5 साल बाद चीनी उत्पादन में यूपी से आगे निकला महाराष्ट्र, यूपी में उत्पादन 5 वर्षों में सबसे कम

महाराष्ट्र का चीनी उत्पादन 138 लाख टन पर पहुंचने का अनुमान जबकि 104 लाख टन के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। महाराष्ट्र 2015-16 तक उत्तर प्रदेश से आगे था। यूपी 2016-17 में उससे आगे निकला तो 2020-21 तक देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य बना रहा। लेकिन पांच साल बाद वह फिर महाराष्ट्र से पिछड़ा

5 साल बाद चीनी उत्पादन में यूपी से आगे निकला महाराष्ट्र, यूपी में उत्पादन 5 वर्षों में सबसे कम

देश में चीनी के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों की जगह बदल गई है और वह भी बड़े अंतर के साथ। चालू पेराई सीजन (अक्तूबर, 2021 से सितंबर, 2022) में महाराष्ट्र का चीनी उत्पादन 138 लाख टन पर पहुंचने का अनुमान है। जबकि 104 लाख टन चीनी उत्पादन के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। महाराष्ट्र 2015-16 तक उत्तर प्रदेश से आगे था। यूपी 2016-17 में उससे आगे निकला तो 2020-21 के सीजन तक देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक राज्य बना रहा। लेकिन पांच साल बाद वह फिर महाराष्ट्र से पिछड़ गया है। हालांकि महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में उत्पादन बढ़ने के चलते देश में इस साल रिकॉर्ड 355.50 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है।

नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नायकनवरे ने रूरल वॉयस के साथ एक बातचीत में कहा कि महाराष्ट्र के चीनी उत्पादन में भारी बढ़ोतरी की तीन वजहें हैं। ये हैं बेहतर बरसात और रिजरवायर्स में अधिक पानी, गन्ने का रकबा बढ़ना और गन्ने की उत्पादकता में भारी बढ़ोतरी होना। नायकनवरे कहते हैं कि चालू पेराई सीजन में महाराष्ट्र में गन्ना उत्पादन 90 टन प्रति हैक्टेयर से बढ़कर 105 टन प्रति हैक्टेयर हो गया है। राज्य में गन्ने की 8603 किस्म बेहतर उत्पादकता दे रही है। साथ ही उनका कहना है कि बेहतर बारिश के साथ किसानों ने फसल की बेहतर देखभाल की है क्योंकि उनको पता था कि इस साल उन्हें गन्ने का अच्छा दाम मिलेगा।

 

                                 बड़े चीनी उत्पादक राज्यों में उत्पादन की स्थिति  

                                            (लाख टन)

साल

(अक्तूबर से सितंबर)

महाराष्ट्र

उत्तर प्रदेश

कर्नाटक

गुजरात

देश में कुल उत्पादन

2013-14

76.85

64.87

41.77

11.77

243.60

2014-15

105.07

71.01

49.35

11.54

283.13

2015-16

84.24

68.55

40.49

11.68

251.25

2016-17

42.38

87.73

21.44

8.85

202.62

2017-18

107.05

120.50

36.58

10.67

323.28

2018-19

107.21

118.22

44.29

11.23

331.62

2019-20

61.70

126.37

35.00

9.30

273.85

2020-21

106.30

110.59

44.65

10.50

311.20

2021-22*

138.00

104.00

60.00

12.00

355.50

*उत्पादन अनुमान

 

महाराष्ट्र में बढ़ा गन्ने का क्षेत्रफल

इस साल राज्य में चीनी उत्पादन में बढ़ोतरी की एक वजह गैर पंजीकृत गन्ना क्षेत्र भी है जिसे अनरजिस्टर्ड गन्ना क्षेत्रफल कहा जाता है। साल 2020-21 में राज्य का गन्ना क्षेत्रफल 11.42 लाख हेक्टेयर था जबकि राज्य के शुगर कमिश्नर ऑफिस के मुताबिक चालू पेराई सीजन में राज्य का गन्ना क्षेत्रफल करीब एक लाख हेक्टेयर बढ़कर 12.4 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया। यह अतिरिक्त गन्ना क्षेत्रफल चीनी मिलों के पास पंजीकृत नहीं था। अधिकांश गैर पंजीकृत क्षेत्रफल मराठवाड़ा क्षेत्र तथा अहमदनगर और शोलापुर जिले में है, जो अक्सर सूखे से प्रभावित रहते हैं। लेकिन बेहतर बारिश के चलते इस बार स्थिति बदल गई है और वहां गन्ना क्षेत्रफल बढ़ गया है।

राज्य में अतिरिक्त गन्ने के चलते चीनी मिलों में पेराई जून तक जारी रहने की उम्मीद है। सामान्य तौर पर राज्य में गन्ने की पेराई अप्रैल अंत या मई के शुरू में समाप्त हो जाती है। नायकनवरे कहते हैं कि जल्दी पेराई के लिए अब मशीनों से गन्ने की कटाई की जा रही है। हमारी कोशिश है कि जून में बारिश आने के पहले सारे गन्ने की पेराई हो जाए। गर्मी के कारण गन्ना कटाई करने वाले मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए ही मशीनों का अधिक उपयोग किया जा रहा है। महाराष्ट्र ने पड़ोसी राज्य कर्नाटक की चीनी मिलों से गन्ना कटाई की मशीनें भी मंगाई हैं। अधिक गर्मी से गन्ने में चीनी की कम रिकवरी के चलते राज्य सरकार चीनी मिलों को 20 रुपये प्रति क्विटंल की सब्सिडी भी दे रही है।

उत्तर प्रदेश में दो वर्षों से बीमारी लगने से गन्ना उत्पादन प्रभावित

महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक में भी उत्पादन बेहतर हुआ है और यह 60 लाख टन तक पहुंच गया है। गुजरात में 2010-11 के 12.35 लाख टन के रिकार्ड के बाद इस साल वहां चीनी उत्पादन 12 लाख टन तक गया है। लेकिन उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन इन राज्यों के विपरीत है। यहां चीनी उत्पादन 2019-20 में 126.37 लाख टन पर पहुंच गया था, जो चालू सीजन में घटकर 104 लाख टन पर आ गया। यह पिछले पांच साल में सबसे कम है।

उत्तर प्रदेश के चीनी उत्पादन में गिरावट की एक बड़ी वजह राज्य में गन्ना की सबसे कामयाब किस्म सीओ-0238 का दौर चला जाना है। उत्तर प्रदेश के एक चीनी उद्योग समूह के वरिष्ठ अधिकारी ने इस बारे में रूरल वॉयस को बताया कि गन्ने की यह किस्म 87 फीसदी क्षेत्रफल तक पहुंच गई थी। पिछले दो साल से इस किस्म में बीमारी लगने के चलते उत्पादकता में भारी गिरावट आई है। इसके साथ चीनी की रिकवरी घटने से दोहरा नुकसान हुआ है। गन्ने के रस से सीधे और बी-हैवी शीरे से एथनॉल बनाने के चलते भी चीनी उत्पादन कम रहा है। सबसे अधिक एथनॉल उत्पादन करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 12.50 लाख टन चीनी का डायवर्जन एथनॉल के लिए किया गया।

देश में रिकॉर्ड उत्पादन, फिर भी दाम में गिरावट नहीं

नायकनवरे कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन पांच साल के सबसे कम स्तर पर पहुंचने के बावजूद महाराष्ट्र और कर्नाटक में रिकॉर्ड उत्पादन के चलते देश में चीनी उत्पादन अब तक के रिकॉर्ड 355.50 लाख टन तक पहुंच गया है। एक अहम बात यह है कि रिकॉर्ड चीनी उत्पादन के बावजूद चीनी की कीमतों में गिरावट नहीं आई है। सरकार द्वारा निर्धारित 31 रुपये प्रति किलो न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) के मुकाबले अभी एस-30 ग्रेड चीनी की कीमत महाराष्ट्र में 32.50 रुपये से 33 रुपये प्रति क्विटंल के बीच चल रही है। उत्तर प्रदेश में इसकी कीमत 34.50 रुपये से 35 रुपये प्रति किलो के बीच है।

दाम न गिरने की एक बड़ी वजह देश से चीनी का रिकॉर्ड निर्यात है। चालू साल में चीनी का निर्यात 75 लाख टन को पार कर गया है जबकि पिछले साल 71.9 लाख टन का निर्यात हुआ था। नायकनवरे मानते हैं कि इस साल चीनी निर्यात 100 लाख टन तक पहुंच जाएगा। अभी तक 90 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुके हैं, 85 लाख टन चीनी मिलों से निकल चुकी है और 75 लाख टन चीनी का बंदरगाहों से निर्यात हो चुका है। वह कहते हैं कि चीनी निर्यात 100 लाख टन तक सीमित करने का सरकार का फैसला सही है। चीनी के मामले में फैसला लेने की प्रक्रिया भी सही रही है जिससे चीनी मिलों और निर्यातकों को किसी तरह की समस्या नहीं हुई है।

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