चीन और यूरोप में कहीं हीटवेव तो कहीं भीषण बारिश, फसलों को नुकसान से खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता

भयंकर सूखे और लू चीन और यूरोप में फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा है और अरबों डॉलर का नुकसान हो रहा है। चीन में लू प्रमुख कृषि क्षेत्रों को झुलसा रही है, जबकि यूरोप दशकों में अपने सबसे शुष्क मौसम का सामना कर रहा है। यूरोप के किसानों के लिए चिंता की बात यह है कि नुकसान वाली अधिकांश फसलों का बीमा नहीं हुआ है।

चीन और यूरोप में कहीं हीटवेव तो कहीं भीषण बारिश, फसलों को नुकसान से खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता

चीन के यांग्त्जी नदी बेसिन के सूखे खेतों से लेकर उत्तरी यूरोप के खेतों तक, चरम मौसम की स्थिति वैश्विक कृषि पर भारी असर डाल रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार बढ़ रहे और तीव्र सूखे और हीटवेव के कारण किसानों की फसलों को गंभीर नुकसान हो रहा है। नतीजा, उन पर कर्ज बढ़ रहा है और साथ ही मौसम के कारण उन्हें अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है।

हीटवेव में झुलस रही हैं चीन की फसलें 
पूर्वी और मध्य चीन में हीटवेव देश के सबसे महत्वपूर्ण कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों के बड़े हिस्से को झुलसा रही है। अनहुई, झेजियांग, हुबेई और हेनान जैसे प्रांतों में तापमान 40°C से ऊपर पहुंच गया है, जो वहां मौसमी मानदंडों से कहीं अधिक है। उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब प्रणाली, जो आमतौर पर जुलाई के मध्य में आती है, पहले ही सक्रिय हो चुकी है। इससे सानफू सीजन, जो भारत के नौतपा की तरह पारंपरिक रूप से साल का सबसे गर्म समय होता है, खतरनाक रूप से जल्दी शुरू हो गया।

इस अचानक और तीव्र गर्मी ने चीनी किसानों के बीच चिंता बढ़ा दी है। लंबे समय से जारी सूखे के कारण मिट्टी की नमी कम हो रही है, फसलों पर दबाव बढ़ रहा है और सिंचाई प्रणालियों को खतरा है। एयर कंडीशनरों से बिजली की मांग पहले ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना चुकी है, जिससे सिचुआन जैसे जलविद्युत पर निर्भर प्रांतों पर और दबाव बढ़ गया है, जो औसत से कम बारिश से भी जूझ रहे हैं।

एक तरफ पूर्वी चीन तप रहा है, तो देश के अन्य हिस्से मूसलाधार बारिश से जूझ रहे हैं, जिससे अचानक बाढ़ आ रही है और खेत जलमग्न हो रहे हैं, खासकर चेंगदू जैसे इलाकों में। यह जलवायु परिवर्तन चीन के मौसम के मिजाज की बढ़ती अनिश्चितता और कृषि पर इसके जटिल प्रभाव को रेखांकित करता है।

सूखा गहराने से यूरोपीय किसान संकट के कगार पर
चीन से हजारों किलोमीटर दूर, उत्तर-पश्चिमी यूरोप के किसान दशकों में सबसे शुष्क ऋतुओं में से एक का सामना कर रहे हैं। नीदरलैंड, जर्मनी और बेल्जियम जैसे देशों में अप्रैल से ही बारिश की कमी हो गई थी। वहां कम बारिश का असर फसलों पर पड़ रहा है।

जर्मनी का सैक्सोनी-एनहाल्ट क्षेत्र भी संघर्ष कर रहा है, जहां अपेक्षित वर्षा के आधे से भी कम बारिश हुई है। वहां के किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही बारिश नहीं हुई, तो फसलों का नुकसान 30% या उससे भी अधिक हो सकता है। यहां तक कि पशुपालक किसान भी संकट का सामना कर रहे हैं। वे चारे की आपूर्ति के लिए चिंतित हैं। यूरोपीय सूखा वेधशाला (European Drought Observatory) ने महाद्वीप के लगभग एक-तिहाई हिस्से को सूखे की ऑरेंज चेतावनी के तहत रखा है, जबकि एक अंश पहले से ही रेड एलर्ट जोन में है।

अरबों का नुकसान और अधिकांश बीमा रहित
बीमा समूह हाउडेन की एक हालिया रिपोर्ट ने इन जलवायु-जनित घटनाओं की चौंका देने वाली वित्तीय लागत पर रिपोर्ट जारी की है। इसने बताया है कि यूरोपीय संघ के कृषि क्षेत्र को वर्तमान में चरम मौसम के कारण सालाना लगभग 28 अरब यूरो का नुकसान होता है। यह आंकड़ा वर्ष 2050 तक बढ़कर 40 अरब यूरो होने का अनुमान है। विनाशकारी वर्षों में तो कुल नुकसान 90 अरब यूरो से भी ज्यादा हो सकता है।

इनमें से 50% से ज्यादा नुकसान सूखे के कारण होता है, जिससे यह यूरोप में खाद्य उत्पादन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। स्पेन और इटली जैसे देशों में सालाना 20 अरब यूरो तक की क्षति हो सकती है, जबकि मध्य और दक्षिण-पूर्वी यूरोप की छोटी अर्थव्यवस्थाओं को चरम घटनाओं के दौरान 3% से ज्यादा की जीडीपी हानि का सामना करना पड़ता है।

किसानों के लिए एक और चिंताजनक बात यह है कि इन नुकसानों का केवल 20-30% ही बीमाकृत है। जिसका अर्थ है कि अधिकांश किसानों को खुद इस नुकसान का वित्तीय बोझ उठाना पड़ रहा है।

जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन तेज हो रहा है, वैश्विक कृषि प्रणाली लगातार कमजोर होती जा रही है। 2025 का मौसम भले ही अभी तक का सबसे बुरा मौसम न हो, लेकिन चीन और यूरोप से मिल रहे शुरुआती संकेत खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण आजीविका और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए बढ़ते खतरों की ओर इशारा करते हैं। 

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