कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं के योगदान को नहीं मिली मान्यता: राष्ट्रपति मुर्मू

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं के योगदान को मान्यता नहीं दी गई है। इसे बदलने की जरूरत है। वे कृषि संरचना के सबसे निचले पिरामिड का बड़ा हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें निर्णय लेने वालों की भूमिका निभाने के लिए सीढ़ी पर चढ़ने के अवसर से वंचित किया जाता है।

कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं के योगदान को नहीं मिली मान्यता: राष्ट्रपति मुर्मू
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व सीजीआईएआर जेंडर इम्पेक्ट प्लेटफार्म द्वारा ‘अनुसंधान से प्रभाव तक: न्यायसंगत और अनुकूल कृषि खाद्य प्रणालियों की दिशा में बढ़ते कदम’ विषय पर आयोजित 4 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करतीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि कृषि-खाद्य प्रणालियों में महिलाओं के योगदान को मान्यता नहीं दी गई है। इसे बदलने की जरूरत है। वे कृषि संरचना के सबसे निचले पिरामिड का बड़ा हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें निर्णय लेने वालों की भूमिका निभाने के लिए सीढ़ी पर चढ़ने के अवसर से वंचित किया जाता है। नई दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वास्तव में कोविड-19 महामारी ने कृषि-खाद्य प्रणालियों और समाज में संरचनात्मक असमानता के बीच एक मजबूत संबंध को सामने ला दिया है।

उन्होंने कहा, "महिलाएं भोजन बोती हैं, अनाज उगाती हैं, काटती हैं, संसाधित करती हैं और उसका विपणन करती हैं। वे भोजन को खेत से थाली तक लाने में अपरिहार्य हैं। फिर भी दुनिया भर में भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंडों द्वारा उन्हें पीछे रखा जाता है और रोका जाता है, उनके योगदान को मान्यता नहीं दी जाती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व सीजीआईएआर जेंडर इम्पेक्ट प्लेटफार्म द्वारा ‘अनुसंधान से प्रभाव तक: न्यायसंगत और अनुकूल कृषि खाद्य प्रणालियों की दिशा में बढ़ते कदम’ विषय पर आयोजित 4 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का सोमवार को उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह बात कही।

राष्ट्रपति ने सम्मेलन में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों व वैज्ञानिक समुदाय को संबोधित करते हुए कहा, " यदि कोई समाज न्याय रहित है, तो उसकी समृद्धि के बावजूद अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। कोविड-19 महामारी ने कृषि-खाद्य प्रणालियों और समाज में संरचनात्मक असमानता के बीच मजबूत संबंध भी सामने ला दिया है। वैश्विक स्तर पर हमने देखा है कि महिलाओं को लंबे समय तक कृषि-खाद्य प्रणालियों से बाहर रखा गया, जबकि वे कृषि संरचना के सबसे निचले पिरामिड का बड़ा हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें निर्णय लेने वालों की भूमिका निभाने के लिए सीढ़ी पर चढ़ने के अवसर से वंचित किया जाता है। दुनियाभर में उन्हें भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंडों और ज्ञान, स्वामित्व, संपत्ति, संसाधनों व सामाजिक नेटवर्क में बाधाओं द्वारा रोका जाता है। उनके योगदान को मान्यता नहीं दी गई, उनकी भूमिका को हाशिए पर रखा गया, कृषि-खाद्य प्रणालियों की पूरी श्रृंखला में उनके योगदान को नकार दिया गया है। इस कहानी को अब बदलने की जरूरत है। भारत में हम विधायी और सरकारी हस्तक्षेपों के माध्यम से महिलाओं को और अधिक सशक्त होने के साथ उन परिवर्तनों को देख रहे हैं।"

राष्ट्रपति ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक अस्तित्वगत खतरा है, हमें अभी व तेजी से कार्रवाई करने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, बर्फ पिघलने और प्रजातियों के विलुप्त होने से खाद्य उत्पादन बाधित हो रहा है और कृषि-खाद्य चक्र भी टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। कृषि-खाद्य प्रणालियों को दुष्चक्र से बाहर निकालने के लिए चक्रव्यूह को तोड़ने की जरूरत है। उन्होंने जैव विविधता बढ़ाने व पारिस्थितिकी तंत्र बहाल करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया, ताकि सबके लिए अधिक समृद्ध व न्यायसंगत भविष्य के साथ कृषि-खाद्य प्रणालियों के माध्यम से खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

उद्घाटन समारोह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी एवं शोभा करंदलाजे, कृषि सचिव मनोज अहूजा, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक, सीजीआईएआर के कार्यकारी प्रबंध निदेशक डॉ. एंड्रयू केम्पबेल, दक्षिण एशिया क्षेत्रीय निदेशक डॉ. टेमिना ललानी शरीफ, जेंडर प्लेटफार्म निदेशक डॉ. निकोलीन डे हान विशेष रूप से मौजूद थे।

 

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