किसान आंदोलन ने अटका दी सरकार की उर्वरक सब्सिडी सुधारों की गाड़ी

सरकार ने जब उर्वरक सब्सिडी के लिए अचानक 65 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त आवंटन को मंजूरी दी गई तो उससे इस बात के कयास लगाये गये कि सरकार उर्वरक सब्सिडी के मामले में सुधारों को लागू करने की तैयारी कर रही है। लेकिन अब लग रहा है कि सब्सिडी सुधारों पर अमल अटक गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह तीन केंद्रीय कानूनों के खिलाफ सौ दिनों से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन को माना जा रहा है।

किसान आंदोलन  ने अटका दी सरकार की उर्वरक सब्सिडी सुधारों की गाड़ी

केंद्र सरकार द्वारा बजट के थोड़ा पहले जब उर्वरक सब्सिडी के लिए अचानक 65 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त आवंटन को मंजूरी दी गई तो उससे इस बात के कयास लगाये गये कि सरकार उर्वरक सब्सिडी के मामले में सुधारों को लागू करने की तैयारी कर रही है। लंबे समय से सरकार की कोशिश है कि उर्वरकों और खासतौर से यूरिया पर सब्सिडी की प्रक्रिया में बदलाव किया जाए और इसे किसानों को सीधे नकद हस्तांतरण (डीबीटी) की सब्सिडी व्यवस्था के तहत लाया जाए। इसका पहला मकसद सब्सिडी को केवल जरूरतमंदों तक सीमित करना और दूसरा यूरिया (नाइट्रोजन उर्वरक) के उपयोग को कम कर उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना बताया जा रहा है। लेकिन तमाम तैयारियों के बावजूद उर्वरक सब्सिडी सुधार पर अमल अटक गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह तीन केंद्रीय कानूनों के खिलाफ सौ दिनों से ज्यादा अवधि से चल रहे किसान आंदोलन को माना जा रहा  है। सरकार नहीं चाहती कि वह किसी नये मुद्दे पर किसानों की नाराजगी मोल ले। उर्वरक सब्सिडी सुधारों के सबसे अहम कदम रूप में चरणबद्ध तरीके से यूरिया की कीमतों में इजाफा करना करने का प्रावधान भी शामिल है। वहीं रसोई गैस पर डीबीटी को लेकर लोगों का जो कड़वा अनुभव रहा है, उससे किसानों को उर्वरक सब्सिडी की डीबीटी व्यवस्था के विरोध की वजह कुछ उसी तरह मिल गई है जिस तरह कृषि मार्केटिंग सुधारों के मामले में आंदोलनरत किसान बिहार का उदाहरण सामने रख रहे हैं। जहां पर 2006 में एग्रीकल्चरल प्रॉड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) एक्ट समाप्त कर दिया गया और उसके चलते वहां सरकारी मंडियों की व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। 

उर्वरक सब्सिडी सुधारों को लागू करने की तैयारी के लिए सरकार ने कुछ किसान संगठनों से पिछले साल अगस्त-सितंबर में राय ली थी। इस चर्चा में शामिल रहे कई लोगों ने रुरल वॉयस को इस तरह की बैठक में शिरकत की बात कही है। लेकिन तीन कृषि सुधार कानूनों के विरोध में देश के बड़े हिस्से में किसान आंदोलन के चलते इस मुद्दे पर फिलहाल कोई हलचल नहीं हो रही है।

नई व्यवस्था के लिए जमीन तैयार करने की रणनीति के तहत सरकार ने कई कदम उठाये हैं। किसी एक माह में एक किसान को यूरिया के बैग बेचने की सीमा तय करना इसी का हिस्सा है। शुरू में 100 बैग प्रति किसान की खरीद सीमा तय की गई थी। बाद में यह सीमा 50 बैग तक कर दी है। हालांकि किसान कितनी बार यूरिया के बैग खरीदे इस पर कोई रोक नहीं थी।  कई जिलों में यह सीमा पांच बैग तक आ गई थी। उर्वरक उद्योग सूत्रों का कहना है कि यह कदम स्थानीय प्रशासन ने उठाया था जो यूरिया की किल्लत रोकने के लिए उठाया गया था। इस बीच उर्वरकों की बिक्री में गिरावट का अहम ट्रेंड उभर कर आया है जिसके मुताबिक अगस्त, 2020 से उर्वरकों की बिक्री में लगातार गिरावट आ रही है। केवल अक्तूबर, 2020 इसका अपवाद रहा है। अगस्त 2020 में 69.26 लाख टन उर्वरकों की बिक्री हुई जो इसके पहले साल अगस्त 2019 में 76.23 लाख टन रही थी। सितंबर,2020 में भी 47.34 लाख टन रही जबकि सितंबर, 2019 में उर्वरकों की बिक्री 53.26 लाख टन रही थी। नवंबर, दिसंबर, 2020 और जनवरी, 2021 व फरवरी, 2021 में भी उर्वरक बिक्री में गिरावट का यह दौर जारी रहा। इसके पीछे सरकार द्वारा उर्वरक बैग खरीदने की सीमा को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। किसानों को एक तय सीमा तक ही यूरिया बैग खरीदने की सीमा तय करने की एक वजह हर जिले में 20 सबसे अधिक यूरिया खरीदारों की  पहचान करना भी था। हालांकि उद्योग सूत्रों के मुताबिक उर्वरकों की बिक्री पिछले साल के मुकाबले 51 लाख टन ज्यादा रही है। इसमें यूरिया 20 लाख टन, एनपीके 20 लाख टन और 11 लाख टन डीएपी की अधिक बिक्री शामिल है।

यूरिया सब्सिडी के तहत चालू साल (2020-21) का संशोधित अनुमान 94,957 करोड़ रुपये रखा गया है जबकि इसका बजटीय प्रावधान 47,805 करोड़ रुपये था। इसी के चलते सरकार ने बजट के कुछ दिन पहले ही 65 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी की मंजूरी दी थी। आगामी वित्त वर्ष (2021-22) के लिए यूरिया सब्सिडी का बजटीय प्रावधान 58,768 करोड़ रुपये रखा गया है। वहीं न्यूट्रिएंट आधारित सब्सिडी के लिए 20,762 करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया गया है जबकि इसका चालू साल का संशोधित अनुमान 38,990 करोड़ रुपये रहा।

सुधारों की प्रक्रिया की जमीन तैयार करने के लिए सरकार ने उर्वरक उत्पादक कंपनियों को सब्सिडी देने की प्रक्रिया में भी बदलाव किया है। पहले उर्वरक उत्पादक कंपनियों द्वारा रेलवे रैक या डिस्ट्रिक्ट गोदाम पर स्टॉक के उतरने के आधार पर जो जानकारी सरकार को दी जाती थी उसके अनुसाल कंपनियों को सब्सिडी दी जाती थी। लेकिन अब सब्सिडी के आकलन को प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीन के आंकड़ों पर आधारित कर  दिया गया है। रिटेलर द्वारा किसानों को बेचे जाने वाले उर्वरक की मात्रा के आधार पर सब्सिडी दी जाती है।

सरकार के इस कदम से यह फायदा हुआ है कि जो किसान सब्सिडी का उर्वरक खरीद रहे हैं उनका डाटा सरकार के पास पहुंच रहा है। यानी एक तरह से डाटा बेस तैयार हो रहा है। इस डाटा के आधार पर किसानों को सीधे सब्सिडी उनके खातों में ट्रांसफर का काम आसान हो जाएगा। वहीं सरकार द्वारा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि देने के लिए जिन खातों का उपयोग होता है वह भी सीधे सब्सिडी देने की प्रक्रिया के लिए कारगर हो सकते हैं। डायरेक्ट सब्सिडी देने के लिए इंडस्ट्री एक्सपर्ट और सरकारी अधिकारियों का मानना है कि किसानों के क्रेडिट कार्ड में सब्सिडी को फ्रंड अपलोड किया जा सकता है। उर्वरक खरीदे जाने के वक्त पीओएस मशीन के जरिये कार्ड से सब्सिडी का समायोजन किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में सब्सिडी के बाद जो राशि बचेगी किसान उर्वरक विक्रेता को उसी का भुगतान करेगा।

हालांकि सरकार की किसानों को सीधे सब्सिडी देने की योजना में कई पेच हैं। मसलन किसानों की उर्वरक जरूरत फसलों, क्षेत्रीय, सिंचित और गैर-सिंचित भूमि के आधार पर तय होती है। ऐसे में अगर किसान को प्रति एकड़ के आधार सब्सिडी की दर तय की जाती है तो उसके लिए उर्वरक की जरूरत का आधार क्या होगा। वहीं देश में बड़ी संख्या में किसान ठेके पर खेती करते हैं और उसका कोई आधिकारिक  रिकॉर्ड उसके पास नहीं होता तो उस किसान को सब्सिडी का फायदा कैसे मिलेगा। ऐसे में  जमीन के मालिकाना हक के आधार पर सब्सिडी तय करने का कदम अव्यवहारिक साबित हो सकता है। दूसरे रसोई गैस की सब्सिडी की तरह किसान को अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर खाद खरीदने के बाद सब्सिडी की राशि उसके खाते में जाएगी तो यह किसानों के लिए मुश्किल होगा क्योंकि अधिकांश किसानों के खरीद के समय पूरी कीमत देने के लिए पैसा होगा, यह कहना मुश्किल है। दूसरी ओर किसान संगठनों के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार जो सब्सिडी उर्वरकों पर देगी वह अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर ही देगी या यूरिया कंपनियों की उत्पादन लागत के आधार पर देगी। इसके निर्धारण में कंपनियों के फीड स्टाक की कीमतें काफी अहम होती हैं। अगर इनके फीड स्टाक की कीमत घटती है तो क्या सरकार उर्वरकों पर सब्सिडी को कम नहीं करेगी इसकी क्या गारंटी है। जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें कम होने के बाद रसोई गैस की सब्सिडी कम की गई और उसके बाद दाम बढ़ने पर सब्सिडी नहीं दी गई और उपभोक्ताओं को ऊंची कीमत देकर इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। कल यही स्थिति उर्वरक सब्सिडी के मामले में नहीं होगी, इसकी गारंटी कौन देगा। असल में सरकार की कोशिश सब्सिडी बचाने की है। इस धारणा को बदलने के लिए सरकार को सब्सिडी को लेकर अपनी नीति साफ करनी होगी और उसका इसके फिस्कल मैनेजमेंट से कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहिए। वैसे भी रसोई गैस की सब्सिडी का मुद्दा राजनीतिक हो गया है तभी तो पश्चिम बंगाल के चुनावों में रसोई गैस को लेकर यह नारा खूब चल रहा है, चुनाव के पहले उज्जवला और चुनाव के बाद जुमला। 

जहां तक सरकार की उर्वरक सब्सिडी को लेकर सुधारों की  बात है तो उसके तहत चरणबद्ध तरीके से यूरिया की कीमतों में बढ़ोतरी करना है जबकि न्यूट्रिएंट आधारित (एनबीएस) सब्सिडी के तहत आने वाले उर्वरकों की कीमतों में कमी करना है। इसका मकसद उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देना है।

लेकिन फिलहाल लगता है कि उर्वरक सब्सिडी के मोर्चे पर सुधारों की सरकार की योजना ठंडे बस्ते में चली गई है क्योंकि सरकार को आशंका है कि इस संबंध में कोई भी कदम किसानों को विरोध को एक नया मौका दे सकता है। यही वजह है कि जो उर्वरक मंत्रालय लंबे समय से उर्वरक सब्सिडी की सीधे किसानों के खाते में हस्तांतरण की योजना पर काम कर रहा है वहां के अधिकारी भी इसी तरह के संकेत दे रहे हैं।

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