ग्रामीण भारत में बेरोजगारी: सामान्य या मजबूरी?

“ग्रामीण भारत का एजेंडा” विषय पर रूरल वॉयस और सॉक्रेटस द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में ग्रामीणों के साथ बातचीत में बेरोजगारी एक बड़ी भयावह समस्या के रूप में सामने आई जो देश के सभी हिस्सों में एक जैसी है। देश के पांचों क्षेत्रों में हमने देखा कि युवाओं में बेरोजगारी एक विशेष मुद्दा बनकर उभरी। कुछ स्थानों पर शिक्षितों के लिए पार्ट टाइम रोजगार था, तो अन्य स्थानों पर उद्योगों की कमी की वजह से लोगों में निराशा थी।

ग्रामीण भारत में बेरोजगारी: सामान्य या मजबूरी?
इलस्ट्रेशनः आलोक श्रीवास्तव, सॉक्रेटस।

“ग्रामीण भारत का एजेंडा” विषय पर रूरल वॉयस और सॉक्रेटस द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में ग्रामीणों के साथ बातचीत में बेरोजगारी एक बड़ी भयावह समस्या के रूप में सामने आई जो देश के सभी हिस्सों में एक जैसी है। देश के पांचों क्षेत्रों में हमने देखा कि युवाओं में बेरोजगारी एक विशेष मुद्दा बनकर उभरी। कुछ स्थानों पर शिक्षितों के लिए पार्ट टाइम रोजगार था, तो अन्य स्थानों पर उद्योगों की कमी की वजह से लोगों में निराशा थी।

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आजीविका और सरकारी नीति के मुद्दों पर विभिन्न समूहों के बीच बहस हुई। कई लोग, विशेष रूप से कृषि में लगे लोग नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे उनके पेशे को अपनाएं। मुजफ्फरनगर में यह बात निकल कर सामने आई कि विकल्पों की कमी की वजह से कई युवा बेहतर अवसरों और अच्छी जीवन शैली की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन करने लगे हैं। किसान माता-पिता को कर्ज में डूबते देखना और खेती को अपनाने से हतोत्साहित होने के बाद कई युवा खेती में नहीं जाना चाहते हैं।

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गांव से होने वाले इस पलायन को कैसे रोका जा सकता है, इसका एक संभावित समाधान युवाओं को खेती के लिए तकनीकी शिक्षा से लैस करना है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। शैक्षिक पाठ्यक्रम काफी हद तक कृषि आवश्यकताओं से अलग हैं। 

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राजस्थान के जोधपुर में भी युवाओं की बेरोजगारी एक प्रमुख मुद्दा रही। यदि जनप्रतिनिधि छोटे व्यवसायों और मैन्युफैक्चरिंग सेटअप का समर्थन करने वाली नीतियों को प्राथमिकता देते हैं, तो उन्हें वोट मिलने की अधिक संभावना होगी। मेघालय में बेरोजगारी की वजह से युवाओं में नशीली दवाओं और शराब की लत बढ़ी रही है। 

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ओडिशा और तमिलनाडु, दोनों सम्मेलनों में राजनीतिक भ्रष्टाचार को उनके क्षेत्रों में बेरोजगारी से जोड़ा गया। ओडिशा में अप्रभावी शासन एक विशेष निराशा का कारण थी जिसका अक्सर हवाला दिया जाता रहा। इसके कारण सरकार द्वारा प्रस्तावित कई योजनाएं लागू नहीं हो पाईं। यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन सभी मामलों में पार्ट टाइम रोजगार और विकल्प की कमी को बेरोजगारी के समान महत्व वाली समस्याओं के रूप में पहचाना गया। 

(लेखिका सॉक्रेटस में  प्रोग्राम एसोसिएट पद पर कार्यरत हैं।)

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