मक्के के एथेनॉल से एविएशन फ्यूल बनाना हितकारी नहीं, इससे और अधिक कार्बन उत्सर्जन होगा

अमेरिका की एविएशन इंडस्ट्री ने वर्ष 2050 तक सस्टेनेबल एवियशन फ्यूल के जरिए नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य की मुख्य बात यह है कि इसके लिए मक्का अथवा वनस्पति तेल के इथेनॉल से तैयार ईंधन का प्रयोग किया जाएगा। लेकिन हाल के अध्ययन बताते हैं कि फसल आधारित बायोफ्यूल वास्तव में कार्बन उत्सर्जन बढ़ाते हैं। यही नहीं, इनकी वजह से खाद्य पदार्थों के उत्पादन वाली जमीन का डायवर्जन एथेनॉल उत्पादन के लिए किया जाता है।

मक्के के एथेनॉल से एविएशन फ्यूल बनाना हितकारी नहीं, इससे और अधिक कार्बन उत्सर्जन होगा
फोटो साभारः डब्लूआरआई

अमेरिका की एविएशन इंडस्ट्री ने वर्ष 2050 तक सस्टेनेबल एवियशन फ्यूल के जरिए नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य की मुख्य बात यह है कि इसके लिए मक्का अथवा वनस्पति तेल के इथेनॉल से तैयार ईंधन का प्रयोग किया जाएगा। लेकिन हाल के अध्ययन बताते हैं कि फसल आधारित बायोफ्यूल वास्तव में कार्बन उत्सर्जन बढ़ाते हैं। यही नहीं, इनकी वजह से खाद्य पदार्थों के उत्पादन वाली जमीन का डायवर्जन एथेनॉल उत्पादन के लिए किया जाता है।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (WRI) की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी एविएशन इंडस्ट्री का यह कदम गलत दिशा में होगा। वर्ष 2019 में अमेरिका की घरेलू उड़ानों से 15 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ था। यह देश के कुल कार्बन उत्सर्जन का लगभग तीन प्रतिशत था। विमान से यात्रा जिस तेजी से बढ़ रही है, उसे देखते हुए अमेरिका और पूरे विश्व में एविएशन से उत्सर्जन 2050 तक दोगुना हो जाने की उम्मीद है।

फसलों से एविएशन फ्यूल बढ़ाएगा उत्सर्जन

अनेक वैज्ञानिकों और अंतरराष्ट्रीय रेगुलेटरी बॉडी ने रिसर्च के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि एवियशन फ्यूल के लिए फसल उपजाना वास्तव में उत्सर्जन को कम नहीं करता है। इनका कहना है कि इन फसलों के उत्पादन के लिए जंगलों की कटाई करनी पड़ेगी और चरागाह वाली भूमि का भी खेती में इस्तेमाल करना पड़ेगा। जंगल अथवा चरागाह की भूमि को फसलों की पैदावार के लिए इस्तेमाल करने पर उनमें स्टोर किया हुआ कार्बन रिलीज होता है। भविष्य में उसे मिट्टी में कार्बन संग्रह भी बहुत कम होता है। इस तरह यह कदम आने वाले समय में खाद्य सुरक्षा और दुनिया भर में जंगलों को बुरी तरह प्रभावित करेगा।

अध्ययन के अनुसार फसलों से विमान का ईंधन तैयार करना आर्थिक रूप से भी व्यवहार्य नहीं लगता है। उदाहरण के लिए एक गैलन सस्टेनेबल एवियशन फ्यूल तैयार करने के लिए 1.7 गैलन मक्के का एथेनॉल चाहिए। अगर अमेरिका को लक्ष्य के मुताबिक 35 अरब गैलन सस्टेनेबल एवियशन फ्यूल चाहिए। इसे तैयार करने जितना मक्का चाहिए, उसके लिए अभी की तुलना में 20% (मक्के का रकबा) से भी ज्यादा इलाके में मक्के की खेती करनी पड़ेगी।

रिपोर्ट के अनुसार एथेनॉल उत्पादन में पशु चारा जैसे कुछ अन्य प्रोडक्ट भी निकालते हैं। अगर इस तथ्य को शामिल करें तब भी बायोफ्यूल उत्पादन के लिए जितने मक्के की जरूरत पड़ेगी, उससे आखिरकार खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ेंगे और भूख की समस्या भी बढ़ेगी।

सोया तेल का विकल्प भी व्यवहार्य नहीं

सोया तेल से सस्टेनेबल एवियशन फ्यूल बनाने का प्रभाव मक्के से भी अधिक होगा, क्योंकि ऊर्जा उत्पादन के लिहाज से देखा जाए तो सोया मक्के की तुलना में काम प्रभावी होता है। इस समय जो वनस्पति तेल का नया उत्पादन होता है वह खासतौर से ऑयल पाम तथा सोयाबीन की खेती के रकबे में विस्तार से हो रहा है। लेकिन इनकी वजह से जंगलों की कटाई भी हो रही है। इस लिहाज से देखें तो वर्ष 2050 तक दुनिया में एवियशन फ्यूल की एक चौथाई जरूरत अगर वनस्पति तेलों से पूरी करनी है तो उसके लिए उनका उत्पादन दोगुना करना पड़ेगा।

अध्ययन में एक और महत्वपूर्ण बात बताई गई है। वह हवा से कार्बन निकालने की टेक्नोलॉजी के बारे में है। इसके मुताबिक 35 अरब गैलन पेट्रोलियम जेट फ्यूल से जितना उत्सर्जन होगा, उसे निकालने के लिए अपेक्षाकृत कम जमीन की जरूरत पड़ेगी। उदाहरण के लिए 35 अरब गैलन पेट्रोलियम जेट फ्यूल से हर साल 43.4 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होगा। अगर सौर ऊर्जा आधारित डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC) टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाए, तो इसके लिए 37 लाख एकड़ जमीन की जरूरत पड़ेगी। इस तरह देखें तो एथेनॉल के लिए मक्के की खेती 30 गुना अधिक जमीन में करनी पड़ेगी।

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