मोटे अनाज का मोटा फायदा तभी जब उचित मूल्य और सुनिश्चित खरीद की होगी व्यवस्था

अन्य प्रचलित अनाजों जैसे गेहूं और धान की तुलना में मोटे अनाज को अधिक पोषक माना जाता है क्योंकि ये खनिज, जिंक, आयरन और कैल्शियम, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। वास्तव में मोटा अनाज पोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों का खजाना है। कुपोषण से लड़ने के लिए हमें इसे नियमित आहार का हिस्सा बनाना होगा ।

मोटे अनाज का मोटा फायदा तभी जब उचित मूल्य और सुनिश्चित खरीद की होगी व्यवस्था

अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 की घोषणा के बाद से भारत सरकार ने देश में मोटा अनाज के उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने के लिए अभियान शुरू किया है। इसके स्वास्थ्य और पोषण संबंधी फायदों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रत्येक मंत्रालय, मिशन और दूतावासों के तहत एक विस्तृत कार्य योजना तैयार की गई है। इन कार्यक्रमों में उच्च स्तर पर सार्वजनिक और राजनीतिक प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए मोटे अनाजों पर देशव्यापी प्रचार शामिल है। भारत सरकार का उद्देश्य विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से समाज के सबसे निचले तबके तक पहुंचना है जो देश के कोने-कोने में मोटे अनाजों का प्रमुख उत्पादक है।

देश में 1.7 करोड़ टन मोटे अनाज का उत्पादन करीब 13 लाख हेक्टेयर में लाखों छोटे और सीमांत किसानों द्वारा किया जा रहा है। ज्वार, रागी, जौ, कागनी और कुटकी के साथ बाजरे का मोटे अनाजों में लगभग 60 फीसदी योगदान है। सामान्यतः मोटे अनाजों का उत्पादन संसाधन रहित छोटे और सीमांत किसान करते हैं। अन्य प्रचलित अनाजों जैसे गेहूं और धान की तुलना में मोटे अनाज को अधिक पोषक माना जाता है क्योंकि ये खनिज, जिंक, आयरन और कैल्शियम, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं। वास्तव में मोटा अनाज पोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों का खजाना है। कुपोषण से लड़ने के लिए हमें इसे नियमित आहार का हिस्सा बनाना होगा ताकि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कुपोषण और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से निपटा जा सके।

मोटे अनाजों के उत्पादन में बढ़ोतरी तभी संभव है जब इनकी बाजार में मांग बढ़े और किसानों को इसे उगाने कि लिए प्रेरित किया जाए। जब तक मोटा अनाज आधारित आहार की बाजार में मांग नहीं बढ़ती तब तक केंद्र सरकार को इसके उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करने और उत्पादकों से उनकी उपज को एमएसपी पर खरीदने की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

मोटे अनाजों पर एमएसपी वैधता और सरकारी खरीद

भारत मोटे अनाज उत्पादन का वैश्विक केंद्र है। देश के विभिन्न राज्यों में 1.7 करोड़ टन मोटे अनाज का उत्पादन होता है जो एशिया के कुल उत्पादन का 80 फीसदी और दुनिया के कुल उत्पादन का 20 फीसदी है। मोटे अनाज का वैश्विक उत्पादन 8.6 करोड़ टन सालाना है। भारत अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 मना रहा है। यही सही समय है कि भारत सरकार मोटे अनाजों के प्रमुख अनाज बाजरा, ज्वार और रागी का एमएसपी वैध घोषित करे और 2023 में इन प्रमुख मोटे अनाजों के कुल उत्पादन का एक तिहाई सरकारी खरीद कर छोटे और मझोले किसानों को इसके उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करे। यह कदम न केवल व्यावहारिक बल्कि जायज भी है क्योंकि मोटे अनाजों का बाजार मूल्य हमेशा घोषित एमएसपी से काफी कम रहा है। छोटे किसान बाजार व्यवस्था से काफी परेशान हैं और गरीबी से जूझ रहे हैं। 2,250 रुपये प्रति क्विंटल की मौजूदा एमएसपी दर पर केंद्र सरकार द्वारा 50 लाख टन या कुल उत्पादन का लगभग एक तिहाई हिस्सा खरीदने पर 11,250 करोड़ रुपये खर्चा आएगा। यह फैसला एक बड़ा नीतिगत फैसला होगा जो देश की राजनीति में किसानों की अहम् भूमिका को निर्णायक दिशा देगा।

भारत सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), मिड-डे मील, आंगनबाड़ी, मनरेगा योजनाओं के तहत खरीदे गए मोटे अनाज का निस्तारण और संगठित कर सकती है। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर खरीदे गए बाजरे का उपयोग पशु आहार के रूप में भी कर सकती है। इस तरह, सरकार मोटे अनाज खरीद की लागत को वहन कर सकती है। यह एक तीर से दो शिकार यानी कुपोषण और गरीबी को दूर करने की पहल साबित हो सकती है।

मोटा अनाज आधारित खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ाना

राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2018 से सरकार मोटे अनाजों के स्वास्थ्य लाभों के बारे में उपभोक्ताओं को जानकारी दे रही है। नए-नए उत्पाद बनाने के लिए उद्यमियों को प्रोत्साहित कर रही और प्रचार-प्रसार कर मोटे अनाज की खपत को बढ़ाने के भरसक प्रयास कर रही है। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2023 को मोटे अनाजों का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित करने का निर्णय भी भारत द्वारा 2018 के राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के सफल संचालन को दिया जा सकता है। इस बीच, सरकार ने 2018 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत "मोटा अनाज पर उप मिशन" को शामिल किया, कई राज्यों ने मोटे अनाजों पर मिशन शुरू किया और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा पोषण मिशन अभियान शुरू किया गया है।

यही नहीं, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रयासों से तकरीबन 200 स्टार्टअप और 400 उद्यमी 1,220 करोड़ रुपये की लागत से विभिन्न इन्क्यूबेशन केंद्र में मोटा अनाज प्रसंस्करण और मोटा अनाज आधारित व्यवसाय के लिए प्रेरित हुए हैं। मोटे आनाज की 15 फसलों को न्यूट्री सीरियल्स की श्रेणी में रखने का निर्णय लिया गया है जिससे उपभोक्ताओं को मोटे अनाज की तरफ आकर्षित किया जा सके। किनुआ के बढ़ते चलन को देखते हुए आईसीएआर ने हिम शक्ति नामक किनुआ की एक किस्म जारी की है। साथ ही किनुआ को एक नई फसल के रूप में न्यूट्री सीरियल्स की श्रेणी में शामिल करने की सिफारिश की है। मोटे अनाज के बढ़ते प्रचलन को ध्यान में रखते हुए सरकार ने बाजरे की चार बायोफोर्टिफाइड किस्मों के साथ मोटे अनाजों की अधिक उपज देने वाली 13 किस्में जारी की हैं।

मोटे अनाजों पर आईसीएआर के भारतीय मिलेट अनुसंधान केंद्र ने 67 मूल्य वर्धित प्रौद्योगिकियां विकसित की हैं और मोटे अनाज आधारित व्यंजनों की एक किताब का विमोचन भी किया है। यह किताब रोजाना के भोजन को जायकेदार बनाने में मोटे अनाज की अहमियत को दर्शाती है। 2023 के बजट में केंद्र सरकार ने मोटे अनाज को 'श्री अन्न' का नाम देकर उपभोक्ताओं को भगवान के भोजन के प्रति आकर्षित किया है। मगर ये प्रयास तभी सफल होंगे जब मोटे अनाज का रकबा और उत्पादन बढ़ाने के लिए उचित मूल्य और सुनिश्चित खरीद की व्यवस्था की जाए।

(लेखक दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र और नाबार्ड कृषि निर्यात सुविधा केंद्र, जोधपुर के संस्थापक निदेशक हैं)

Subscribe here to get interesting stuff and updates!