बारिश ने अगस्त में तरसाया, सितंबर में हालात नहीं सुधरे तो खरीफ फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा ज्यादा असर

धान और मोटे अनाजों की बुवाई में वृद्धि की वजह से खरीफ फसलों की कुल बुवाई के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1 सितंबर तक खरीफ फसलों की कुल बुवाई पिछले साल के 1073.22 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़कर 1077.82 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है। इसकी वजह से चालू खरीफ सीजन में बंपर पैदावार की संभावना जताई जा रही थी। मगर अल-नीनो के मजबूत होने से अगस्त में 120 साल बाद सबसे कम बारिश होने और तापमान सामान्य से ज्यादा रहने की वजह से इस उम्मीद पर पानी फिरता नजर आने लगा है। इसका असर खरीफ के साथ-साथ रबी सीजन की फसलों पर भी पड़ने की आशंका जताई जाने लगी है।

बारिश ने अगस्त में तरसाया, सितंबर में हालात नहीं सुधरे तो खरीफ फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा ज्यादा असर
अगस्त में 120 साल बाद सबसे कम बारिश हुई है।

धान और मोटे अनाजों की बुवाई में वृद्धि की वजह से खरीफ फसलों की कुल बुवाई के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1 सितंबर तक खरीफ फसलों की कुल बुवाई पिछले साल के 1073.22 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़कर 1077.82 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है। इसकी वजह से चालू खरीफ सीजन में बंपर पैदावार की संभावना जताई जा रही थी। मगर अल-नीनो के मजबूत होने से अगस्त में 120 साल बाद सबसे कम बारिश होने और तापमान सामान्य से ज्यादा रहने की वजह से इस उम्मीद पर पानी फिरता नजर आने लगा है। इसका असर खरीफ के साथ-साथ रबी सीजन की फसलों पर भी पड़ने की आशंका जताई जाने लगी है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगस्त में सूखे जैसे हालात की वजह से खरीफ के उत्पादन पर 15-20 फीसदी असर पड़ सकता है, खासकर दलहन और तिलहन फसलों पर इसका ज्यादा असर पड़ सकता है।   

भारत मौसम विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2023 में सामान्य से 36 फीसदी कम बारिश हुई है। जबकि मानसून की कुल बारिश 11 फीसदी कम रही है। हालांकि, आईएमडी ने सितंबर में सामान्य बारिश की भविष्यवाणी की है लेकिन इस महीने का पहला हफ्ता बीतने वाला है और हालात अगस्त जैसे ही हैं। 15 सितंबर के बाद से दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी की शुरुआत हो जाती है।

नेशनल रेनफेड डेवलपमेंट अथॉरिटी के पूर्व चेयरमैन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल, नेचुलर रिसोर्स मैनेजमेंट डॉ. जे.एस. सामरा ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल दो तरह के हालात बने हैं। एक तरफ, राजस्थान और गुजरात के उन इलाकों में मानसून से पहले और मानसून के दौरान बहुत अच्छी बारिश हुई है जिन्हें कम बारिश वाला क्षेत्र कहा जाता है। इससे वहां बाजरा और अन्य मोटे अनाजों की बुवाई में वृद्धि हुई। मगर अब ताजा हालात यह है कि अगस्त में बारिश की बहुत ज्यादा कमी की वजह से सूखे जैसे हालात बन गए हैं। इससे पैदावार प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है। जून-जुलाई में ज्यादा बारिश की वजह से इन इलाकों को बुवाई में जो फायदा मिला अगर सितंबर में भी हालात अगस्त जैसे ही रहे या फिर सामान्य से कम बारिश हुई तो पैदावार में वह फायदा नहीं मिलेगा। इससे राजस्थान में दलहन फसलों पर ज्यादा असर पड़ सकता है।

उन्होंने बताया कि शेष भारत के वो इलाके जहां पहले ज्यादा बारिश होती थी और बाढ़ आती थी वहां इस साल सूखे की स्थिति है, खासकर बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य भारत के क्षेत्र में। अब बारिश की संभावना बहुत ही कम है। इन इलाकों में धान सहित दलहन और तिलहन फसलों के उत्पादन पर असर पड़ेगा। दक्षिण-पश्चिम मानसून के द्वार केरल में इस साल पूरे देश के मुकाबले सबसे कम बारिश हुई है। वहां मसालों के उत्पादन पर असर पड़ेगा। कुल मिलाकर खरीफ के उत्पादन पर 15-20 फीसदी असर पड़ने की संभावना है।

धान की फसल पर सामान्य से कम बारिश का क्या असर पड़ेगा, इस बारे में डॉ. जे एस सामरा कहते हैं कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य जहां सिंचाई की बेहतर सुविधा है वहां बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा लेकिन बारिश पर निर्भर राज्यों में निश्चित तौर पर उत्पादन प्रभावित होगा। इस इलाके में इस बार सामान्य से ज्यादा बारिश की वजह से डैम और जलाशयों में पानी भी ज्यादा है इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है। मगर जिन राज्यों में बारिश कम हुई है वहां के जलाशयों में भी पानी कम है जिससे सिंचाई प्रभावित होगी।

मानसून की बारिश में कमी का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, इस सवाल के जवाब में जेएनयूके पूर्व प्रोफेसर डॉ. अरूण कुमार ने रूरल वॉयस से कहा कि कृषि उत्पादन घटने का सबसे पहला असर दामों पर पड़ेगा और महंगाई बढ़ेगी। दामों का असर खपत पर पड़ेगा और खपत का असर एक तरफ गरीबी पर और दूसरी तरफ इंडस्ट्री पर पड़ेगा। मांग कम होने से इंडस्ट्री का उत्पादन घटेगा। यह तो सामान्य स्थिति है मगर दूसरी तरफ स्थिति यह है कि 1989 से पहले जब सूखा पड़ता था तो कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में गिरावट आती थी जिसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ता था और अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घट जाती थी। लेकिन 1989-90 के बाद से सेवा क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है। कुल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 55 फीसदी और कृषि क्षेत्र की करीब 18 फीसदी है। ऐसे में कृषि क्षेत्र में गिरावट आने के बावजूद पूरी अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता है लेकिन इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की आमदनी पर असर जरूर पड़ता है। कृषि क्षेत्र से अभी भी सबसे ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं, जबकि सेवा क्षेत्र कुल रोजगार का एक चौथाई रोजगार देता है।          

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