किसानों के लिए सॉवरिन फंड बनाने की वकालत, मिले बैंक लोन की गारंटी

सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. डीएन ठाकुर ने किसानों की पूंजी की समस्या को दूर करने के लिए सॉवरिन फंड बनाने की वकालत की है। इस फंड के जरिये बैंकों को गारंटी दी जाए ताकि वे किसानों को आसानी से कर्ज दे सकें। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एवं नेकॉफ अवार्ड 2023 कार्यक्रम में उन्होंने इसकी वकालत की।  

किसानों के लिए सॉवरिन फंड बनाने की वकालत, मिले बैंक लोन की गारंटी
रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एवं नेकॉफ अवार्ड 2023 कार्यक्रम को संबोधित करते सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. डीएन ठाकुर।

सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. डीएन ठाकुर ने किसानों की पूंजी की समस्या को दूर करने के लिए सॉवरिन फंड बनाने की वकालत की है। इस फंड के जरिये बैंकों को गारंटी दी जाए ताकि वे किसानों को आसानी से कर्ज दे सकें। रूरल वॉयस एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव एवं नेकॉफ अवार्ड 2023 कार्यक्रम में उन्होंने इसकी वकालत की।    

नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम के “फार्मर्स कलेक्टिव एंड न्यू राइजिंग सेक्टर्स इन एग्रीकल्चर” सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. डीएन ठाकुर ने कहा, “किसानों की पूंजी की समस्या को दूर करने के लिए सरकार बैंकों को सॉवरिन गारंटी दे और उससे कहे कि किसानों को आसानी से लोन दो। इस फंड के जरिये सरकार बैंकों को यह भरोसा दे कि उसका एक-एक पैसा सुरक्षित रहेगा। अगर डिफॉल्ट होता है तो सरकार इसकी गारंटी लेती है। कर्ज लेने की जो प्रक्रियात्मक बाधाएं हैं उसको खत्म करने की जरूरत है।”

उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा, फर्टिलाइजर सब्सिडी सहित किसानों की अन्य योजनाओं के लिए केंद्र सरकार सालाना करीब 15-16 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है। इसमें अगर राज्यों की योजनाओं का भी पैसा जोड़ दिया जाए तो यह करीब 30-40 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा। उन्होंने सुझाव दिया कि इन सब योजनाओं को एक में ही समाहित कर किसानों के लिए एक सॉवरिन फंड बना दिया जाए और इस पर जो रिटर्न मिलेगा उससे किसानों के एक-एक लोन की गारंटी हो जाएगी।

उन्होंने कहा कि हर गांव में किसानों की कोऑपरेटिव बननी चाहिए। इसके जरिये किसानों को फसल उत्पादन से लेकर फसल की बिक्री करने तक में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट को गांव में सीधे निवेश नहीं करना चाहिए, बल्कि गांव को कोऑपरेटिव के जरिये निवेश को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। साथ ही कोऑपरेटिव को इतना समर्थ बना दिया जाए कि वह अपने प्रत्येक सदस्य के एक-एक दाने की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कर सके और उन्हें अपनी उपज बेचने में परेशानी न हो। यह तभी सुनिश्चित होगा जब  हर गांव में कोऑपरेटिव बन जाएगा।

उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव तब तक सफल नहीं होंगे जब तक लोगों में सामूहिकता की भावना नहीं आएगी। प्राइमरी लेवल पर किसानों की इस संस्था को किसानों का ही रहने दिया जाए और उसके हाथ में पैसा दिया जाए, क्योंकि बिना पैसे के तो कुछ नहीं हो सकता। वह पैसा बैंक दे। इससे बैंकों का कारोबार भी बढ़ेगा और कोऑपरेटिव भी मजबूत होंगे।

उन्होंने कृषि और ग्रामीण क्षेत्र की भविष्य की समस्याओं पर चिंता जताते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है। उन्होंने सवाल उठाया कि आज भारत खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर है लेकिन क्या भविष्य में भी यह सुरक्षा बनी रहेगी। इसी तरह, विकास के लिए जरूरी ऊर्जा सुरक्षा क्या हमेशा मिलती रहेगी। उन्होंने कहा कि भविष्य के लिए पानी और बेरोजगारी की समस्या भी एक बड़ी चुनौती है। इन समस्याओं का समाधान सिर्फ सरकार नहीं कर सकती है, बल्कि सामूहिकता के जरिये इनका हल निकाला जा सकता है। इसके लिए कोऑपरेटिव को समर्थन देने की जरूरत है।

डॉ. ठाकुर के मुताबिक, इतने बड़े देश में एक मॉडल नहीं, बल्कि अलग-अलग मॉडल अपनाने की जरूरत है। ऐसे मॉडल की जरूरत है जिसके जरिये किसानों को आसानी से लोन मिल सके, बैंक गारंटी मिल सके और हर गांव में कोऑपरेटिव के जरिये किसानों की उपज खरीदने की व्यवस्था हो सके। 

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