नीति आयोग का अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैरिफ घटाने और जीएम सोयाबीन, मक्का के लिए बाजार खोलने का सुझाव

नीति आयोग ने वर्किंग पेपर में कहा है कि भारत उन कृषि उत्पादों पर टैरिफ घटाने पर विचार कर सकता है, जिनका घरेलू उत्पादन कम है या जो स्थानीय उत्पादों से प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं।

नीति आयोग का अमेरिकी  कृषि उत्पादों पर टैरिफ घटाने और जीएम सोयाबीन, मक्का के लिए बाजार खोलने का सुझाव

भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने भारत और अमेरिका के बीच व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से चुनिंदा अमेरिकी कृषि उत्पादों पर ऊंचे टैरिफ (आयात शुल्क) घटाने और जीएम सोयाबीन व जीएम मक्का जैसे उत्पादों के लिए भारतीय बाजार खोलने की सिफारिश की है। खासतौर पर खाद्य तेल और सूखे मेवों बादाम, अखरोट और पिस्ता जैसे उन उत्पादों के आयात पर रियायत देने का सुझाव दिया गया है, जिनकी घरेलू खपत का अधिकांश आयात होता है। इसके साथ ही चावल और काली मिर्च जैसे उत्पादों पर भी रियायत की सिफारिश है जिनके मामले में भारत बहुत बेहतर स्थिति में है।

आयोग के वर्किंग पेपर में कहा गया है कि कृषि उत्पादों के ट्रेड से जुड़े आंकड़ों और दूसरी सूचनाओं के मामले में हमारी स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है। वैश्विक बाजार में मांग-आपूर्ति और कीमतों में उतार-चढ़ाव पर नजर रखने के लिए ‘एग्री ट्रेड इंटेलिजेंस सेल’ के गठन का सुझाव दिया गया है। 

यह वर्किंग पेपर नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद और वरिष्ठ सलाहकार राका सक्सेना द्वारा लिखा गया है। संयोग से यह पेपर ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर बातचीत चल रही है और 4 से 10 जून के बीच अमेरिकी वार्ताकारों की टीम नई दिल्ली में मौजूद थी।

नीति आयोग की ओर से हाल ही में जारी इस वर्किंग पेपर में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप द्वारा ‘रिसिप्रोकल टैरिफ’ की घोषणा के बाद बनी परिस्थितियों के मद्देनजर भारत-अमेरिका व्यापार बढ़ाने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। आयोग ने विशेष रूप से भारतीय कृषि क्षेत्र, खासकर डेयरी और पोल्ट्री क्षेत्र, के हितों की रक्षा तथा ढांचागत व बाजार सुधारों के जरिए कृषि निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने पर बल दिया है।

जीएम सोयाबीन के आयात का सुझाव

वर्किंग पेपर के मुताबिक, भारत खाद्य तेल का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक है जबकि अमेरिका के पास सोयाबीन का बड़ा उत्पादन है जो अनुवांशिक रूप से संवर्धित (जीएम) है। भारत, घरेलू उत्पादन को नुकसान पहुंचाए बिना, सोयाबीन तेल के आयात में अमेरिका को कुछ रियायत देकर व्यापार असंतुलन से जुड़ी उसकी चिंताओं को संबोधित कर सकता है।

नीति आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि सोयाबीन का आयात कर तटीय क्षेत्रों में तेल निकालने के विकल्प पर भी विचार करना चाहिए। इस तेल को घरेलू बाजार में बेचा जाए और सोयामील (बाय-प्रोडक्ट) का निर्यात कर भारतीय बाजार में जीएम फीड से बचा जा सकता है।  

इसी तरह, इथेनॉल के लिए अमेरिका में उत्पादित जीएम मक्का के आयात की सिफारिश की गई है। मक्का के बाय-प्रोडक्ट (डीडीजीएस) को पूरी तरह निर्यात कर देश में जीएम फीड का लाने से बचा जा सकेगा। चूंकि अमेरिकी मक्का सस्ता है, इसका उपयोग स्थानीय फूड और फीड मार्केट को बाधित किए बिना, भारत के जैव ईंधन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है। 

टैरिफ घटाने का सुझाव

नीति आयोग के वर्किंग पेपर के अनुसार, भारत उन कृषि उत्पादों पर कम टैरिफ लगाने पर विचार कर सकता है, जिनका घरेलू उत्पादन कम है या जो गुणवत्ता और मौसम के कारण स्थानीय उत्पादों से प्रतिस्पर्धा नहीं करते। उदाहरण के लिए, अमेरिकी सेब अपनी अलग गुणवत्ता, लंबी शेल्फ लाइफ और ऑफ-सीजन उपलब्धता के कारण भारतीय बाजारों में प्रीमियम कीमत पर बिकते हैं। नीति आयोग का मानना है कि ऐसे उत्पादों पर टैरिफ को मामूली रूप से समायोजित करने से घरेलू किसानों को नुकसान नहीं होगा।

इसी तरह, भारत बादाम, अखरोट और पिस्ता की अधिकांश मांग आयात से पूरी करता है, इसलिए इन पर भी कुछ रियायतें दी जा सकती हैं।  

संवेदनशील क्षेत्रों का बचाव

नीति आयोग ने डेयरी और पोल्ट्री जैसे संवेदनशील उत्पादों को द्विपक्षीय व्यापार समझौतों में संरक्षित करने की सिफारिश की है। अमेरिका में पोल्ट्री को अक्सर बीमारियों (जैसे एवियन फ्लू) खतरा रहता है। आयोग ने भारत के गुणवत्ता वाले डेयरी उत्पादों के अमेरिकी बाजार में निर्यात की संभावनाओं को भी रेखांकित किया है।  

भारतीय निर्यातों के लिए बाजार पहुंच

वर्किंग पेपर में सुझाव दिया गया है कि भारत को अच्छा प्रदर्शन वाले कृषि निर्यातों जैसे झींगा, मछली, मसाले, चावल, चाय, कॉफी और रबर के लिए अमेरिकी बाजार में बेहतर पहुंच के लिए प्रयास करना चाहिए। भारत सालाना लगभग 5.75 अरब डॉलर के कृषि उत्पाद अमेरिका को निर्यात करता है। टैरिफ रियायत या ‘टैरिफ रेट कोटा’ (TRQ) के माध्यम से इसे और बढ़ाया जा सकता है। 

मार्केटिंग सुधार और निर्यात सुविधा

भारतीय कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नीति आयोग ने मार्केटिंग सुधारों और निर्यात सुविधाओं के विकास पर जोर दिया है। इसमें फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे, कोल्ड चेन, वेयरहाउसिंग और ग्रामीण लॉजिस्टिक्स में निवेश की आवश्यकता बताई गई है, जिससे बर्बादी कम हो और किसान निर्यात बाजारों का लाभ उठा सकें। साथ ही कहा है कि भारत में कई कृषि उत्पादों की उत्पादकता बहुत कम है उनको बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है। 

नीति आयोग ने भारत के कृषि निर्यात को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए मध्यम अवधि के ढांचागत सुधारों को आवश्यक बताया है। इसमें उपयुक्त तकनीक को अपनाकर उत्पादकता बढ़ाना, बाजार सुधार, निजी क्षेत्र की भागीदारी, लॉजिस्टिक्स में सुधार और प्रतिस्पर्धी मूल्य श्रृंखला का विकास शामिल है।

प्राइस हेजिंग स्कीम 

वर्किंग पेपर में किसानों को वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए प्राइस हेजिंग स्कीम शुरू करने की सिफारिश की गई है। अंतरराष्ट्रीय मांग-आपूर्ति में असंतुलन या टैरिफ में अचानक बदलाव के कारण किसानों पर अक्सर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

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