पाम उत्पादन में भारत की चुनौतियां अलग, इन्हें प्राथमिकता देना जरूरी: जोसेफ डी'क्रूज

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पाम ऑयल उपभोक्ता है, जिसकी खपत हर साल लगभग 90 लाख टन तक पहुंच गई है। पाम तेल अब भारत के खाद्य तेल की खपत का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है। इस मांग को पूरा करने के लिए देश लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है

पाम उत्पादन में भारत की चुनौतियां अलग, इन्हें प्राथमिकता देना जरूरी: जोसेफ डी'क्रूज

खाद्यान्न तेल में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने हाल ही पाम ऑय़ल का घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की घोषणा की है। यह पाम ऑय़ल उत्पादन से आर्थिक और सामाजिक मूल्यों को प्रदर्शित करने का एक बड़ा अवसर है। यह बात आगरा में राउंडटेबल ऑन सस्टेनेबल पाम ऑयल (आरएसपीओ) के सीईओ जोसेफ डी'क्रूज ने ग्लोबॉयल इंडिया सम्मेलन में कही। उन्होंने कहा कि घरेलू उत्पादन चेन में स्थायी सिस्टम सुनिश्चित करते हुए भारत इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व कर सकता है।

आरएसपीओ के सीईओ का कहना था कि हालांकि भारत में उत्पादन और चुनौतियां अन्य पाम उत्पादक देशों से बहुत अलग हैं, इसलिए यह जरूरी है कि भारतीय किसानों की आजीविका, जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए।

आरएसपीओ वैश्विक स्तर पर मल्टी स्टेकहोल्डर स्तर पर स्थायी पाम तेल उत्पादन को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए मार्केट सिस्टम विकसित और कार्यान्वित करता है। डी'क्रूज़ ने कहा कि उभरती अर्थव्यवस्था की जीडीपी के लिए पाम एक महत्वपूर्ण फसल है। दुनिया में लाखों छोटे किसान अपनी आजीविका के लिए पाम ऑयल के उत्पादन पर निर्भर हैं जिनमें भारत भी शामिल है। उन्होंने कहा कि आरएसपीओ वर्तमान में पाम ऑयल की खेती के लिए भारत के सबसे बड़े पाम तेल के उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश में ट्रेनिंग और किसानों के क्षमता निर्माण पर कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त में कृषि उद्योग जिन चुनौतियों से जूझ रहा है उनका संगठन उसपर गौर कर रहा है। इसमें वैश्विक संकटों का चौतरफा वार जैसे कि खाद्य असुरक्षा का खतरा, विश्व में छा रही आर्थिक मंदी, यूक्रेन में चल रहा युद्ध और बाधित कृषि आपूर्ति श्रृंखला शामिल हैंं।

इन चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए डी'क्रूज़ ने कहा कि जलवायु संकट अब दूर की आशंका नहीं है बल्कि एक वास्तविकता का रूप ले चुका है जिसका हम सभी अनुभव कर रहे है। लेकिन इसके साथ हमारे लिए यह एक अवसर भी है कि हम यह दिखा सकें कि कैसे स्थाई पाम ऑयल गरीबी को कम करते हुए सप्लाई गैप को भर सकता है। इसके साथ जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण और सामाज पर पड़ने वाले प्रभावों को कम कर सकता है।

डी'क्रूज़ ने कहा कि आरएसपीओ प्रमाणीकरण मानक से कहीं अधिक है। हम भारतीय उद्योग, सरकार और अन्य हितधारकों के साथ काम करने के लिए इच्छुक हैं ताकि पाम उद्योग के सतत विकास के माध्यम से भारत को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल सके।

स्थाई पाम ऑयल सप्लाई चेन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए आरएसपीओ  के डिप्टी डायरेक्टर, मार्केट ट्रांसफॉर्मेशन (भारत और चीन), अश्विन सेल्वराज ने कहा कि किसानों से लेकर बाजार तक वित्तपोषण के लिए मजबूत साझेदारी की क्षमता को अनलॉक करना जरूरी है, अगर हमें एक स्मार्ट, लचीला व टिकाऊ पाम ऑयल सप्लाई चेन बनानी है।

उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पाम ऑयल उपभोक्ता है, जिसकी खपत हर साल लगभग 90 लाख टन तक पहुंच गई है। पाम तेल अब भारत के खाद्य तेल की खपत का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है। इस मांग को पूरा करने के लिए देश लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा आयातक बन गया है। आयात 1994 में पांच लाख टन से बढ़कर 2018 में एक करोड़ टन पर पहुंच गया। इसमें से अधिकांश कच्चे रूप में घरेलू रूप से रिफाइन होने के लिए आता है, जबकि लगभग 30 प्रतिशत पहले से ही रिफाइन किया हुआ आता है। 2021 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम (NMEO-OP) शुरू किया। इसका लक्ष्य खाद्य तेल के आयात पर निर्भरता को कम करना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है।

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