यूपी में गन्ने का 44% रकबा रोगग्रस्त किस्म का, देश का चीनी उत्पादन 20% गिरा

वर्ष 2024-25 में भी उत्तर प्रदेश के कुल गन्ना क्षेत्र 28.25 हेक्टेयर में से 44.45 फीसदी क्षेत्र सीओ-0238 प्रजाति का था जो रोगग्रस्त हो चुकी है। दूसरे नंबर पर सीओ-0118 किस्म है जिसका रकबा 22.14 फीसदी है। राज्य में इनके अलावा 9 अन्य गन्ना प्रजातियां उगाई जा रही हैं जिनका रकबा 0.05 फीसदी से 9.37 फीसदी के बीच है।

यूपी में गन्ने का 44% रकबा रोगग्रस्त किस्म का, देश का चीनी उत्पादन 20% गिरा

चालू पेराई सीजन 2024-25 (अक्तूबर से सितंबर) में देश का चीनी उत्पादन पिछले साल के मुकाबले लभगभ 60 लाख टन यानी करीब 20 फीसदी गिर गया है। पिछले साल देश में 320 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था, जबकि चालू सीजन में चीनी उत्पादन 260 लाख टन से आसपास रहने के आसार हैं। देश में इक्का-दुक्का चीनी मिलों को छोड़कर 533 मिलों में से अधिकांश मिलों में पेराई बंद हो चुकी है।

30 अप्रैल तक के आंकड़ों के अनुसार, देश का चीनी उत्पादन 256.90 लाख टन तक ही पहुंचा है। सरकार द्वारा चीनी निर्यात की अनुमति देने और उत्पादन में गिरावट के चलते घरेलू बाजार में चीनी की कीमतें करीब 500 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ी हैं। लेकिन इसके बावजूद देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है। यह चीनी उद्योग के लिए भी एक संकट की आहट है। 

इसकी दो वजहे हैं। पहला, यूपी के करीब आधे गन्ना क्षेत्र में अब भी रोगग्रस्त हो चुकी किस्म सीओ-0238 उगाई जा रही है, जिसके चलते कई जिलों में 20 फीसदी तक उत्पादन गिरा है। दूसरा, राज्य सरकार द्वारा गन्ने के राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) को पिछले साल 2023-24 के स्तर पर फ्रीज रखा गया है। इस तरह गन्ना किसानों पर दोहरी मार पड़ी। एक तरफ पैदावार घटी, दूसरी तरफ भाव नहीं बढ़ा।  

देश के दूसरे प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में भी गन्ने की फसल के जनवरी में ही फ्लावरिंग स्टेज में चले जाने के कारण उत्पादन में गिरावट आई और वहां चीनी मिलें 90 दिन भी पेराई नहीं कर सकी। ऐसी ही स्थिति तीसरे बड़े चीनी उत्पादक राज्य कर्नाटक की है।

उद्योग संगठनों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन पिछले साल से करीब 12 लाख टन घटकर करीब 91 लाख टन रहने के आसार हैं। वहीं महाराष्ट्र में यह पिछले साल से करीब 30 लाख टन घटकर 80.70 लाख टन रहने का अनुमान है। कर्नाटक में उत्पादन 12 लाख टन घटकर 42 लाख टन रहने का अनुमान है।

चीनी उत्पादन में गिरावट के बीच यूपी की स्थिति खासतौर पर चिंताजनक है। जहां किसानों के लिए अन्य फसलों के मुकाबले गन्ने की फसल बहुत फायदेमंद नहीं रह गई हैं, वहीं गन्ने की कमी के चलते चीनी मिलों के जल्द बंद होने से उनकी बिजनेस व्यवहार्यता पर संकट खड़ा हो सकता है।

उत्तर प्रदेश में एक दशक पहले गन्ना प्रजाति सीओ-0238 ने किसानों और चीनी मिलों के लिए एक क्रांति ला दी थी। इससे गन्ने की पैदावार 30 फीसदी तक बढ़ी और किसानों की आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई। साथ ही, चीनी रिकवरी का स्तर कुछ चीनी मिलों में 13 फीसदी को पार कर गया था। सीओ-0238 किस्म की कामयाबी से यूपी में गन्ना इकनॉमी और चीनी उद्योग को खूब लाभ हुआ।  इसी के चलते 2020-21 में यूपी के कुल गन्ना क्षेत्रफल 27.40 लाख हेक्टेयर में से 86.70 फीसदी क्षेत्र सीओ-0238 प्रजाति के तहत आ गया था। जो इसका उच्चतम स्तर था।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह स्थिति किसी भी फसल के लिए आदर्श नहीं है क्योंकि किसी फसल का अधिकांश रकबा एक ही प्रजाति के तहत आना नुकसानदेह साबित होता है। यूपी में यही हुआ। कुछ साल पहले गन्ने की सीओ-0238 प्रजाति रोगग्रस्त होने लगी। लेकिन इसका कोई विकल्प किसानों के पास बड़े पैमाने पर नहीं था। किसानों ने कृषि वैज्ञानिकों और चीनी मिलों द्वारा मना किए जाने के बावजूद सीओ-0238 किस्म को उगाना जारी रखा। क्योंकि ऐसी कोई दूसरी किस्म विकसित नहीं की गई जो सीओ-0238 की तरह परिणाम दे सके। सीओ-0238 किस्म में रेड रॉट और टॉप बोरर जैसी बीमारियों के प्रकोप के चले किसानों का कीटनाशकों पर खर्च बढ़ा और पैदावार में भारी गिरावट आई।

उत्तर प्रदेश के चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में भी राज्य के कुल गन्ना क्षेत्र 28.25 हेक्टेयर में से 44.45 फीसदी क्षेत्र सीओ-0238 प्रजाति का था। दूसरे नंबर पर सीओ-0118 किस्म है जिसका रकबा 22.14 फीसदी है। राज्य में इनके अलावा 9 अन्य गन्ना प्रजातियां उगाई जा रही हैं जिनका रकबा 0.05 फीसदी से 9.37 फीसदी के बीच है। कुल गन्ना क्षेत्र में दो-तिहाई हिस्सा दो प्रमुख किस्मों का है जबकि बाकी किस्मों का अधिक प्रसार नहीं हुआ है।  यह केंद्र और राज्य सरकारों के गन्ना शोध से जुड़े संस्थानों की भी नाकामी है कि कई वर्षों से रोगग्रस्त होने के बावजूद गन्ना किसानों को सीओ-0238 का कारगर विकल्प नहीं मिल पाया।

संभवत: यही वजह है कि यूपी में गन्ने की बुवाई के क्षेत्र में गिरावट दर्ज की गई है। राज्य में वर्ष में 2024-25 में गन्ने का रकबा करीब 50 हजार हेक्टेयर घटा है। साल 2023-24 में यूपी का कुल गन्ना क्षेत्र 28.74 लाख हेक्टेयर था जो 2024-25 में घटकर 28.25 लाख हेक्टेयर रह गया।

गन्ने की बीमारी, बढ़ती लागत, पैदावार में गिरावट और दाम न बढ़ने से यूपी के किसानों को गन्ने से मोहभंग हुआ है और वे दूसरी फसलों या एग्रो-फॉरेस्ट्री का रुख कर रहे हैं। यह चीनी उद्योग के लिए परेशान का सबब है।

 उत्तर प्रदेश के एक बड़ी चीनी मिल समूह के वरिष्ठ अधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि अगर यही स्थिति रही तो चीनी उद्योग में किया निवेश मुश्किल में पड़ सकता है। चीनी और इथेनॉल उत्पादन की संभावानाओं को देखते हुए चीनी उद्योग ने क्षमता विस्तार पर काफी निवेश किया है।  इसलिए अब चीनी उद्योग को गन्ना उत्पादन की चिंता हो रही है। इसके लिए किसानों को गन्ने का बेहतर दाम देना और उन्नत किस्में मुहैया कराने की जरूरी हो गया है। राज्य सरकार भी गन्ने की समस्या को लेकर चिंतित है। क्योंकि कुछ जिलों में सीओ-0238 किस्म का क्षेत्र 70 फीसदी तक है।

देश में लगातार दूसरे साल चीनी उत्पादन में गिरावट आई है। गन्ना उत्पादन में कमी के चलते गन्ना जूस और बी-हैवी मोलेसेज से इथेनॉल उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। पेराई सीजन शुरू होने के दो महीने बाद ही कई चीनी मिलों ने गन्ना जूस और बी-हैवी मोलासेस से इथेनॉल बनाना बंद कर दिया था। क्योंकि चीनी के दाम बेहतर मिल रहे थे। वर्ष 2024-25 में 50 लाख टन चीनी के इथेनॉल उत्पादन के लिए डायवर्ट होने का अनुमान था, जिसमें से अभी तक केवल 29 लाख टन के बराबर चीनी का डार्यवर्जन हुआ जो सीजन के आखिर तक 32 लाख टन तक पहुंचेगा।

इस तरह अगर गन्ना उत्पादन में गिरावट जारी रहती है तो चीनी ही नहीं बल्कि इथेनॉल उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है। इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम तेल कंपनियों की ओर से इथेनॉल के लिए जारी मौजूदा टेंडर में केवल सी-हैवी मोलेसेज और खाद्यान्न से बनने वाले इथेनॉल को ही शामिल किया गया है।

चीनी मिलों के लिए गन्ने के रस और बी-हैवी मोलासेस से इथेनॉल बनाने की बजाय चीनी बनाना अधिक लाभदायक हो रहा है। गत दिसंबर में 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति मिलने और चीनी उत्पादन में गिरावट को देखते हुए घरेलू बाजार में चीनी के दाम बढ़ने लगे। उत्तर प्रदेश में चीनी का एक्स फैक्टरी भाव 4200 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था। मतलब, चीनी मिलों के पास कमाई के मौके हैं लेकिन पर्याप्त गन्ना नहीं मिल पा रहा है। 

ऐसे में चीनी उद्योग को अगले सीजन की चिंता सता रही है। गेहूं की बेहतर कीमतों के चलते गेहूं व धान चक्र किसानों के लिए फायदेमंद बन गया है। क्रॉप इनकम पैरिटी में गन्ना पिछड़ रहा है। इसलिए किसानों को गन्ने का बेहतर दाम दिलाना और गन्ने की उन्नत किस्मों का प्रसार जरूरी है।

Subscribe here to get interesting stuff and updates!