किसान को दाम का न्यूनतम भरोसा मिलना ही चाहिए - शिवराज सिंह चौहान
केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री, शिवराज सिंह चौहान, "विकसित कृषि संकल्प अभियान" के ज़रिए विज्ञान को किसान तक पहुँचाने की मुहिम में जुटे हैं। देशभर में कृषि वैज्ञानिकों को साथ लेकर वे लैब से लैंड के बीच की दूरी को पाटने का प्रयास कर रहे हैं। इसका उद्देश्य नई तकनीक, नवाचारों, खेती के उन्नत तरीकों और सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों तक पहुँचाना है।

29 मई से 12 जून तक चलने वाले "विकसित कृषि संकल्प अभियान" के तहत वैज्ञानिकों की दो हज़ार टीमें गाँव-गाँव जाकर किसानों से सीधा संवाद करेंगी। इस दौरान देश के 1.5 करोड़ से अधिक किसानों तक पहुँचने का लक्ष्य रखा गया है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद 20 राज्यों में प्रवास करेंगे, ताकि किसानों से सीधा संवाद कर विकसित भारत के लिए विकसित कृषि की रूपरेखा तैयार की जा सके। 2 जून को बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के पीपराकोठी कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में पहुँचे केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रूरल वॉयस के एडिटर-इन-चीफ, हरवीर सिंह के साथ ख़ास बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश:
सवाल: देशभर में करोड़ों किसानों, सरकार और वैज्ञानिकों के बीच इतने व्यापक स्तर पर संवाद का यह अनूठा अभियान है। इस अभियान को शुरू करने के पीछे आपकी क्या सोच रही है?
शिवराज सिंह चौहान: हमारे पास एक विरासत है। बुद्धिमान वैज्ञानिक हैं, टैलेंट है और वे रिसर्च भी कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ मेहनती किसान हैं। लेकिन एक गैप मुझे लगा कि जो शोध प्रयोगशालाओं में हो रहा है वह खेत तक नहीं पहुँच रहा है। जब तक मंत्री, वैज्ञानिक और कृषि विभाग खेत में नहीं जाएँगे और किसान से नहीं मिलेंगे, कृषि भवन में बैठे-बैठे बस मीटिंग करते रहेंगे तो सही समस्याओं से वाकिफ नहीं हो सकते। उत्पादन बढ़ाना है, लागत घटानी है, ठीक दाम देना है, देश का पेट भी भरना है। खेती को किसानों के लिए फ़ायदे का धंधा भी बनाना है। मुझे यह लगा कि मैं तो निकलूं ही लेकिन पूरी टीम निकले।
यह केवल तकनीकी जानकारी देने का कार्यक्रम नहीं है, बल्कि किसानों से सीधे जुड़ने और उन्हें नई तकनीकों से सशक्त बनाने की पहल है। राज्य सरकारें इस मिशन को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।
सवाल: इस अभियान के तहत आप देश भर में जा रहे हैं। इसका क्या इंपैक्ट देख रहे हैं?
शिवराज सिंह चौहान: वैज्ञानिक अगर किसान के खेत तक जाएँ तो सही जानकारी वो देंगे और इनपुट भी मिलेगा। जैसे मैं कल उत्तर प्रदेश के मेरठ गया। वहाँ एक गन्ना किसान ने बताया कि गन्ने की एक क़िस्म जिसका उन्हें बहुत फ़ायदा हुआ था, अब उसमें बहुत रोग लग गया है। यह क़िस्म सीओ 0238 है। इसमें रेड रोट की बीमारी है, इससे किसानों को बहुत नुक़सान हो रहा है। किसान बिना समझे अधिक पेस्टीसाइड डाल रहे हैं, उसका फ़ायदा नहीं हो रहा है। वैज्ञानिकों ने उन्हें बताया कि क्या पेस्टीसाइड इस्तेमाल करना है और कैसे करना है।
सवाल: एक बात एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को लेकर भी है कि एमएसपी बढ़ना चाहिए और एमएसपी मिलना चाहिए, इस बारे में क्या मानना है?
शिवराज सिंह चौहान: दोनों चीजें हैं। एक न्यूनतम एश्योरेंस भी हमें किसान को देना पड़ेगा, लेकिन वही समाधान नहीं है। कृषि विविधीकरण, उत्पादन बढ़ाना, लागत घटाना और इंटर क्रॉपिंग पर ध्यान देने की ज़रूरत है। इंटर क्रॉपिंग करके आप कई चीजें उगा सकते हैं। जैसे हरियाणा के एक किसान ने बताया कि वह एक एकड़ में तीन लाख रुपया शुद्ध कमा रहा है। सात एकड़ में वो छह महीने में इक्कीस लाख कमा चुका, इसलिए कि वो एक फसल नहीं लगा रहा है, 17 फसलें लगा रहा है। इस तरह की चीजें करनी चाहिए।
मैं ऐसे प्रगतिशील किसानों की कहानियाँ भी सुना रहा हूँ। उनकी समस्याएँ भी समझ रहा हूँ, ताकि बाक़ी किसान प्रेरणा भी लें और जो दिक़्क़तें हैं उनको दूर भी करने के प्रयास किए जाएँ।
सवाल: किसानों की जोत छोटी होती जा रही है। लेकिन हमें उत्पादन भी बढ़ाना है। इस चुनौती से कैसे निपटेंगे?
शिवराज सिंह चौहान: हम सब मिलकर प्रयास करेंगे, तो समाधान निकलेंगे। अभी हमने मोदी जी के नेतृत्व में खाद्यान्न उत्पादन का रिकॉर्ड बनाया है। निश्चित तौर पर उत्पादन बढ़ेगा और आय भी बढ़ेगी। यहाँ बिहार में लीची किसानों की समस्या है। यह 48 घंटे में ख़राब हो जाती है। हमें लीची की शेल्फ़ लाइफ़ बढ़ाने की ज़रूरत है। इसके लिए मैंने वैज्ञानिकों को कहा कि शोध करें जिससे लीची की शेल्फ़ लाइफ़ बढ़ जाए। मैंने कहा कि एक टीम बना लो - एक देश, एक टीम - जिसमें आईसीएआर के वैज्ञानिक हों, राज्य कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक हों, केवीके, केंद्र और राज्य के कृषि विभाग और कृषि मंत्री शामिल हों।
सवाल: हमने खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है। हमारा कृषि निर्यात भी बढ़ा है। पिछले साल भारत ने 12 बिलियन डॉलर से अधिक का चावल निर्यात किया। लेकिन हम दालों और तिलहन का बड़ा आयात कर रहे हैं। इसमें कैसे संतुलन बनेगा?
शिवराज सिंह चौहान: अभी हमने कोशिश की है। एक तरफ़ा मामला हो गया जैसे धान या जिन इलाक़ों में गन्ना करते हैं, वहाँ किसान गन्ना नहीं छोड़ना चाहते हैं। उनको लगता है कि गन्ना ही ठीक फसल है। इसी तरह बिहार में मक्का का क्षेत्रफल आप देखेंगे कैसे बढ़ रहा है, लेकिन हमें संतुलन स्थापित करना होगा। इसके लिए हम कोशिश कर रहे हैं। दलहन और तिलहन मिशन बनाया है। कोशिश है कि इनका उत्पादन बढ़े।
सवाल: हमने अधिक उत्पादकता धान, गेहूँ, कपास और गन्ना में तो कर लीं, लेकिन यह काम हम दलहन-तिलहन में नहीं कर सके। आपको नहीं लगता है कि कई फसलों के मामले में टेक्नोलॉजी गैप है?
शिवराज सिंह चौहान: मैंने आईसीएआर को निर्देश दिए हैं कि दलहन और तिलहन में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कैसे बढ़े, उस पर काम करें। इसमें सोयाबीन भी शामिल है। लेकिन हमारी कुछ सीमाएँ हैं, जैसे जीएम सीड्स अभी इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, केवल कपास में कर रहे हैं। लेकिन हमने जीनोम एडिटिंग पद्धति से धान की दो क़िस्में तैयार की हैं। अब मैंने वैज्ञानिकों से कहा है कि दालों में इसका उपयोग करें, खाद्य तेलों में भी करें।
सवाल: बतौर कृषि मंत्री अपने एक साल के कार्यकाल को कैसे देखते हैं?
शिवराज सिंह चौहान: मैं पूरी तरह से कृषि पर फोकस कर रहा हूँ। खेती के अलावा मुझे और कुछ अच्छा नहीं लगता! बस खेती और ग्रामीण विकास। मुझे अगर कोई काम पार्टी कहती भी है कि इस चुनाव में चले जाओ, तो उसके मुक़ाबले मुझे लगता है कि मुझे इसी में मज़ा आ रहा है, क्योंकि मैं इसमें घुसकर काम करूँगा तो नतीजे आएँगे।
सवाल: विकसित कृषि संकल्प अभियान पूरा होने के बाद क्या कोई ब्लूप्रिंट/कार्ययोजना देश के सामने रखेंगे?
शिवराज सिंह चौहान: हर राज्य के लिए एक नोडल अफ़सर है। नोडल अफ़सर वैज्ञानिकों के साथ मिलकर रिपोर्ट बनाएँगे। हर प्रांत और वहाँ के हर एग्रो क्लाइमेट ज़ोन की अलग रिपोर्ट बनेगी। वह रिपोर्ट हमारे पास आएगी। उस रिपोर्ट पर हम विशेषज्ञों के साथ चर्चा करेंगे और चर्चा करके खेती की दिशा नए सिरे से तय करेंगे।
यह अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विज़न के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों को किसानों तक पहुँचाकर उत्पादन और आय बढ़ाना है।
सवाल: भारत का कृषि निर्यात 50 बिलियन डॉलर पर स्थिर हो गया है। पिछले वित्त वर्ष (2024-25) में 51.9 अरब डॉलर का कृषि निर्यात किया। अब 100 बिलियन डॉलर कृषि निर्यात का टारगेट है। इस लेकर क्या रणनीति है?
शिवराज सिंह चौहान: कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए हम तीन तरह की चीजें कर रहे हैं। एक, नए शोध। किसान अगर पैदा करेगा तो वो उसका लाभ भी देखेगा। पैसा उसको किस चीज़ में ज़्यादा मिल रहा है और स्वाभाविक रूप से उसकी पहली प्राथमिकता वही रहेगी। वह उसी चीज़ की तरफ़ जाएगा जहाँ लाभ होगा। और लाभ होगा दो तरह से - शोध और रिसर्च और उसके बाद प्रोसेसिंग से। तो हमको वो तरीक़े भी अपनाने पड़ेंगे।
दूसरा, राज्य सरकार को भी देखना है। खेती राज्यों का विषय है। अकेला मैं दिल्ली से यह नहीं कर सकता। तो मैंने दूसरा काम यह किया है कि मैं राज्य सरकारों के साथ चर्चा करूँ। बिहार के साथ हम बैठे, महाराष्ट्र गया तो वहाँ की सरकार के साथ बैठे। हम राज्य सरकार के साथ कोऑर्डिनेशन कर वहाँ की जलवायु, वहाँ की परिस्थिति, वहाँ के मार्केट और वहाँ के किसानों की सोच, उसको ध्यान में रखते हुए योजनाएँ बनाने में सहयोग करेंगे।
सवाल: कृषि में निवेश बढ़ाने की चुनौती रहती है। इसके लिए किस तरह के क़दम उठाएँगे?
शिवराज सिंह चौहान: हम हर चीज़ ठीक से देखेंगे और जो भी आवश्यकता पड़ेगी उसकी कमी नहीं पड़ने देंगे। प्रधानमंत्री भी शोध और रिसर्च के पक्ष में हैं। संसाधनों की कोई भी कमी नहीं होने दी जाएगी। अभी हमारे 113 संस्थान काम कर रहे हैं। वहाँ फोकस करके कहाँ क्या करना है उसके हिसाब से करेंगे।
सवाल: कृषि मंत्रालय ने नेशनल एग्रीकल्चरल मार्केटिंग फ़्रेमवर्क तैयार किया है, उस पर कैसे अमल होगा?
शिवराज सिंह चौहान: मार्केटिंग फ़्रेमवर्क बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस अभियान के बाद उस पर काम शुरू होगा। राज्यों के साथ मिलकर फोकस करेंगे।