संकट में सोयाबीन के किसान, एमएसपी से नीचे गिरे दाम
केंद्र सरकार ने सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4600 रुपये तय किया है लेकिन सोयाबीन उत्पादक मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में सोयाबीन के दाम एमएसपी से नीचे हैं और किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
भारत अपनी खाद्य तेलों की जरूरत का करीब 57 फीसदी आयात के जरिए पूरा करता है। खाद्य तेलों के आयात पर हर साल करीब 20.56 अरब डॉलर का खर्च होता है। वहीं, दूसरी तरह देश में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को उचित दाम नहीं मिल पा रहा है। केंद्र सरकार ने सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4600 रुपये तय किया है लेकिन सोयाबीन उत्पादक मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में सोयाबीन के दाम एमएसपी से नीचे हैं और किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
सरकारी पोर्टल एगमार्केट के अनुसार, इस महीने मध्यप्रदेश की कृषि मंडियों में सोयाबीन का औसत भाव 4385 रुपये प्रति क्विंटल रहा है जो एमएसपी से नीचे है और पिछले साल के मुकाबले 14.61 फीसदी कम है। प्रमुख सोयाबीन उत्पादक महाराष्ट्र में भी सोयाबीन का भाव पिछले साल के मुकाबले 14.15 फीसदी की गिरावट के साथ एमएसपी से नीचे रहा है।
यह दोनों राज्यों की मंडियों का इस महीने का औसत भाव है। वास्तव में, कई मंडियों में सोयाबीन का भाव का न्यूनतम भाव 3000-3500 हजार रुपये तक गिर चुका है। जबकि दो साल पहले सोयाबीन का भाव 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल से भी ऊपर चला गया था। अच्छा भाव मिलने के बाद किसानों का रुझान सोयाबीन की तरफ बढ़ा, लेकिन इस साल फिर सोयाबीन किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है।
मध्यप्रदेश में आम किसान यूनियन के नेता राम इनानिया का कहना है कि अच्छी क्वालिटी की सोयाबीन का भाव भी मुश्किल से 4000-4100 रुपये तक प्रति क्विंटल मिल पा रहा है। कई जगह रेट इससे भी कम है। 4600 रुपये एमएसपी के मुकाबले किसानों को प्रति क्विंटल 500-700 रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है। उपज के दाम एमएसपी से नीचे ना जाएं इसके लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी होनी चाहिए।
महाराष्ट्र में शेतकरी संगठन के नेता अनिल घनवट ने रूरल वॉयस को बताया कि यह लगातार तीसरा साल है जब किसानों को सोयाबीन के दाम नहीं मिल रहे हैं। एक तरफ सरकार तिलहन उत्पादन बढ़ाने की बात कहती है जबकि सस्ते खाद्य तेलों के आयात के चलते देश के तिलहन किसानों को सरकार द्वारा घोषित एमएसपी भी नहीं मिल पा रहा है।
इस बार मौसम की मार के चलते सोयाबीन को नुकसान पहुंचा था। फसल कटाई के बाद भाव बढ़ने के इंतजार में बहुत से किसानों ने सोयाबीन की बिक्री नहीं की और स्टॉक कर रखा था। होली, रमजान और शादियों के सीजन को देखते हुए मार्च में सोयाबीन का भाव बढ़ने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन अब भी सोयाबीन की कीमतें किसानों की उम्मीदों के मुताबिक नहीं बढ़ी हैं। गत फरवरी में मध्यप्रदेश में सोयाबीन का औसत भाव 4300 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि मार्च में यह मामूली बढ़ोतरी के साथ 4385 रुपये है।

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