100 अरब डॉलर का कृषि निर्यात संभव, लेकिन नीति से खेती तक व्यापक बदलाव जरूरी

"100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात लक्ष्य की प्राप्ति" विषय पर केंद्रित इस सम्मेलन में वर्ष 2030 तक भारत के कृषि निर्यात को दोगुना करने से जुड़ी चुनौतियों और संभावनाओं पर मंथन किया गया। सम्मेलन में नीति-निर्माता, उद्योग प्रतिनिधि, विदेश व्यापार और कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हुए।

100 अरब डॉलर का कृषि निर्यात संभव, लेकिन नीति से खेती तक व्यापक बदलाव जरूरी

भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (आईआईएफटी) द्वारा रूरल वॉयस मीडिया प्लेटफॉर्म के सहयोग से बुधवार को नई दिल्ली स्थित आईआईएफटी परिसर में कृषि निर्यात पर एक राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। "100 अरब डॉलर के कृषि निर्यात लक्ष्य की प्राप्ति" विषय पर केंद्रित इस सम्मेलन में वर्ष 2030 तक भारत के कृषि निर्यात को दोगुना करने से जुड़ी चुनौतियों और संभावनाओं पर मंथन किया गया।

सम्मेलन के स्वागत संबोधन में आईआईएफटी के कुलपति प्रो. राकेश मोहन जोशी ने कहा कि वैश्विक निर्यात बाजार से जुड़ना एक दिन का काम नहीं है। इसके लिए सतत प्रयासों की जरूरत है और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनना होगा। प्रो. जोशी ने कहा कि भारत ने कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की है। अब इस सफलता को कृषि निर्यात में दोहराने की जरूरत है। लेकिन आज हम सेब, काजू, बादाम और कई फल-सब्जियों का भी बड़ी मात्रा में आयात कर रहे हैं। कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादों की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा। साथ ही, निर्यात से जुड़ी नीतियों में स्थायित्व होना जरूरी है।

सम्मेलन का पहला सत्र "कृषि निर्यात की चुनौतियां और अवसर" विषय पर केंद्रित था। इस सत्र में एपीडा के सचिव डॉ. सुधांशु ने कहा कि निर्यात बढ़ाने के लिए सभी हितधारकों को एक वैल्यू चेन के रूप में संगठित होना होगा। उत्पादन के स्तर पर कई चुनौतियां हैं। हमें गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेज (GAP) को अपनाना होगा। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि वे निर्यात की मांग और गुणवत्ता के अनुरूप उत्पादन कर सकें। डॉ. सुधांशु ने उदाहरण देते हुए बताया कि लीची की शेल्फ लाइफ 12-15 दिन तक बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। बनारस को एग्री एक्सपोर्ट हब के तौर पर विकसित किया गया है। निर्यात सुविधाओं के साथ-साथ निर्यातकों को एफपीओ से जोड़ा गया है। अब बनारस से लगभग 1000 टन फल और सब्जियों का निर्यात हो रहा है। इसी तरह अन्य लैंड लॉक्ड क्षेत्रों को भी निर्यात हब के रूप में विकसित किया जाएगा। 

एग्री बिजनेस एक्सपर्ट और एगवाया के पार्टनर सिराज ए. चौधरी ने कहा कि हम अक्सर आयातकों की जरूरत के बजाय अपने सरप्लस के आधार पर निर्यात करते हैं। इसलिए केवल कुछ ही उत्पादों का नियमित निर्यात कर पाते हैं। ऐसे में यह देखना जरूरी है कि किन उत्पादों में हमारा प्रतिस्पर्धात्मक लाभ है। हमें विशेष रूप से हाई वैल्यू उत्पादों पर फोकस करना होगा। सिराज चौधरी ने कहा कि बीज निर्यात हमारे लिए एक बड़ी संभावना हो सकता है। 100 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य हासिल करने के लिए उन्होंने उत्पाद आधारित लक्ष्य तय करने का भी सुझाव दिया। साथ ही, अलग-अलग क्षेत्रों और उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रणनीति बनाने की आवश्यकता बताई।

इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. पीके स्वैन ने कहा कि बेहतर उत्पादकता के लिए किसानों को बेहतर बीज, उन्नत तकनीक और वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने होंगे। साथ ही, निर्यात केंद्रित उत्पादों का चयन करना होगा। भारत में फल और सब्जियों की अधिकांश टेबल वैरायटी हैं, क्योंकि हमें ताजे उत्पाद पसंद हैं। निर्यात के लिए इंटीग्रेटेड कोल्ड चेन की जरूरत है। डेयरी क्षेत्र में भी हमारे पास अच्छी संभावनाएं हैं, लेकिन ढांचागत सुविधाओं की कमी एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, नॉन-टैरिफ बैरियर्स भी हमारे कृषि निर्यात के सामने बड़ी अड़चन हैं।

सम्मेलन के पहले सत्र का संचालन करते हुए रूरल वॉयस के प्रधान संपादक हरवीर सिंह ने किसानों की आमदनी बढ़ाने में कृषि निर्यात को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने यह भी कहा कि निर्यात से जुड़े अवसरों का लाभ किसानों तक पहुंचाना बेहद जरूरी है। इस अवसर पर रूरल वॉयस के प्रकाशन 'रूरल वर्ल्ड' के कृषि निर्यात विशेषांक का विमोचन भी किया गया। पैनल में शामिल सभी वक्ताओं और सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए हरवीर सिंह ने कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़े अहम मुद्दों पर सार्थक संवाद का सिलसिला लगातार जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराई। 

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