चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर, महाराष्ट्र में उत्पादन बढ़ने का अनुमान

इस साल उत्तर प्रदेश में  चीनी उत्पादन 105 लाख टन के आसपास रहने की संभावना है क्योंकि राज्य में गन्ने की कमी से चीनी मिलें जल्द बंद हो रही हैं। सीजन के शुरुआत में उत्तर प्रदेश में 110 लाख टन चीनी उत्पादन की संभावना जताई गई थी। वही नवंबर-दिसंबर में बारिश के चलते महाराष्ट्र में गन्ने की फसल सुधरने से उत्पादन 106 से 107 लाख टन तक पहुंच सकता है।

चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर, महाराष्ट्र में उत्पादन बढ़ने का अनुमान

पिछले साल कमजोर मानसून के चलते चालू पेराई सीजन (2023-24) में महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी उत्पादन में भारी गिरावट की आशंका बन गई थी। जिसके चलते उत्तर प्रदेश के चीनी उत्पादन में देश में पहले स्थान पर रहने की संभावना थी। लेकिन जैसे-जैसे सीजन आगे बढ़ा, स्थिति उलट गई। उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन पिछले साल के करीब या कुछ कम रहने के आंकड़े आ रहे हैं। उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल उत्तर प्रदेश में  चीनी उत्पादन 105 लाख टन के आसपास रहने की संभावना है क्योंकि राज्य में गन्ने की कमी से चीनी मिलें जल्द बंद हो रही हैं। सीजन के शुरुआत में उत्तर प्रदेश में 110 लाख टन चीनी उत्पादन की संभावना जताई गई थी। वही नवंबर-दिसंबर में बारिश के चलते महाराष्ट्र में गन्ने की फसल सुधरने से उत्पादन 106 से 107 लाख टन तक पहुंच सकता है। देश में कुल चीनी उत्पादन 320 लाख टन रहने का अनुमान है।

उद्योग सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में इस साल गन्ना उत्पादन में कमी आई है। राज्य के कुछ हिस्सों में मानसून के शुरूआती दिनों में अधिक बारिश और बाढ़ ने गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचाया। वहीं, गन्ने की फसल में रोगों का प्रकोप भी रहा। गन्ने की सबसे अधिक क्षेत्र में लगाई गई किस्म सीओ 0238 में रेड रॉट और बोरर की बीमारियों ने भारी नुकसान पहुंचाया। किसानों के सामने मुश्किल यह है कि उन्हें गन्ने की 0238 प्रजाति की जगह लेने वाली कोई दूसरी कामयाब प्रजाति नहीं मिल पा रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह जिम्मा राज्य सरकार का है कि किसानों को नई प्रजाति के बीज उपलब्ध कराए। लेकिन इस मामले में किसानों को सरकार से ज्यादा मदद नहीं मिल रही है। गन्ना किसानों को प्रजाति रिप्लेस करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करने पड़ रहे हैं जो बहुत व्यवहारिक नहीं है।

इस सीजन में राज्य सरकार ने चीनी मिलों के लिए राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) की घोषणा काफी देरी से की। पेराई सत्र अक्टूबर से शुरू हो जाता है जबकि गन्ने के रेट में 20 रुपये की बढ़ोतरी कर 370 रुपये प्रति क्विंटल के भाव का ऐलान यूपी सरकार ने 18 जनवरी को किया। इस बीच बड़े पैमाने पर किसानों ने गुड़ खांडसारी इकाइयों को गन्ने की आपूर्ति की क्योंकि वहां बेहतर रेट मिल रहा था। गुड़ और खांडसारी इकाइयों ने एसएपी या उससे अधिक का भुगतान किया और किसानों को नकद या उनके खातों में पैसा दिया। इसके उन्हें गन्ना अधिक मिला।

चीनी उद्योग से जुड़े एक पदाधिकारी ने रूरल वॉयस को बताया कि चुनावी साल होने की वजह से इस बार गुड़ की मांग ज्यादा है और गुड़ के दाम अच्छे रहे हैं। वहीं खांडसारी के निर्यात पर प्रतिबंध नहीं था। इसका फायदा भी खांडसारी इकाइयों को मिला क्योंकि वैश्विक बाजार में चीनी के दाम बहुत बेहतर चल रहे हैं। पिछले दिनों लंदन व्हाइट शुगर का दाम 48 रुपये प्रति किलो से अधिक पहुंच गया था।

महाराष्ट्र में जनवरी के बाद से चीनी उत्पादन की स्थिति सुधरती गई। नेशनल फेडरेशन ऑफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नायकनवरे ने रूरल वॉयस को बताया कि नवंबर-दिसंबर में बारिश के चलते महाराष्ट्र में गन्ने का उत्पादन सुधरा है और इसके चलते राज्य में चीनी उत्पादन 106 से 107 लाख टन पर पहुंचने की संभावना है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन में जो गिरावट होगी, उसकी भरपाई महाराष्ट्र में होने से देश में कुल चीनी उत्पादन 320 लाख टन रहने का अनुमान है। यह मात्रा एथेनॉल के लिए डायवर्ट की गई 17 लाख टन चीनी से अलग है।

उद्योग सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि चालू सीजन में चीनी का ग्रॉस प्रोडक्शन 337 लाख टन रहने की संभावना है। जो पिछले साल 366 लाख टन के ग्रास प्रोडक्शन से करीब 8 फीसदी कम है। पिछले साल एथेनॉल उत्पादन के लिए 45 लाख टन चीनी का डायवर्सन किया गया था। इस साल अभी तक  सरकार ने 17 लाख टन चीनी डायवर्जन की सीमा तय कर रखी है।

ऐसे में उद्योग का मानना है कि शुगर सीजन के अंत में चीनी की उपलब्धता पिछले साल के 57 लाख टन बकाया स्टॉक के साथ कुल 377 लाख टन होगी। वहीं देश में चीनी की अनुमानित खपत 285 लाख टन है। ऐसे में देश में करीब 92 लाख टन अतिरिक्त चीनी है। मानकों के आधार पर एक अक्तूबर को देश में 60 लाख टन चीनी का बकाया स्टॉक होना चाहिए। जबकि उत्पादन अनुमानों के आधार पर इस साल बकाया स्टॉक इससे अधिक रहेगा।

 

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