भारत में कृषि खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए इनोवेशन और प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप जरूरी

जिन देशों ने अपने कृषि अनुसंधान को नए इनोवेशन तथा उनके व्यापक इस्तेमाल की ओर मोड़ा है, वे लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। सच बात तो यह है कि कृषि अनुसंधान और इनोवेशन पर जितना अधिक जोर दिया गया, कृषि जीडीपी की वृद्धि दर उतनी अधिक हुई है।

भारत में कृषि खाद्य प्रणाली में बदलाव के लिए इनोवेशन और प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप जरूरी
जी20 देशों के कृषि वैज्ञानिकों का पिछले महीने वाराणसी में हुआ था सम्मेलन।

दुनिया की आबादी वर्ष 2050 तक 920 करोड़ हो जाने की संभावना है। लगातार बढ़ती आबादी को खिलाने तथा टिकाऊ विकास लक्ष्य (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल - एसडीजी) को हासिल करने के लिए कृषि विकास की गति बढ़ाना जरूरी है। खासकर गरीबी, भूख और पर्यावरण की चिंताओं को देखते हुए। जिन देशों ने अपने कृषि अनुसंधान को नए इनोवेशन तथा उनके व्यापक इस्तेमाल की ओर मोड़ा है, वे लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। सच बात तो यह है कि कृषि अनुसंधान और इनोवेशन पर जितना अधिक जोर दिया गया, कृषि जीडीपी की वृद्धि दर उतनी अधिक हुई है।

हरित क्रांति अपने आप में एक इनोवेशन थी। इसमें ज्यादा पैदावार और छोटे आकार के गेहूं तथा चावल के पौधों की वैरायटी विकसित की गई। इन किस्मों पर इनपुट का अच्छा असर हुआ जिससे उत्पादन तथा उत्पादकता दोनों में काफी तेज वृद्धि हुई। इसी का परिणाम है कि आबादी चार गुना बढ़ने के बावजूद भारत अनाज का उत्पादन छह गुना बढ़ाने में कामयाब हुआ और इस तरह खाद्य सुरक्षा हासिल की।

इस सफलता के प्रमुख कारण थे- 1) राजनीतिक इच्छाशक्ति 2) अच्छे संस्थान 3) बीज, पानी, उर्वरक जैसे इनपुट के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर 4) कृषि एक्सटेंशन के क्षेत्र में सक्षम कर्मी और किसान तथा 5) वैश्विक स्तर पर साझेदारी (जैसे CIMMYT और IRRI)।

भारत की आबादी में अब भी हर साल 1.5 करोड़ लोग जुड़ते हैं, जिनके लिए 50 लाख टन अनाज की जरूरत पड़ती है। यह चुनौती हरित क्रांति की दूसरी पीढ़ी की चुनौतियों से अलग है। इनमें फैक्टर उत्पादकता में कमी, प्राकृतिक संसाधनों में गिरावट, इनपुट की लागत में वृद्धि, बीमारियों और कीटों के अधिक हमले, परिवारों की पोषण सुरक्षा की बढ़ती चिंता, किसानों की कम होती आय और सबसे बड़ी बात, जलवायु परिवर्तन पर विपरीत प्रभाव शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए हमें विकास के लिए कृषि अनुसंधान (AR4D) से हटकर विकास के लिए कृषि अनुसंधान एवं इनोवेशन (ARI4D) की ओर जाना पड़ेगा।

80 फ़ीसदी छोटे और सीमांत किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए ऐसे इनोवेशन और टेक्नोलॉजिकल विकास की जरूरत है, जिनसे न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों की बचत होगी बल्कि इनपुट की लागत में कमी आएगी, न सिर्फ उत्पादकता बढ़ेगी और कृषि आय में निरंतरता आएगी बल्कि मौजूदा कृषि खाद्य प्रणाली में बदलाव करके किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी सहायक होगी।

इस संदर्भ में कुछ इनोवेशन का इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर बढ़ाने की जरूरत है। ये हैं हाइब्रिड टेक्नोलॉजी, जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलें, सस्टेनेबल इंटेंसिफिकेशन के लिए संरक्षण कृषि, लघु सिंचाई, फर्टिगेशन (माइक्रो स्प्रिंकलर अथवा ड्रिप सिस्टम के जरिए सिंचाई के पानी के साथ उर्वरक का प्रयोग), एकीकृत पोषण प्रबंधन (आईएनएम), एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम), संरक्षित खेती, वर्टिकल खेती, जीनोम एडिटिंग के साथ नैनो टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग। इनसे खेती में लचीलापन और सस्टेनेबिलिटी के बेहतर मौके मिल सकते हैं। इसे हासिल करने के लिए उचित पॉलिसी के माध्यम से सरकार की मदद, सार्वजनिक निजी साझेदारी, इनोवेटिव एक्सटेंशन प्रणाली, जिसमें बेहतर जानकारी देने के लिए युवाओं को शामिल किया जाए, खासकर सेकेंडरी और स्पेशलिटी खेती के मामले में, जैसे उपाय महत्वपूर्ण हैं।

इन्सेंटिव और पुरस्कार के साथ-साथ बौद्धिक संपदा की रक्षा के बिना इनोवेशन का बड़े पैमाने पर प्रयोग संभव नहीं हो सकेगा। इसके लिए संस्थागत और नीतिगत स्तर पर इनोवेटिव सुधारों की आवश्यकता है। इनमें ARI4D पर निवेश दोगुना करना, मंत्रालयों और संस्थाओं के बीच बेहतर समन्वय और मिशन मोड में समयबद्ध तरीके से कार्यक्रम लागू करना शामिल हैं। 

इसलिए ARI4D में जी-20 देशों के बीच एक मजबूत समन्वय भविष्य में हमारी खाद्य पोषण और पर्यावरण सुरक्षा की कुंजी बनेगा।

(लेखक TAAS के चेयरमैन, DARE के पूर्व सचिव और ICAR के पूर्व डीजी हैं।  यह आलेख वाराणसी में आयोजित जी20 के मुख्य कृषि वैज्ञानिकों की बैठक (MACS) में डॉ. परोदा द्वारा पेश किए पेपर का सार है।)

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