मानसून की गतिविधि में रुकावट किसानों पर भारी, आईएमडी ने पूर्वानुमान में की नेगेटिव आईओडी की अनदेखी

पिछले दो हफ्ते में मानसून की गतिविधि में रुकावट के चलते सामान्य से 11.3 फीसदी कम बारिश कम बारिश हुई है। जिसके चलते चालू खरीफ सीजन में किसानों को जहां फसल बचाने की जद्दोजहद से गुजरना पड़ रहा है वहीं उनके लिए यह काफी महंगा साबित हो रहा है। मानसून की मौजूदा स्थिति के पीछे इंडियन ओशन डायपोल के नेगेटिव होने को मुख्य वजह माना जा रहा है। आईएमडी ने चालू मानसून सीजन के लिए बारिश के जो पूर्वानुमान जारी करते समय इस परिस्थिति को अनदेखा किया

मानसून की गतिविधि में रुकावट किसानों पर भारी, आईएमडी ने पूर्वानुमान में की नेगेटिव आईओडी की अनदेखी
मौसम विभाग के 2 जुलाई के मैप के मुताबिक 19 जून के बाद से मानसून की गतिविधि अटकी हुई है

पिछले दो हफ्ते में मानसून की गतिविधि में रुकावट के चलते सामान्य से 11.3 फीसदी कम बारिश कम बारिश हुई है। जिसके चलते चालू खरीफ सीजन में किसानों को जहां फसल बचाने की जद्दोजहद से गुजरना पड़ रहा है वहीं उनके लिए यह काफी महंगा साबित हो रहा है क्योंकि साल भर के भीतर डीजल की कीमतों में 16 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी  के कारण डीजल पंप से सिंचाई लागत बढ़ गई है। पंजाब जैसे कई राज्यों में किसानों को बिजली की किल्लत के चलते डीजल पंप के जरिये सिंचाई करनी पड़ रही है। वहीं मानसून की मौजूदा स्थिति के पीछे इंडियन ओशन डायपोल के नेगेटिव होने को मुख्य वजह माना जा रहा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने चालू मानसून सीजन के लिए बारिश के जो पूर्वानुमान जारी किये थे उनमें इस परिस्थिति को अनदेखा किया गया। जबकि कई दूसरे देशों के मौसम विज्ञान संस्थानों के मानसून मॉडल आईओडी के निगेटिव होने की संभावना जून में ही जता रहे थे। हिंद महासागर में आस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के पास समुद्र के पानी का तापमान बढ़ने की  घटना को आईओडी नेगेटिव कहा जाता  है।

जून का दूसरा हिस्सा और  जुलाई के शुरुआती दिन खरीफ सीजन की फसलों के लिए काफी अहम होते हैं और इस दौरान बारिश का न होना जहां खेतों में खड़ी फसलों के लिए दिक्कत पैदा करता है वहीं खरीफ की मुख्य फसल धान की ट्रांसप्लांटिग और दूसरी फसलों की बुआई में देरी हो सकती है। यह स्थिति देश की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती  है। पिछले दो साल रिकॉर्ड फसल उत्पादन के जरिये कोविड से जूझ रही घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा देने वाले कृषि क्षेत्र के लिए मानसून में रुकावट के चलते बारिश में कमी संकट का कारण बन सकती है। इसके चलते खरीफ फसलों, खासतौर से धान की उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हो रही है। पंजाब जैसे राज्य में किसान बिजली की किल्लत से जूझ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में बिजली की दरें पिछले दो साल में काफी अधिक बढ़ी हैं। वहीं डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं जिसके चलते डीजल पंप से सिंचाई काफी महंगी हो गई है।  

ऐसा लगता है कि मौसम विभाग ने चालू मानसून सीजन में बारिश के अनुमान जारी करते समय इंडियन ओशन (हिंद महासागर)  में हो रही घटनाओं की बजाय पेसिफिक ओशन (प्रशांत महासागर) में हो रही घटनाओं को ज्यादा प्राथमिकता दी। इंडियन ओशन डायपोल (आईओडी) को आईएमडी ने एक जून को जारी मानसून पूर्वानुमान में न्यूट्रल बताया था। यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमोसफोरिक एडमीनिस्ट्रेशन ने अल नीनो के 78 फीसदी न्यूट्रल रहने का अनुमान लगाया था। अल नीनो का बारिश पर असर पड़ता है लेकिन यह असर दक्षिण अमेरिका और आस्ट्रेलिया पर अधिक होता है। वहीं  जब हिंद महासागर का पूर्वी हिस्सा जो आस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के करीब है, वेस्टर्न ट्रोपिकल के मुकाबले असामान्य रूप से गर्म हो जाता है तो उससे भारत में बारिश पर प्रतिकूल असर होता है। मौसम विभाग ने जब एक जून को मानसून का पूर्वानुमान जारी किया तो उसने आईओडी कंडीशन को न्यूट्रल बताया था। इसके उलट दुनिया के कई मौसम मॉडल मानसून सीजन के दौरान आईओडी के नेगेटिव होने की संभावना बता रहे थे। इन अनुमानों के जारी होने के बाद से आईओडी के नेगेटिव होने की परिस्थिति में इजाफा होता गया है। यह बात आस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ मीटीरियोलॉजी की जून की रिपोर्ट में दी गई है। कई अन्य देशों के मौसम विज्ञान संस्थानों के मॉडलों में भी आईओडी के नेगेटिव होने का अनुमान लगाया गया है। इनमें  जुलाई से सितंबर के दौरान इंडियन ओशन में आईओडी के नेगेटिव होने की बात कही गई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि मई में बेमौसम की बारिश ने भी देश में मानसून के लिए जरूरी हीटिंग पैटर्न पर असर डाला है जो देश के भूभाग पर लो प्रेसर एरिया विकसित करने के लिए जरूरी है। मई में सामान्य से 74 फीसदी अधिक बारिश  हुई। एक जून से 16 जून के बीच सामान्य से 33 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। वहीं इसके बाद 17 जून से 2 जुलाई के बीच सामान्य से 11.3 फीसदी कम बारिश हुई है। इसका मतलब यह हुआ कि बेमौसम  की बारिश ने मानसून को प्रभावित कर दिया। इन तथ्यों ने आईएमडी की घोषणाओं पर सवाल खड़े किये हैं। अहम बात यह है कि कृषि विभाग से लेकर बिजली विभाग तक बिजली की जरूरत का आकलन मौसम विभाग की जानकारी के अनुसार करते हैं।

मानसून की ताजा स्थिति को इस स्टोरी के साथ दिये गये मैप से भी समझा जा सकता है। दो जुलाई को जारी आईएमडी की रिपोर्ट में कहा गया है जिस तरह से नार्दर्न लिमिट ऑफ मानसून धौलपुर, भीलवाड़ा, अलीगढ़, मेरठ, अंबाला और अमृतसर लाइन पर अटक गई है उसमें अगले पांच दिन किसी  बदलाव की संभावना नहीं है। इन स्थानों पर मानसून 19 जून से अटका हुआ है। हालांकि इस बीच कुछ जगहों पर छिटपुट बारिश हो सकती है।

अब बात किसानों पर पड़ रहे अतिरिक्त बोझ की। गुजरात से लेकर पंजाब तक किसानों को बारिश में कमी के चलते अपनी फसलों को बचाने से जूझना पड़ रहा है। पंजाब में किसान बिजली की किल्लत से जूझ रहे हैं। किसानों के विरोध के चलते  वहां पर अब सरकार उद्योगों की बिजली कटौती कर किसानों को बिजली देने का कदम उठा रही है। मानसून की रुकावट के चलते  किसानों पर पड़े वाले वित्तीय बोझ को समझने के लिए कुछ गणना करना जरूरी है।  एक एकड़ फसल की सिंचाई के लिए 12 हार्स पावर के डीजल पंप पर एक घंटे में डेढ़ लीटर डीजल खर्च होता है। एक एकड़ की सिंचाई के लिए पांच घंटे लगते हैं यानी 7.5 लीटर डीजल की खपत होती है। पिछले एक साल में डीजल की कीमत 16 रुपये प्रति लीटर बढ़ी है। इसके चलते एक एकड़ फसल की एक सिंचाई के लिए किसान का खर्च 120 रुपये बढ़ गया है। पंजाब जैसे राज्य में जहां मुफ्त बिजली है ऐसे में बिजली की किल्लत के चलते डीजल पंप से सिंचाई करने पर किसान के ऊपर  एक एकड़ फसल की सिंचाई के लिए 690 रुपये का बोझ पड़ रहा है।

जुलाई के  महीने की बारिश खरीफ फसलों के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। अगर इस दौरान बारिश कम होती है और सिंचाई की दूसरी व्यवस्था नहीं है तो खरीफ उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। वहीं बारिश पर आधारित क्षेत्रों में खरीफ की फसलों की बुआई में देरी होने से उत्पादन प्रभावित होगा। ऐसे में अगले 15 दिन काफी महत्वपूर्ण हैं।

Subscribe here to get interesting stuff and updates!