ग्रामीण भारत पर प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का संकट

“ग्रामीण भारत का एजेंडा” विषय पर रूरल वॉयस और सॉक्रेटस द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में देश के विभिन्न पारिस्थितिक क्षेत्रों के ग्रामीणों के साथ बातचीत ने हमारे सबसे भयावह डर की पुष्टि की कि जलवायु परिवर्तन का असर वहां दिखने लगा है। अधिकांश प्रतिभागी कृषि और संबद्ध क्षेत्रों से जुड़े थे, इसलिए उन्होंने जलवायु परिवर्तन से फसलों को होने वाले नुकसान के बारे में विस्तार से बात की। उत्तर प्रदेश के किसानों ने बताया कि कैसे असामान्य रूप से ज्यादा तापमान ने गेहूं, आम और गन्ने की फसल को प्रभावित किया है। मार्च में बेमौसम बारिश के कारण गेहूं की पकी हुई फसल भी बर्बाद हो गई।

ग्रामीण भारत पर प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का संकट
इलस्ट्रेशन: आलोक श्रीवास्तव, सॉक्रेटस

आजकल हम दिन में चार अलग मौसम का अनुभव करते हैं। मौसम में इस बदलाव ने फसल चक्र और उत्पादकता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है” - पूर्वी पश्चिम खासी हिल्स, मेघालय का एक किसान।

“ग्रामीण भारत का एजेंडा” विषय पर रूरल वॉयस और सॉक्रेटस द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में देश के विभिन्न पारिस्थितिक क्षेत्रों के ग्रामीणों के साथ बातचीत ने हमारे सबसे भयावह डर की पुष्टि की कि जलवायु परिवर्तन का असर वहां दिखने लगा है। अधिकांश प्रतिभागी कृषि और संबद्ध क्षेत्रों से जुड़े थे, इसलिए उन्होंने जलवायु परिवर्तन से फसलों को होने वाले नुकसान के बारे में विस्तार से बात की। उत्तर प्रदेश के किसानों ने बताया कि कैसे असामान्य रूप से ज्यादा तापमान ने गेहूं, आम और गन्ने की फसल को प्रभावित किया है। मार्च में बेमौसम बारिश के कारण गेहूं की पकी हुई फसल भी बर्बाद हो गई।

राजस्थान में अनियमित बारिश के कारण किसानों को नुकसान हुआ। ओडिशा के प्रतिभागियों के मुताबिक, असामान्य रूप से भारी वर्षा ने उनकी फसलों को नष्ट कर दिया और मिट्टी की उपजाऊ सतह का क्षरण हुआ। ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से ओडिशा के तटीय इलाके के लोग प्रभावित हुए। मेघालय में सीढ़ीदार खेतों, खेतों की मेड़बंदी और खेतों के चारों तरफ पेड़ लगाने जैसे उपायों के बावजूद किसान भारी वर्षा के कारण मिट्टी के कटाव से प्रभावित हुए हैं। चूना पत्थर खनन और वनों की कटाई जैसी गतिविधियों ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है।

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अनियमित बारिश और असामान्य मौसम अप्रत्याशित समय पर कीटों के प्रकोप का कारण भी बन रहे हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान में गेहूं, आम,  मूंग और गन्ना जैसी फसलें साल के अलग-अलग समय में कीटों से प्रभावित रहीं। मेघालय में महिला किसान विभिन्न प्रकार के कीटों के प्रकोप से फसलों के नुकसान से परेशान थीं जो उनकी मक्का, सब्जी और फलों को प्रभावित कर रहे हैं। जो फसलें पहले कीटों से अप्रभावित थीं, जैसे अदरक, केला और रागी, वे कटवर्म जैसे नए कीटों से प्रभावित हो रही थीं। 

कई प्रतिभागियों ने प्राकृतिक खेती को इस संकट के समाधान के रूप में देखा और आशा जताई कि सरकार टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाएगी। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि प्राकृतिक आपदाओं और कीटों के हमलों के दौरान प्रभावी फसल बीमा जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।

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प्रतिभागियों के साथ बातचीत में यह आम धारणा भी गलत साबित हो गई कि पर्यावरण प्रदूषण मुख्य रूप से एक शहरी समस्या है। मुजफ्फरनगर में ग्रामीणों ने आसपास की चीनी मिलों और दूसरे उद्योगों से नहरों और अन्य जल स्रोतों में प्रदूषण की शिकायत की। ऐसा माना जाता है कि भोजन पर रासायनिक अवशेषों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में कैंसर और दिल की बीमारियां बढ़ रही हैं। इसकी गूंज जोधपुर में भी सुनाई दी। वहां प्रतिभागियों ने ग्रामीण क्षेत्रों में कैंसर के बढ़ते मामलों को कृषि में रसायनों के अत्यधिक उपयोग से जोड़ा। तमिलनाडु में ग्रामीणों ने बताया कि कैसे उद्योग जल स्रोतों में अपशिष्ट और सीवेज डंप कर रहे हैं और लीचिंग से भूजल दूषित हो रहा है।

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हमारे प्रतिभागियों को न केवल पर्यावरणीय मुद्दों का पता था, वे यह भी जानते थे कि वे जनप्रतिनिधियों से क्या चाहते हैं। कोयम्बटूर में प्रतिभागियों ने एक अधिक प्रभावी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण संयंत्र और हर गांव में बेहतर खाद्य उत्पाद क्षेत्र बनाये जाने का आह्वान किया। भुवनेश्वर के प्रतिभागियों ने कहा कि जागरूकता बढ़ाना, प्लास्टिक कचरे को कम करना और सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण हैं। मुजफ्फरनगर में ग्रामीणों ने पंचायत भूमि पर पेड़ लगाने और गांव के तालाबों, जंगलों के संरक्षण का प्रस्ताव रखा।

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हर जगह के ग्रामीण शहरी लोगों की तरह ही जागरूक युक्त थे। उनका रोजमर्रा का जीवन पर्यावरण पर अधिक निर्भर है, इसलिए उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अधिक तीव्रता से महसूस किया। वे सीमित संसाधनों से अपने परिवेश की सुरक्षा और संरक्षण के उपायों को लागू करने के इच्छुक थे।

(लेखिका सॉक्रेटस में एसोसिएट पद पर कार्यरत हैं )

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