, जैसे कृषि वन - कृषि और वन - पशुपालन का एक मजबूत आधार भी है। इन्हें पुनर्जीवित करते हुए आधुनिक बनाया जा सकता है। विशिष्ट जर्मप्लाज्म, विभिन्न किस्मों के विकास और क्षेत्र-विशिष्ट कृषि वानिकी मॉडलों पर शोध उत्पादकता को और बढ़ा सकते हैं।
सम्मेलन का समापन अनुसंधान को मजबूत करने, अंतर-मंत्रालयी समन्वय सुनिश्चित करने और किसान-हितैषी नीतियों को व्यापक बनाने के आह्वान के साथ हुआ। विशेषज्ञों ने बाजार निर्माण, वित्त तक बेहतर पहुंच और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करने वाले किसानों को प्रोत्साहन देने का सुझाव किया। उनका कहना था कि कृषि वानिकी पहले से ही भारत की औद्योगिक लकड़ी की जरूरतों को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन में योगदान देने में अपनी उपयोगिता साबित कर रही है। ऐसे में इसे अपनाने से न केवल पर्यावरण बल्कि लाखों किसानों की आर्थिक क्षमता में भी बदलाव आ सकता है।