कृषि निर्यात के लिए किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता, उत्पादकता और गुणवत्ता पर जोर
भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) द्वारा रूरल वॉयस मीडिया के सहयोग से बुधवार को नई दिल्ली स्थित आईआईएफटी परिसर में कृषि निर्यात पर राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। सम्मेलन के दूसरे सत्र में 100 अरब डॉलर लक्ष्य की दिशा में अगला कदम विषय पर विचार-विमर्श किया गया

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का कृषि निर्यात लगभग 51.9 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। 2030 तक 100 अरब डॉलर कृषि निर्यात के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए नीतिगत सुधार, मूल्य संवर्धन, मजबूत बुनियादी ढांचे और वैश्विक बाजार पहुंच की आवश्यकता है। इसके लिए देश के किसानों को भी जागरूक और सक्षम बनाना होगा, ताकि वे विश्वस्तरीय गुणवत्ता वाला उत्पादन कर सकें।
भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) द्वारा रूरल वॉयस मीडिया के सहयोग से बुधवार को नई दिल्ली स्थित आईआईएफटी परिसर में कृषि निर्यात पर राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। सम्मेलन के दूसरे सत्र में 100 अरब डॉलर लक्ष्य की दिशा में अगला कदम विषय पर विचार-विमर्श किया गया।
इस अवसर पर पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव सिराज हुसैन ने देश के कृषि निर्यात में चावल की बड़ी हिस्सेदारी को देखते हुए अगले 15-20 वर्षों में भारतीय कृषि निर्यात के भविष्य के बारे में सोचने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में जल संकट के कारण धान की बजाय अन्य फसलें अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। ऐसे में अगर भविष्य में चावल, खासतौर से गैर-बासमती चावल, का निर्यात घटता है तो उसकी भरपाई कैसे होगी। सिराज हुसैन ने सुझाव दिया कि देश को गैर-बासमती चावल के निर्यात में कमी के लिए तैयार रहना चाहिए। दूसरे, ताजे फल-सब्जियों के निर्यात की बेहतर संभावना है। विशेष रूप से मध्य एशिया और मध्य पूर्व एशिया में भारत से इनके निर्यात की बेहतर संभावनाएं है। विकसित देशों में भी संभावना है, बशर्ते हम सेनेटरी और फाइटोसेनेटरी मानकों को पूरा करें। फलों के मामले में महाराष्ट्र के किसान अमेरिका और यूरोपीय यूनियन (ईयू) के एमआरएल मानकों को पूरा कर रहे हैं। हमें कृषि निर्यात को 50 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक ले जाने लिए उसी स्तर के स्ट्रक्चर की जरूरत है। केवल प्रोसेस्ड फूड से यह लक्ष्य संभव नहीं है, कुछ बड़े वॉल्यूम वाले उत्पादों की जरूरत होगी जिसमें गेहूं या दूसरे कुछ उत्पाद हो सकते हैं।
नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अनुपम कौशिक ने कहा कि सबसे पहले तो हमें कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी कर निर्यात के लिए सरप्लस पैदा करना होगा। तभी हम निर्यात बढ़ा सकेंगे। देश में 14 करोड़ से अधिक किसान हैं और 14 करोड़ हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि है, लेकिन पैदावार और किसानों की आय बहुत कम है। चीन हमसे 40 फीसदी कम जमीन में तीन गुना अधिक कृषि उत्पादन करता है। हमें उत्पादकता को बढ़ाने पर सबसे अधिक काम करने की जरूरत है। लेकिन कई जगह यह उल्टा हो रहा है। कपास में हमारा उत्पादन बढ़ने की बजाय घट गया है। जिससे हम निर्यात की बजाय कपास से आयातक बन गये हैं। कौशिक का मानना है कि कृषि निर्यात को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाना है तो कृषि उत्पादन की वैल्यू को एक ट्रिलियन डॉलर तक ले होगा। साथ ही देश की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना भी बड़ा मुद्दा है। हमें कंपलीट न्यूट्रिशियन सुरक्षा की ओर जाना होगा। हमें इसके साथ निर्यात के लिए एक बड़ा सरप्लस खड़ा करना होगा तभी हम 100 अरब डॉलर निर्यात की बात सोच सकते हैं।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) डॉ. राजबीर सिंह ने कहा कि 100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात लक्ष्य के साथ हमें खाद्य आयात को कम करने के बारे में भी सोचना होगा। अभी देश के कृषि निर्यात में चावल की बड़ी हिस्सेदारी है। लेकिन पानी की खपत को देखते हुए सस्टेनेबिलिटी एक बड़ा सवाल है। हमें इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए एक रोडमैप तैयार करने की जरूरत है। पिछले दस साल में कपास का उत्पादन 100 लाख गांठ उत्पादन गिर गया है। इसलिए निर्यात के लिए कृषि उत्पादों को अलग करके देखने की जरूरत है और उसी के अनुरूप रोडमैप तैयार करना होगा जो सस्टेनेबल हो। डॉ. सिंह ने कहा कि हमें दालों और तिहलन के मामले में क्षेत्रफल बढ़ाने की जरूरत है। हमें विचार करना चाहिए कि क्या चावल का क्षेत्रफल 50 लाख हेक्टेयर घटाकर अधिक उत्पादकता के जरिये उत्पादन बढ़ाया जाए और इसके स्थान पर दालों और तिलहन का क्षेत्र बढ़ाया जाए। देश में अधिकांश किसानों को निर्यात के बारे में मालूम ही नहीं है। किसानों को निर्यात और गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।
कृषि अर्थशास्त्री और आईसीएआर में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. स्मिता सिरोही ने कहा कि जब हम वैल्यू चेन की बात करते हैं तो उसकी शुरुआत गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज से होती है। लेकिन किसानों को निर्यात के बारे में पता ही नहीं है। फूड सेफ्टी और ट्रेसेबिलिटी जैसी बातें न तो किसानों को बताई जाती हैं और न ही कृषि शिक्षा के पाठ्यक्रमों का हिस्सा हैं। क्लोरोफिल फॉस्फेट जैसा केमिकल बहुत सारे देशों में प्रतिबंधित है लेकिन भारत में कुछ फसलों के लिए इसके उपयोग की अनुमति है। इसके चलते भारत के निर्यात कंसाइनमेंट रिजेक्ट होते रहे हैं। इससे निर्यात को नुकसान पहुंचता है। हमें समझना होगा कि ट्रेसेबिलिटी के बिना ट्रेड संभव नहीं है। हमारे पास 700 से अधिक कृषि विज्ञान केंद्र हैं, जिनके जरिये हम किसानों को गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिस में कुशल बना सकते हैं। उनको जानकारी दे सकते हैं कि क्या प्रतिबंधित है और क्या नहीं। फूड सेफ्टी, फूड स्टैंडर्ड, उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ाना यह सब कृषि शिक्षा का हिस्सा होना चाहिए।
डॉ. सिरोही का मानना है कि कृषि निर्यात को 100 अरब डॉलर तक ले जाना महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। लेकिन यह संभव है। उसके लिए बेहतर तालमेल और एक रोडमैप बनाने की जरूरत है। कृषि मंत्रालय, खाद्य मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय के बीच बेहतर तालमेल की जरूरत है। कृषि निर्यात के लिए हमें एक समर्पित सेल बनाने की जरूरत है जिसमें सभी संबंधित विभागों और दक्षता के सदस्य हों। आर्गेनिक सर्टिफिकेशन एक बड़ा मुद्दा है। ईयू ने देश की पांच आर्गेनिक सर्टिफिकिटेशन एजेंसियों को प्रतिबंधित कर दिया था। व्यापार समझौतों को लेकर डॉ. सिरोही का मानना है कि इसमें गिव एंड टेक से ही काम चलेगा। ऐसा नहीं हो सकता है कि हम सिर्फ निर्यात करेंगे और आयात नहीं करेंगे। व्यापार समझौतों में दोनों पक्ष अपना फायदा चाहते हैं, इस तथ्य को हमें स्वीकार करना चाहिए।
सम्मेलन का समापन करते हुए आईआईएफटी के वीसी प्रो. राकेश मोहन जोशी ने कहा कि कृषि उत्पादों के मामले में मार्केट इंटेलीजेंस और प्रमोशन का उपयोग दूसरे देश हमारे बाजार में अपने उत्पादों की खपत बढ़ाने के लिए कर रहें। अमेरिका के बादाम, पिस्ता, अखरोट और वाशिंगटन एप्पल इसका उदाहरण हैं। कैलिफोर्निया वालनट कमीशन और वाशिंगटन एप्पल कमीशन भारतीय बाजार में अपने उत्पादों को जगह दिलाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। हमें भी देश के बाहर अपने उत्पादों के लिए इसी प्रकार के प्रयास करने की जरूरत है। सम्मेलन का संचालन आईआईएफटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अरुणिमा राणा ने किया।
रूरल वॉयस के प्रधान संपादक हरवीर सिंह ने कृषि निर्यात जैसे अहम मुद्दे पर सार्थक संवाद के लिए आईआईएफटी, सभी पैनलिस्ट, कृषि वैज्ञानिकों, उद्योग जगत व किसान प्रतिनिधियों को धन्यवाद दिया। इस अवसर पर आईआईएफटी की विभागाध्यक्ष डॉ. पूजा लखनपाल और सहयोगी उपस्थित रहे।