खाद्य तेलों के रिकॉर्ड आयात पर बढ़ती निर्भरता और धुंधला होता आत्मनिर्भरता का सपना व जमीनी हकीकत

पिछले सप्ताह ही खाद्य तेलों के आयात के जो आंकड़े आये हैं उनके मुताबिक पिछले खाद्य तेल वर्ष (नवंबर, 2022 से अक्तबूर, 2023) के दौरान देश में खाद्य तेलों का आयात 165 लाख टन रहा जो इसके पहले साल के मुकाबले 25 लाख टन अधिक है। सरकार की खाद्य तेलों के लिए आत्मनिर्भरता की कोशिशों के बावजूद पिछले दस साल में खाद्य तेल आयात में डेढ गुना बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल कुल घरेलू उपलब्धता में घरेलू उत्पादन की हिस्सेदारी 38.6 फीसदी रही है जबकि आयात की हिस्सेदारी 61 फीसदी से भी अधिक रही है।  चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक देश है। देश में खाद्य तेलों की खपत और उत्पादन के अंतर को देखते हुए आयात में लगातार बढ़ोतरी के संकेत हैं। पिछले साल के आयात के यह आंकड़े साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने जारी किया हैं। ऐसे में वैश्विक बाजार में होने वाली कोई भी कीमत बढ़ोतरी मुश्किलें पैदा कर सकती है और 2021 में रूस-यूक्रेन युद्ध व उससे कुछ पहले इंडोनेशिया में पॉम ऑयल के उत्पादन में गिरावट के चलते कीमतों में भारी तेजी से असर हम घरेलू बाजार की कीमतों में देख चुके हैं।

खाद्य तेलों के रिकॉर्ड आयात पर बढ़ती निर्भरता और धुंधला होता आत्मनिर्भरता का सपना व जमीनी हकीकत

चालू रबी सीजन (2023-24) में फसलों की बुवाई का जो आंकड़ा 17 नवंबर को कृषि मंत्रालय ने जारी किया है उसके मुताबिक सबसे बड़े खाद्य तेल सरसों का क्षेत्रफल पिछले साल से कम चल रहा है। यह स्थिति इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि खाद्य तेलों के आयात पर हमारी निर्भरता घटने की बजाय बढ़ सकती है।  इसी बीच पिछले सप्ताह ही खाद्य तेलों के आयात के जो आंकड़े आये हैं उनके मुताबिक पिछले खाद्य तेल वर्ष (नवंबर, 2022 से अक्तबूर, 2023) के दौरान देश में खाद्य तेलों का आयात 165 लाख टन रहा जो इसके पहले साल के मुकाबले 25 लाख टन अधिक है। सरकार की खाद्य तेलों के लिए आत्मनिर्भरता की कोशिशों के बावजूद पिछले दस साल में खाद्य तेल आयात में डेढ गुना बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल कुल घरेलू उपलब्धता में घरेलू उत्पादन की हिस्सेदारी 38.6 फीसदी रही है जबकि आयात की हिस्सेदारी 61 फीसदी से भी अधिक रही है।  चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक देश है। देश में खाद्य तेलों की खपत और उत्पादन के अंतर को देखते हुए आयात में लगातार बढ़ोतरी के संकेत हैं। पिछले साल के आयात के यह आंकड़े साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) ने जारी किया हैं। ऐसे में वैश्विक बाजार में होने वाली कोई भी कीमत बढ़ोतरी मुश्किलें पैदा कर सकती है और 2021 में रूस-यूक्रेन युद्ध व उससे कुछ पहले इंडोनेशिया में पॉम ऑयल के उत्पादन में गिरावट के चलते कीमतों में भारी तेजी से असर हम घरेलू बाजार की कीमतों में देख चुके हैं। 

जहां तक आयात के मूल्य की बात तो पिछले तेल वर्ष (2022-23) में 16.7 अरब डॉलर रहा जो इसके पहले 19.6 अरब डॉलर रहा था। रुपये में आयात 2022-23 में 1,38.424 करोड़ रुपये और 2021-22 में 1,56,800 करोड़ रुपये रहा था। मूल्य के हिसाब से आयात में कमी की वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों के दाम का 2021 के उच्चतम स्तर के मुकाबले घटकर आधे से भी कम रह जाना रहा है। लेकिन वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों की अनिश्चितता कभी भी खड़ी हो सकती है। जहां 2021 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद खाद्य तेलों की कीमतों में भारी तेजी आयी थी वहीं लगभग उसी दौर में इंडोनेशिया में सूखे के चलते पॉम ऑयल के उत्पादन में गिरावट से कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई थी।  संयुक्त राष्ट्र के कृषि एवं खाद्य संगठन (एफएओ) का खाद्य तेल सूचकांक मार्च, 2022 में 251.8 अंकों पर था। जो अक्तूबर, 2023 में कम होकर 120 अंकों पर आ गया है। इसकी वजह से भारत में आयातित पॉम ऑयल की कीमत मार्च, 2022 के 1828 डॉलर प्रति टन से कम होकर 910 डॉलर प्रति टन रह जाना है। वहीं इसी दौरान सुरजमुखी तेल की आयात कीमत 225 डॉलर प्रति टन से कम होकर 1005 डॉलर प्रति रह गई। जिसके चलते खाद्य तेलों की महंगाई दर फरवरी से लगातार ऋणात्मक बनी हुई है।

भारत के कुल आयात में करीब आधा हिस्सा पॉम ऑयल का है। वहीं बाकी मात्रा में सुरजमुखी तेल, सोयाबीन तेल और कैनोला तेल शामिल है।  खाद्य तेल आयात में लगातार हो रही बढ़ोतरी को इससे समझा जा सकता है कि पिछले दस साल में 2013-14 के 116 लाख टन से बढ़कर 2022-23 में यह 165 लाख टन पर पहुंच गया है। वहीं उसके पहले दस साल में 2004-05 से 2013-14 के बीच यह 50 लाख टन से बढ़कर 116 लाख टन पर पहुंचा था।  

वहीं अगर हम खाद्य तेलों की घरेलू उपलब्धता को देखें तो इसमें बढ़ोतरी की बजाय कमी आ रही है। देश की कुल खाद्य तेल उपलब्धता 268 लाख टन है और इसमें 165 लाख टन आयात के आधार पर घरेलू उत्पादन की आपूर्ति केवल 103.3 लाख टन है जो कुल उपलब्धता का 38.6 फीसदी है। यानी आयात पर हमारी निर्भरता 61 फीसदी से भी अधिक है। वहीं अगर अगर 2004-05 की बात करें तो उस समय घरेलू उत्पादन 70 लाख टन था और आयात 50 लाख टन था। यानी घरेलू उत्पादन और आयात की स्थिति उस समय मौजूदा समय के उलट थी क्योंकि घरेलू आपूर्ति कुल आपूर्ति की 60 फीसदी पर थी। खाद्य तेल उद्योग के मुताबिक घरेलू खपत करीब 250 लाख टन है और साल 2029-30 में यह 300 से 320 लाख टन पर पहुंच जाएगी। ऐसे में आयात पर निर्भरता में बढ़ोतरी होने की संभावना है।

देश में खाद्य तेल उत्पादन में सबसे बड़ी हिस्सेदारी सरसों की है और उसके बाद सोयाबीन की हिस्सेदारी है। साल 2022-23 में सरसों तेल का उत्पादन 39.80 लाख टन रहा। सोयाबीन तेल का उत्पादन 18.53 लाख टन रहा। जबकि कॉटनसीड तेल का उत्पादन 12.44 लाख टन और राइसब्रान ऑयल का उत्पादन 11 लाख टन रहा। मूंगफली 9.90 लाख टन और नारियल तेल का उत्पादन 3.90 लाख टन और पॉम ऑयल का उत्पादन 3.50 लाख टन रहा। इनके अलावा बाकी तेलों में सूरजमुखी, तिल और दूसरे स्रोतों से प्राप्त खाद्य तेल का उत्पादन 68 हजार टन से डेढ़ लाख टन के बीच रहा। साल 2022-23 में कुल खाद्य तेल उत्पादन 103.35 लाख टन रहा। वहीं 2013-14 में कुल घरेलू खाद्य तेल उत्पादन 78.02 लाख टन रहा था। यानी दस साल में इसमें करीब 25 लाख टन की ही बढ़ोतरी हो सकी है।

जहां तक आयात की बात  है तो 2022-23 में आयातित 164.7 लाख टन खाद्य तेल में से 98 लाख टन पॉम ऑयल का आयात इंडोनेशिया, मलयेशिया और थाइलैंड से हुआ। वहीं 37 लाख टन सोयाबीन तेल का आयात अर्जेंटीना और ब्राजील से हुआ जबिक 30 लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना से हुआ।

आयात में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी रहने की वजह घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी की नीतियों का नाकाम रहना रहा है। इसमें किसानों को मिलने वाले दाम से लेकर बेहतर उत्पादकता और तेल की मात्रा वाले बीजों पर शोध नहीं होना रहा है। वहीं सरकार की आयात नीति में आयात शुल्क दरों का झुकाव आयातकों और उपभोक्ताओं के पक्ष में रहा है। मसलन पिछले साल जब सरसों की फसल बाजार में आ रही थी तो उस समय भी सरकार ने सस्ती आयात शुल्क दरों पर खाद्य तेलों का आयात जारी रखा। इसकी वजह से पिछले 2022-23 रबी सीजन के लिए तय 5450 रुपये प्रति क्विटंल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुकाबले अधिकांश किसानोंको 4000 रुपये से 4500 रुपये प्रति क्विटंल पर सरसों बेचनी पड़ी। जबकि इसके पहले साल सरसों की कीमतें 8000 रुपये प्रति क्विटंल तक चली गई थी। जिसके चलते किसानों ने 2022-23 के रबी सीजन मे सरसों के क्षेत्रफल में बढ़ोतरी की थी।

लेकिन इस साल सरसों का उत्पादन क्षेत्रफल प्रभावित हो सकता है। जो 17 नवंबर तक के आंकड़ों में पिछले साल से कम चल रहा है। दूसरे बड़े खाद्य तेल सोयाबीन का उत्पादन इस साल कम रहेगा। कृषि मंत्रालय के पहले अग्रिम अनुमानों के मुताबिक खरीफ 2023-24 में सोयाबीन का उत्पादन पिछले साल से करीब 40 लाख टन कम रहेगा। जहां तक कॉटनसीड ऑयल की बात तो इस साल कपास का उत्पादन पिछले साल से कम और इसमें कई साल से लगातार गिरावट आ रही है। जिसके चलते कॉटनसीड ऑयल का उत्पादन भी कम रहेगा। बाकी तेलों में भी किसी में कोई बड़ी बढ़ोतरी खरीफ सीजन में तो नहीं हो रही है। ऐसे में अगर चालू तेल वर्ष (2023-24) में आयात में बढ़ोतरी होती है और घरेलू हिस्सेदारी और अधिक गिरता है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सरकार ने ऑयल पॉम मिशन के तहत पूर्वोत्तर के राज्यों में पॉम प्लांटेशन का प्रोजेक्ट शुरू किया है लेकिन वहां के कई राज्य उसके विरोध में है। ऑयल पाम मिशन का मकसद पॉम ऑयल का घरेलू उत्पादन बढ़ाकर आयात  निर्भरता को कम करना है। लेकिन पारंपरिक सरसों तेल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए इसकी अधिक उत्पादकता वाली किस्मों पर शोध और मंजूरी को लेकर सरकार की सक्रियता बहुत अधिक नहीं दिखती है। ऐसे में खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता का सपना पूरा होने में अभी लंबा समय लगेगा। या फिर खाद्य तेलों के मामले में भी कच्चे तेल के आयात जैसी स्थिति बनी रह सकती है। ऐसे में जिस तरह दो साल पहले वैश्विक बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में भारी इजाफा हुआ था उसके चलते आयात पर हमारी निर्भरता घरेलू कीमतों के मोर्चे पर कभी भी मुश्किलें खड़ी कर सकती है।

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