कोल्ड चेन के अभाव में हर साल 52.6 करोड़ टन खाद्य पदार्थ नष्ट होते हैंः यूएन रिपोर्ट

यह रिपोर्ट मिस्र के शर्म अल शेख में चल रहे 27वे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP27) के दौरान जारी की गई। इसके मुताबिक रेफ्रिजरेशन सुविधाओं के अभाव में हर साल 52.6 करोड़ टन खाद्य नष्ट हो जाते हैं, जो कुल वैश्विक उत्पादन का 12 प्रतिशत है

कोल्ड चेन के अभाव में हर साल 52.6 करोड़ टन खाद्य पदार्थ नष्ट होते हैंः यूएन रिपोर्ट

खाद्य असुरक्षा और ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के साथ सरकारों, अंतरराष्ट्रीय विकास संस्थानों और इंडस्ट्री को सस्टेनेबल फूड कोल्ड चेन में निवेश बढ़ाना चाहिए, ताकि भूख की समस्या कम की जा सके, लोगों को आजीविका मुहैया कराई जा सके और जलवायु परिवर्तन के असर को कम किया जा सके। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की तरफ से शनिवार को जारी सस्टेनेबल फूड कोल्ड चेन रिपोर्ट में यह बात कही गई है। यह रिपोर्ट मिस्र के शर्म अल शेख में चल रहे 27वे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP27) के दौरान जारी की गई। इसके मुताबिक रेफ्रिजरेशन सुविधाओं के अभाव में हर साल 52.6 करोड़ टन खाद्य नष्ट हो जाते हैं, जो कुल वैश्विक उत्पादन का 12 प्रतिशत है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे समय जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जलवायु और खाद्य संकट की समस्या के समाधान के लिए आगे बढ़ना चाहिए, सस्टेनेबल फूड कोल्ड चेन इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। यूएनईपी की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडरसन के अनुसार सस्टेनेबल फूड कोल्ड चेन हमें खाद्य पदार्थों के नुकसान को कम करने, खाद्य सुरक्षा बढ़ाने, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने, नई नौकरियां सृजित करने, गरीबी घटाने इन सब में मदद कर सकते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भूख की समस्या से पीड़ित लोगों की संख्या पिछले साल 82.8 करोड़ पहुंच गई। 2020 की तुलना में इसमें 4.6 करोड़ की वृद्धि हुई है। वर्ष 2020 के दौरान 3.1 अरब लोगों के पास स्वस्थ भोजन करने लायक सुविधा नहीं थी। 2019 की तुलना में यह संख्या 11.2 करोड़ बढ़ी है। कोविड-19 के कारण लोगों पर हुए आर्थिक असर और महंगाई इसकी प्रमुख वजह हैं। इस वर्ष रूस यूक्रेन युद्ध से अनाज की कीमतें बढ़ी हैं। इससे भी खाद्य सुरक्षा को खतरा बढ़ा है।

यह सब ऐसे समय हो रहा है जब मनुष्य की खपत के लिए उपजाए गए खाद्य पदार्थों का लगभग 14% लोगों तक पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाता है। इसका प्रमुख कारण एक सक्षम कोल्ड चेन का अभाव है, जिससे खाद्य पदार्थों की क्वालिटी और पोषण वैल्यू को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार अगर विकासशील देशों में विकसित देशों के बराबर कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित हो जाए तो वे देश हर साल 14.4 करोड़ टन खाद्य पदार्थ नष्ट होने से बचा सकते हैं।

फसल तैयार होने के बाद जो नुकसान होता है उससे दुनिया के 47 करोड़ छोटे किसानों की आमदनी 15% कम हो जाती है। ऐसा खासकर विकासशील देशों में ही होता है। सस्टेनेबल फूड कोल्ड चेन में निवेश करने से इन किसान परिवारों को गरीबी से निकालने में मदद मिलेगी।

फूड कोल्ड चेन का जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। रेफ्रिजरेशन के अभाव में जो खाद्य पदार्थों का नुकसान होता है और कचरा बनता है उससे होने वाला उत्सर्जन 2017 में एक गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर था। यह उस वर्ष कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 2% था। इससे खासकर मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है इसलिए इस पर ध्यान देकर वातावरण में मीथेन की मात्रा कम की जा सकती है।

सस्टेनेबल फूड कोल्ड चेन किस तरह अंतर पैदा कर रहे हैं, इसके कुछ उदाहरण भी दिए गए हैं। जैसे भारत में कोल्ड चेन पायलट प्रोजेक्ट से कीवी फल का नुकसान 76% कम हो गया। नाइजीरिया में 54 ऑपरेशन कोल्ड हब प्रोजेक्ट से 42000 टन खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचाया जा सका। इससे 5240 छोटे किसानों, रिटेलर और होलसेल विक्रेताओं की आमदनी 50% बढ़ गई। लेकिन इस तरह के कदम अभी इक्का-दुक्का जगहों पर ही हो रहे हैं।

रिपोर्ट में नीति निर्माताओं के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि कूलिंग टेक्नॉलॉजी को अपनाना ही काफी नहीं है, कोल्ड चेन में व्यापक नजरिया अपनाने की जरूरत है। अभी फूड कोल्ड चेन में कितनी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है और कितनी ऊर्जा की खपत होती है उसे देखते हुए उसकी मात्रा भी कम करने के उपाय तलाशे जाने चाहिए।

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