जम्मू-कश्मीर में कृषि में बड़े बदलाव की राह तैयार कर रहा है शेर-ए- कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय

वाइस चांसलर प्रोफेसर जे. पी. शर्मा के मुताबिक डायवर्सिफिकेशन के लिए यह बहुत अनुकूल राज्य है। जम्मू -कश्मीर की क्लाइमेट कंडीशन ऐसी है कि दुनिया में कहीं भी जो चीज पैदा हो सकती है, वह यहां भी पैदा हो सकती है। यहां का मौसम सब ट्रापिकल है, टेंपरेट है, ड्राइ डेजर्ट है, कोल्ड डेजर्ट है। लेवेंडर, लैमन ग्रास, केसर, ओलिव, मेडिसिनल प्लांट, स्पाइसेज, काला जीरा ये सब यहां हो सकते हैं जो पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में संभव नहीं है।  यहां किसानों की लैंड होल्डिंग का स्तर राष्ट्रीय औसत से कम है। यह करीब आधा हैक्टेयर है। ऐसे में हमें लो वॉल्यूम हाइ वैल्यू उत्पादों के बारे में सोचना है। विश्वविद्यालय यहां स्पेशियलिटी एग्रीकल्चर को पारंपरिक फसलों के मुकाबले अधिक तरजीह देना नई संभावनाओं की राह खोल रहा है

जम्मू-कश्मीर में कृषि में बड़े बदलाव की राह तैयार कर रहा है शेर-ए- कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय

एसकेयूएएसटी चट्टा कैंपस, जम्मू

जम्मू और कश्मीर में स्पेशियलाइज्ड एग्रीकल्चर का आधार तैयार हो रहा है। यहां जम्मू और कश्मीर में अधिक वैल्यूएशन की बागवानी, औषधीय प्लांट्स, खाद्य प्रसंस्करण के लिए उपयोगी फसलों, विभिन्न एग्रो क्लाइमेट में होने वाली फसलों, डेयरी और फिशरीज के क्षेत्र में नई पहल हो रही है। इंटीग्रेटेड फार्मिंग और नेचुरल फार्मिंग के मॉडल पर काम करने के साथ ही डेयरी, बॉयोटेक्नोलॉजी और फिशरीज में मौजूद संभावनाओं के दोहन की दिशा में भी काम हो रहा है। राज्य के कृषि क्षेत्र की इस नई तस्वीर की कहानी शेर-ए- कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एसकेयूएएसटी - SKUAST) लिख रहा है, जिसे पिछले दो साल में अधिक गति मिली है।

दो दिन इस यूनिवर्सिटी के कैंपस को देखने समझने और यहां आयोजित कृषक मेले के कामयाब आयोजन में मुझे वही सब देखने को मिला जिससे मैंने इस रिपोर्ट की शुरुआत की है। मैंने यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर जे.पी. शर्मा से कहा कि आपकी यूनिवर्सिटी एग्रीकल्चर एजुकेशन, शोध और किसानों व आंत्रप्रेन्योर के साथ तालमेल के क्षेत्र में नया काम कर रही है। यह इसकी युवा सोच से परिपक्व होने की दिशा में एक कदम तो है ही, यह जम्मू-कश्मीर के कृषि क्षेत्र की संभावनाओं को नतीजों में बदलने की दिशा में एक बड़ी कोशिश भी है।

यहां 17 से 21 नवंबर के बीच आयोजित कृषि मेले का विषय ‘आत्मनिर्भर भारत के लिए कृषि विविधीकरण’ रखा गया है। यह मेला विश्वविद्यालय के कार्यों को समझने का एक बेहतर माध्यम बन कर उभरा है। इसमें भाग ले रहे एग्री स्टार्टअप, एफपीओ, आंत्रप्रेन्योर, किसान व यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चरल मैनेजमेंट व टेक्नोलॉजी विभागों के छात्र अपने कार्यों के जरिये राज्य में कृषि की संभावनाओं और मूल्यवर्धन के जरिये बेहतर कृषि आय की अहमियत को साबित करते हैं। यह किसी बड़े शहर और पहले से स्थापित पहचान वाले कृषि विश्वविद्यालय का कृषक मेला तो नहीं था, फिर भी मैंने महसूस किया कि यह एक जीवंत कृषक मेला था। इसके भागीदार, जिनमें अधिकांश युवा थे, इसे कामयाब कर रहे थे।

मेले में किसानों की मौजूदगी, महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा और प्रस्तुति के साथ ही गैर कृषक वर्ग को मेले से जोड़ने के लिए लॉन प्रतिस्पर्धा और इस क्षेत्र के तालाब व वाटर बाडीज के बीच प्रतिस्पर्धा कराई गई। सांस्कृतिक और खेल प्रतिस्पर्धाओं ने कृषक मेले और आम शहरी के बीच एक पुल का काम किया।

वाइस चांसलर प्रोफेसर जे. पी. शर्मा रूरल वॉयस के साथ बातचीत में कहते हैं, इस मौके पर विभिन्न विभागों और संस्थानों के साथ सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गये। लेकिन हमारी कोशिश है कि यह एमओयू केवल दस्तखत वाले दिन की औपचारिकता नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह फंक्शनल हों ताकि जिस सोच और उद्देश्य के साथ यह समझौते हो रहे हैं उनको जमीनी स्तर पर अमली जामा पहनाया जाए। तभी किसानों और कृषि क्षेत्र को इसका फायदा मिलेगा। 

प्रोफेसर शर्मा एफपीओ का गठन कर मूल्यवर्धन को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। विश्वविद्यालय यहां स्पेशियलिटी एग्रीकल्चर को पारंपरिक फसलों के मुकाबले अधिक तरजीह देना नई संभावनाओं की राह खोल रहा है। उसमें पंपोर के अलावा किश्वतवाड़ में केसर की खेती हो या अखरोट जैसी दूसरी किस्मों की खेती की संभावना हो। पॉल्ट्री और डेयरी पर जोर देना यहां किसानों के लिए फायदेमंद है। किसानों के पास जमीन का औसत कम होने के चलते कम जमीन में अधिक कमाई वाली फसलों को बढ़ावा देना यहां जरूरी है। साथ ही यहां हर तरह के एग्रो क्लाइमेट मौजूद हैं। यह देश में अपने किस्म की खासियत रखने वाला अकेला राज्य है।

विश्वविद्यालय के डायरेक्टर एक्सटेंशन डॉ. एस. के गुप्ता एक हैक्टेयर में तैयार इंटीग्रेटेड एग्रीकल्चर मॉडल को दिखाते हुए कहते हैं कि किसानों की आय में गुणात्मक बदलाव दर्शाने वाला यह व्यावहारिक मॉडल हमने तैयार किया है। इसमें धान-गेहूं के साथ हल्दी जैसे मसाले, पशुओं के चारे, आम और अमरूद जैसे फलदार पौधे, फिशरीज, पॉल्ट्री, डेयरी फार्मिंग और बायो मास का इनपुट के रूप में इस्तेमाल किया गया है। यह फार्म पूरी तरह से आर्गेनिक है। इसके चलते इनपुट लागत में कमी और पूरे साल आय के जरिये किसान बेहतर आमदनी कर सकता है।

यूनिवर्सिटी की नई पहल और कोशिशों के बारे में रूरल वॉयस के साथ बातचीत में वाइस चांसलर शर्मा बताते हैं कि यहां एग्री स्टार्टअप इको सिस्टम तैयार हो रहा है। इसको देखते हुए हम विविधीकरण, प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन, ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर हम जोर दे रहे हैं। हमने कई संस्थाओं के साथ एमओयू किये हैं। मनु कृषि हमारी एक बी-टेक स्टूडेंट का स्टार्टअप है जो एनीमल फीड पर काम कर रहा है। उसके साथ हम एमओयू कर रहे हैं, उसने हमारे यहां ट्रेनिंग ली है। हम बाजार मूल्यों पर गुणवत्तायुक्त उत्पाद प्राथमिकता के आधार पर उससे खरीदेंगे।

प्रो. शर्मा के अनुसार, हमने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड मेडिसिन (ट्रिपल आईएम) के साथ एमओयू किया है। कंसास यूनिवर्सिटी के साथ समझौता किया। अब आइसोलेशन का नहीं, कनवर्जेंस का समय है। कृषि ऐसा क्षेत्र है जिसमें कनवर्जेंस की सबसे अधिक जरूरत है। हमने दूसरे विभागों के लिए अपने दरवाजे खोले हैं। दूसरी यूनिवर्सिटी भी हमारी लैब का इस्तेमाल कर सकती हैं। प्रोफेसर ऑफ प्रेक्टिस के यूजीसी के प्रावधान को हम अपने यहां अमल में लाएंगे और ऐसे किसानों को जोड़ेंगे जो अपने काम में पारंगत हैं। वह हमारे छात्रों को शिक्षा दे सकेंगे। हम ऐसे किसानो को अगले कन्वोकेशन में पीएचडी की डिग्री देंगे। 

प्रो. शर्मा के मुताबिक डायवर्सिफिकेशन के लिए यह बहुत अनुकूल राज्य है। जम्मू कश्मीर की जो क्लाइमेट कंडीशन ऐसी है कि दुनिया में कहीं भी जो चीज पैदा हो सकती है, वह यहां भी पैदा हो सकती है। यहां का मौसम सब ट्रापिकल है, टेंपरेट है, ड्राइ डेजर्ट है, कोल्ड डेजर्ट है। लेवेंडर, लैमन ग्रास, केसर, ओलिव, मेडिसिनल प्लांट, स्पाइसेज, काला जीरा ये सब यहां हो सकते हैं जो पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में संभव नहीं है। 

यहां किसानों की लैंड होल्डिंग का स्तर राष्ट्रीय औसत से कम है। यह करीब आधा हैक्टेयर है। ऐसे में हमें लो वॉल्यूम हाइ वैल्यू उत्पादों के बारे में सोचना है। यहां स्पेशियलिटी एग्रीकल्चर की मांग भी है, लेकिन हम पूरा नहीं कर पाते हैं। 

उन्होंने बताया कि इस यूनिवर्सिटी में दो फैकल्टी थी, एग्रीकल्चरल साइंसेज और वेरटरनरी साइंस की। हमने इसमें नई फैकल्टी जोड़ी है। 2005 से तीन फैकल्टी जोड़ने की बात हो रही थी, पर उप राज्यपाल ने इसे मंजूरी दी। इनमें एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, डेयरी टेक्नोलॉजी और फैकल्टी हार्टिकल्चर एंड फोरेस्ट्री जुड़ गई हैं और इनमें छात्रों के एडमिशन भी हो गये हैं। यह जरूरत थी इस क्षेत्र की। यहां हार्टिकल्चर नहीं थी। हमने एमएससी फिशरीज भी शुरू की है। यहां एग्रीबिजनेस का बड़ा स्कोप है। इसके लिए इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीबिजनेस और इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी भी बोर्ड से मंजूर हो गया है। इसके चलते उत्तर भारत में इस यूनिवर्सिटी ने अपनी जगह बना ली है और यह जम्मू क्षेत्र के लिए बड़े गर्व की बात है।

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