तीन हिंदी प्रदेशों में जीत के बाद भाजपा के लिए आसान लगने लगा 2024 का मुकाबला, ‘इंडिया’ में कम हो सकता है कांग्रेस का वजन

अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आए हैं। अब 12 राज्यों में इसकी अपने दम पर सरकार हो गई है। इस मामले में कांग्रेस अब सिर्फ तीन राज्यों में सिमट गई है। एंटी इनकंबेंसी यानी सरकार विरोधी रुख के तमाम दावों को दरकिनार करते हुए पार्टी ने मध्य प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की है। यह राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए फिर से सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है।

तीन हिंदी प्रदेशों में जीत के बाद भाजपा के लिए आसान लगने लगा 2024 का मुकाबला, ‘इंडिया’ में कम हो सकता है कांग्रेस का वजन

अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आए हैं। अब 12 राज्यों में इसकी अपने दम पर सरकार हो गई है। इस मामले में कांग्रेस अब सिर्फ तीन राज्यों में सिमट गई है। एंटी इनकंबेंसी यानी सरकार विरोधी रुख के तमाम दावों को दरकिनार करते हुए पार्टी ने मध्य प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की है। यह राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए फिर से सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। वैसे राजस्थान में दोनों पार्टियों की बारी-बारी से सरकार बनने की परंपरा रही है। बहरहाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हिंदी प्रदेशों में भाजपा की सरकार बनने के बाद 2024 का मुकाबला पार्टी के लिए अब अपेक्षाकृत आसान लगने लगा है। हिंदी प्रदेशों में कांग्रेस के पास अब सिर्फ हिमाचल प्रदेश है। बिहार और झारखंड में वह जूनियर पार्टनर की भूमिका में है।

मध्य प्रदेश में करीब दो दशक से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला था लेकिन बीच में ही सिंधिया खेमे के कांग्रेस से अलग होने के बाद राज्य में फिर से शिवराज सिंह चौहान की सरकार बन गई थी। इस बार माना जा रहा था कि भाजपा को एंटी इनकंबेंसी का नुकसान होगा। लेकिन इसके विपरीत पार्टी पिछली बार से भी अधिक सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही है। माना जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित न करके पार्टी ने एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को कम करने की कोशिश की। इसी कोशिश के तहत पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाने की भरपूर कोशिश की और पूरे राज्य में मोदी के बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए। वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा को इन तीनों राज्यों में हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी ने इस बार स्थानीय मुद्दों को उठाने के बजाय प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ना उचित समझा। प्रचार के दौरान मोदी ही पार्टी का चेहरा रहे। चुनावी रणनीति भी केंद्रीय नेता ही तय कर रहे थे। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुरू में रोजाना 8 से 10 रैलियां कर रहे थे। उन्होंने कुल 155 रैलियां कीं और अपने भाषणों में महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की। बाद के दिनों में वे प्रति दिन करीब 15 रैलिंयां कर रहे थे, जबकि कांग्रेस के कमलनाथ एक दिन दो से तीन रैलियों में जा रहे थे।

भाजपा ने यहां अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कई रणनीति अपनाई थी। उसने नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद सिंह पटेल समेत कई केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को इस चुनाव में उतारा था। पार्टी की इस जीत में शिवराज सरकार की लाडली बहन स्कीम का अहम योगदान माना जा रहा है। इस स्कीम के तहत राज्य की एक करोड़ से अधिक महिलाओं को प्रतिमाह 1250 रुपए की सहायता राशि दी जाती है। राज्य की करीब 45% आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की है। इसे देखते हुए भाजपा ने अनेक ओबीसी उम्मीदवार खड़े किए थे। इस वर्ग के वोटरों को लुभाने के लिए प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना का भी खूब प्रचार किया गया। पार्टी ने किसी को मुख्यमंत्री चेहरा तो घोषित नहीं किया था लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी नेताओं को टिकट देकर उसने पार्टी में विद्रोह को भी संभाल लिया। ऐसा लगता है कि मतदाताओं ने यह देखा कि किसकी 'मुफ्त' की घोषणाएं ज्यादा अच्छी हैं।

कांग्रेस ने यहां 78 साल के कमलनाथ और 76 साल के दिग्विजय सिंह पर ही भरोसा जताया था, लेकिन वे भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को भेदने में नाकाम रहे। कांग्रेस पार्टी ने यहां 11 गारंटी का अभियान चलाया था लेकिन लगता है कि भाजपा की गारंटी के सामने उसकी गारंटी फीकी पड़ गई। 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को मध्य प्रदेश में सिर्फ एक और छत्तीसगढ़ में दो सीटें मिली थीं। विधानसभा चुनाव के रुझान को देखा जाए तो अगले आम चुनाव में पार्टी की स्थिति बहुत सुधरता नहीं लग रही है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर दक्षिणी राज्यों तक ही सीमित लग रहा है।

पार्टी को अंदरुनी कलह का भी नुकसान हुआ है। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जब तब तनातनी दिख जाती थी। यही स्थिति छत्तीसगढ़ में थी। वहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के बीच अनबन जगजाहिर है। हालांकि सचिन पायलट की तरह सिंहदेव ने कभी खुलकर नाराजगी व्यक्त नहीं की। माना जा रहा है कि महादेव घोटाले का भी भाजपा को फायदा मिला।

मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की कमजोर स्थिति को देखते हुए माना जा रहा है कि आगामी आम चुनाव में पार्टी ‘इंडिया’ गठबंधन में दबदबा नहीं रख सकेगी और ना ही ज्यादा सीटों पर दावे कर सकेगी। क्षेत्रीय दल इस पर हावी होने की कोशिश करेंगे। भाजपा विरोधी इंडिया गठबंधन की धुरी कांग्रेस ही है। उसके खराब प्रदर्शन के बाद गठबंधन का भविष्य भी कमजोर लगने लगा है। तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार, जिसे हराकर कांग्रेस वहां सरकार बनाने की स्थिति में आई है, ने इंडिया गठबंधन में शामिल होने से इनकार करते हुए भाजपा और कांग्रेस दोनों विरोधी मंच बनाने का आह्वान किया था।

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