क्यों महत्वपूर्ण है भारत-अमीरात आर्थिक समझौता, इससे कैसे बढ़ेगा निर्यात

संयुक्त अरब अमीरात जैसे पुनर्निर्यात करने वाले किसी देश के साथ मुक्त व्यापार समझौता भी एक बड़ी समस्या है। ऐसे में कोई तीसरा देश अमीरात के जरिये भारत द्वारा समझौते के तहत शुल्क दरों में की गई कटौती का फायदा उठाकर अपने उत्पादों का भारत को निर्यात कर सकता है इस तरह के तरीके को सर्कमवेंशन एक्सपोर्ट कहा जाता है। हालांकि भारत ने इस तरह आशंका को देखते हुए कुछ संवेदनशील उत्पादों को समझौते के तहत शुल्क कटौती से बाहर रखा है

क्यों महत्वपूर्ण है भारत-अमीरात आर्थिक समझौता, इससे कैसे बढ़ेगा निर्यात

संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत का व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (सीईपीए) हाल ही पूरा हुआ है। इसे इस लिहाज से उल्लेखनीय माना जाना चाहिए कि इसमें कई बातें पहली बार हुई हैं। 2019 के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) के बाद पहली बार भारत सरकार ने आर्थिक सहयोग समझौते (ईसीए) में तेजी दिखाई है। भारत और अमीरात के बीच सीईपीए पहला ईसीए है जिसपर एक दशक से भी ज्यादा समय में भारत ने अमल किया है। इससे पहले 2011 में जापान के साथ सीईपीए हुआ था। यह खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के किसी सदस्य के साथ भारत का पहला ईसीए है। भारत सरकार कम से कम सात और ईसीए करना चाहती है और अमीरात के साथ हुआ सीईपीए उस दिशा में पहला कदम है। इसमें ऑस्ट्रेलिया के साथ अर्ली हार्वेस्ट डील में शामिल है जिसके अगले कुछ हफ्तों में पूरा हो जाने की उम्मीद है।

इस समय जिन ईसीए पर वार्ता चल रही है उन्हें पूरा करने में सरकार जल्दबाजी में नजर आती है। यह उस धारणा के विपरीत भी होगा कि भारत इस तरह की वार्ताओं में बेहद सुस्त गति से आगे बढ़ता है। अतीत की वार्ताओं में डिजिटल इकोनॉमी और सरकारी खरीद जैसे विषयों को सरकार दृढ़ता से बाहर रखती आई थी, लेकिन भारत-अमीरात सीईपीए में इसे शामिल किया गया है। यह इस बात का संकेत हो सकता है की ऐसी वार्ताओं में सरकार लचीला रुख अपनाने के लिए तैयार है। यह लचीलापन श्रम और पर्यावरण मानकों के मामले में भी दिखेगा या नहीं, अभी यह नजर आना बाकी है। यूरोपियन यूनियन और इंग्लैंड के साथ संभावित सीईपीए में वे देश इन मुद्दों को रखना चाहते हैं।

संयुक्त अरब अमीरात के साथ सीईपीए तीन कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला तो यह कि अमीरात ना सिर्फ मध्य पूर्व एवं उत्तर अफ्रीका (मेना) क्षेत्र के लिए गेटवे की तरह काम करता है, बल्कि अफ्रीका के अन्य क्षेत्रों के लिए भी। भारत सरकार ने भी अमीरात की भौगोलिक स्थिति के फायदे को समझा है जो फार्मा प्रोडक्ट के लिए ग्लोबल लॉजिस्टिक सेंटर के रूप में काम कर सकता है। अमीरात के पास तकनीकी रूप से एडवांस ट्रांसपोर्ट और स्टोरेज सुविधाएं उपलब्ध हैं और फार्मा प्रोडक्ट भारत के प्रमुख निर्यात आइटम में शामिल है। संयुक्त अरब अमीरात 2030 तक फार्मा प्रोडक्ट का ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन हब बनने की तैयारी कर रहा है और भारत सरकार का मानना है कि इससे अन्य बाजारों तक भारतीय प्रोडक्ट की पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी।

सीईपीए का दूसरा फायदा यह है के इससे उस देश के साथ गिरते व्यापारिक संबंधों को सुधारने में मदद मिलेगी जो 2012 तक भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार था। उस साल भारत और अमीरात के बीच 74.8 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था। भारत का सबसे अधिक निर्यात संयुक्त अरब अमीरात को ही होता था। 2011 में अमीरात को सबसे अधिक 38.3 अरब डॉलर का निर्यात किया गया था। उसके बाद निर्यात में लगातार गिरावट आई है। 2021 में भारत से अमीरात को सिर्फ 25.4 अरब डॉलर (नॉमिनल) का निर्यात हुआ। यह 2010 के 29.3 अरब डॉलर के निर्यात से भी कम है। 2021 में कोविड-19 का असर खत्म होने के बाद भारत से निर्यात में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली, लेकिन अमीरात को निर्यात नहीं बढ़ा। इसलिए सीईपीए भारत के लिए एक मौका है कि वह अपने इस पुराने सबसे बड़े निर्यात बाजार तक पहुंच बढ़ाने के अवसरों को खंगाले और बाधाओं को दूर करें।

तीसरा लाभ यह है कि भारत जीसीसी सदस्य देशों के साथ अपने रिश्तों को प्रगाढ़ बना सकता है। भारत ने 2004 में इस समूह के साथ फ्रेमवर्क एग्रीमेंट ऑन इकोनॉमिक कोऑपरेशन पर दस्तखत किए थे जिसका मकसद मुक्त व्यापार समझौते को अंजाम देना था। भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच सीईपीए से उस मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत नए सिरे से शुरू की जा सकती है।

अमीरात के साथ सीईपीए इस साल 1 मई से लागू हो जाएगा और सरकार अमीरात के बाजार में भारत की पहुंच को लेकर काफी आशान्वित है। ऐसा इसलिए क्योंकि अमीरात ने 97 फ़ीसदी टैरिफ लाइन, यानी वस्तुओं पर आयात शुल्क में छूट देने का ऑफर दिया है। यानी जिस दिन समझौता लागू होगा उसी दिन भारत के 90 फ़ीसदी निर्यात (मूल्य के लिहाज से) पर वहां कोई शुल्क नहीं लगेगा। अगले 5 से 10 वर्षों में भारत के 99 फ़ीसदी निर्यात पर अमीरात में कोई शुल्क नहीं लगेगा। माना जा रहा है कि अमीरात की तरफ से दी गई इस छूट से दोनों देशों के बीच व्यापार अगले 5 वर्षों में 100 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। पिछले साल द्विपक्षीय व्यापार 68.4 अरब डॉलर का था। सरकार के मुताबिक जो सेक्टर सबसे अधिक फायदे में रहेंगे उन में जेम्स और ज्वेलरी, टैक्सटाइल, लेदर, फुटवियर, स्पोर्ट्स गुड्स, प्लास्टिक, फर्नीचर, कृषि और वुड प्रोडक्ट, इंजीनियरिंग प्रोडक्ट, फार्मास्युटिकल्स, मेडिकल डिवाइस और ऑटोमोबाइल शामिल हैं। अभी संयुक्त अरब अमीरात को भारत से होने वाले कुल निर्यात का दो तिहाई पेट्रोलियम प्रोडक्ट, जेम्स एंड ज्वेलरी, अपैरल, आयरन और स्टील और उनके प्रोडक्ट तथा दूरसंचार उपकरणों का होता है। भारत के कुल निर्यात में इन वस्तुओं की 5 फ़ीसदी से अधिक हिस्सेदारी है। यही कारण है कि सीईपीए लागू होने के बाद भारत अपने निर्यात बास्केट में व्यापक बदलाव की उम्मीद कर रहा है।

सवाल है कि संयुक्त अरब अमीरात के आयात शुल्क में छूट दिए जाने से भारत का निर्यात बढ़ने की उम्मीद कितनी वास्तविक है। कहा जा सकता है कि भारत सरकार की उम्मीदों का पूरा होना दो बातों पर निर्भर करता है। पहला, सीईपीए लागू होने के बाद भारतीय उत्पादों को कितना वरीयता मार्जिन (प्रेफरेंस मार्जिन) मिलता है और दूसरा, रेगुलेटरी बाधाओं को कितने प्रभावी तरीके से दूर किया जाता है। प्रेफरेंस मार्जिन का मतलब मौजूदा शुल्क (मोस्ट फेवर्ड नेशन टैरिफ) और अमीरात की तरफ से भारत को ऑफर किए गए प्रेफरेंशियल टैरिफ के बीच अंतर से है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। संयुक्त अरब अमीरात के एमएफएन टैरिफ पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के आंकड़ों के मुताबिक अमीरात जितनी वस्तुओं का आयात करता है उनमें से 87.2 फ़ीसदी पर 5 फ़ीसदी आयात शुल्क लगता है और 11.2 फ़ीसदी पर कोई शुल्क नहीं लगता। बाकी बची 1.6 फ़ीसदी वस्तुओं पर ही 100 फ़ीसदी शुल्क लागू होता है। इनमें तंबाकू उत्पाद ज्यादा हैं जो विशेष वस्तु (प्रतिबंधित) श्रेणी में आते हैं। इसका मतलब यह है कि ज्यादातर उत्पादों पर प्रेफरेंस मार्जिन 5 फ़ीसदी से अधिक नहीं होगा। इसके अलावा, अमीरात ने ज्यादातर फार्मा प्रोडक्ट पर मोस्ट फेवर्ड नेशन के आधार पर आयात शुल्क पहले ही खत्म कर दिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो अमीरात की तरफ से शुल्क खत्म किया जाना भारत की निर्यात बढ़ोतरी में बहुत बड़ी भूमिका नहीं निभाने वाला। इसमें बड़ी भूमिका रेगुलेटरी बाधाएं दूर करने की हो सकती हैं।

इस संदर्भ में एक सकारात्मक उपाय फार्मास्युटिकल्स से जुड़ा है, जिससे भारतीय उत्पादों की बाजार पहुंच बढ़ जाएगी। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोपियन यूनियन और जापान के रेगुलेटर जिन उत्पादों को स्वीकृति दे चुके होंगे उन उत्पादों को अमीरात में 90 दिनों के भीतर ऑटोमेटिक रजिस्ट्रेशन और मार्केटिंग ऑथराइजेशन की सुविधा मिल जाएगी। भारत का निर्यात बढ़ाने के लिए इस तरह के कदम दूसरे क्षेत्रों में भी उठाने की जरूरत है।

अभी तक भारत सरकार ने सिर्फ उन फायदों के बारे में बताया है जो अमीरात की शुल्क कटौती से भारत को मिलेंगे। भारत को किन वस्तुओं पर और कितना शुल्क कम करना पड़ेगा इसके बारे में कोई स्पष्टता अभी तक नहीं दी गई है। सरकार जानती है कि यह किसी भी ईसीए का एक महत्वपूर्ण पहलू होता है क्योंकि इसी से तय होता है कि भारत अपने बाजार की पहुंच किस हद तक उपलब्ध कराएगा और भारत के शुल्क घटाने से अमीरात के साथ जो व्यापार असंतुलन बढ़ रहा है आने वाले दिनों में क्या वह और बढ़ेगा।

संयुक्त अरब अमीरात जैसे पुनर्निर्यात करने वाले किसी देश के साथ मुक्त व्यापार समझौता भी एक बड़ी समस्या है। ऐसे में कोई तीसरा देश अमीरात के जरिये भारत द्वारा समझौते के तहत शुल्क दरों में की गई कटौती का फायदा उठाकर अपने उत्पादों का भारत को निर्यात कर सकता है इस तरह के तरीके को सर्कमवेंशन कहा जाता है। हालांकि भारत ने इस तरह आशंका को देखते हुए कुछ संवेदनशील उत्पादों को समझौते के तहत शुल्क कटौती से बाहर रखा है। जिनमें डेयरी उत्पाद, चाय, कॉफी, रबड़, मसाले, चीनी, तंबाकू उत्पाद, फार्मास्यूटिकल उत्पाद, कुछ रसायन, एलुमिनियम और कॉपर के स्क्रैप, स्टील के कुछ उत्पाद, हेलीकॉप्टर और विमान शामिल हैं।

इसके अलावा सरकार के पास दो रक्षात्मक उपाय लागू करने का भी अधिकार है। पहला, किसी वस्तु की आयात मांग में अचानक तेजी से बढ़ोतरी होती है तो भारत को अस्थाई सेफगार्ड मेकैनिज्म लागू करने का अधिकार होगा। भारत और अमीरात के बीच सीईपीए पहला समझौता है जिसमें ऐसी व्यवस्था की गई है। दूसरा उपाय रूल ऑफ ओरिजिन का है। अमीरात के साथ सीजीपीए में इसका प्रावधान भी किया गया है। हालांकि इन उपायों पर लगातार निगरानी रखने की जरूरत है ताकि वे प्रभावी रह सकें।

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग के प्रोफेसर हैं)

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