जी-20: कृषि में भारत के लिए प्राथमिकताएं

निरंतर वैश्विक अनिश्चितता और खाद्य प्रणाली के लिए बढ़े खतरे को देखते हुए जी-20 की तरफ से सामूहिक प्रयास की जरूरत है। भारत इसमें विशेष योगदान कर सकता है क्योंकि इसके पास गंभीर खाद्य सुरक्षा से निकलने का अनुभव है

जी-20: कृषि में भारत के लिए प्राथमिकताएं

भारत को जी-20 की अध्यक्षता ऐसे समय मिली जब विश्व मानव इतिहास के सबसे अनिश्चित पलों से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सबसे बड़े और शक्तिशाली देशों की अध्यक्षता ग्रहण करने के साथ सरकार की प्राथमिकताएं भी बताईं। उन्होंने कहा कि भारत का एजेंडा भोजन, उर्वरक और चिकित्सा उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति का अराजनीतिकरण करके जी-20 देशों के बीच सहयोग और समन्वय को मजबूत बनाना है ताकि भू-राजनैतिक तनाव से मानवीय संकट पैदा हो।

उन्होंने कहा कि मनुष्य जिन बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें जलवायु परिवर्तन से उपजा संकट भी है, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं बल्कि साथ काम करके ही किया जा सकता है। विकासशील देशों में भूख और खाद्य असुरक्षा की समस्या पुरानी है। इनके समाधान के लिए अगर जी-20 देश कदम उठाएं तो ‘साथ काम करने’ का इससे बड़ा उदाहरण और नहीं हो सकता। इन समस्याओं के समाधान के लिए ज्यादा लचीली और टिकाऊ कृषि और खाद्य आपूर्ति प्रणाली की आवश्यकता है।

खाद्य प्रणाली के इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी-20 को उन देशों का ध्यान रखना होगा जहां की आबादी का बड़ा हिस्सा आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर करता है। खाद्य सुरक्षा हासिल करने में भारत ने महत्वपूर्ण प्रगति की है। इसका अनुभव जी-20 के लिए काफी उपयोगी हो सकता है।

वर्ष 2015 में जब सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (एसडीजी) को अपनाया गया था, तब उस पर दस्तखत करने वाले देशों में उम्मीद थी कि 2030 तक विश्व समुदाय भूखे रहने की समस्या से निजात पाने, खाद्य सुरक्षा हासिल करने और बेहतर पोषण उपलब्ध कराने में सफल होगा। इस बात पर सहमति बनी कि इन लक्ष्यों को टिकाऊ उत्पादन प्रणाली सुनिश्चित करके, खेती के तौर-तरीके में बदलाव तथा उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाकर हासिल किया जा सकता है।

इस एसडीजी के केंद्र में दूसरा लक्ष्य यह था कि कोई भूखा न रहे। लेकिन इस लक्ष्य पर अमल शुरू हुए सात साल बीतने के बाद ऐसा लग रहा है कि हम लक्ष्य के विपरीत दिशा में जा रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र की ‘सस्टेनेबल गोल्स रिपोर्ट’ 2022 में चेतावनी दी गई है कि दुनिया खाद्य संकट के कगार पर खड़ी है। भूख और खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है। यह परिदृश्य महामारी के पहले से बना हुआ है। कोविड-19 के बाद करोड़ों लोगों को भीषण खाद्य संकट का सामना करना पड़ा क्योंकि महामारी के कारण आम जनजीवन और लोगों की आजीविका अभूतपूर्व रूप से प्रभावित हुई। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2021 में 82.8 करोड़ लोगों के सामने भूखे रहने का संकट था।

यूक्रेन पर रूस के हमले ने इस पर एक और बड़ा प्रहार किया। इस युद्ध के कारण इन दोनों देशों से गेहूं का लगभग एक-तिहाई वैश्विक निर्यात बाधित हुआ। पश्चिमी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाया उसकी वजह से रूस से उर्वरकों का निर्यात प्रभावित हुआ। इससे बड़े पैमाने पर भारत समेत खेती करने वाले अनेक देशों में उर्वरकों की किल्लत हो गई।

खाद्य, ऊर्जा और फाइनेंस पर संयुक्त राष्ट्र के ‘ग्लोबल क्राइसिस रेस्पांस ग्रुप’ के अनुसार जनवरी से मार्च 2022 के दौरान एफएओ का खाद्य मूल्य सूचकांक लगभग 18% बढ़ गया। हालांकि 2022 की दूसरी छमाही में खाद्य पदार्थों के दाम कम हुए हैं, लेकिन अनाज, डेयरी उत्पाद और मांस की कीमतें अब भी इस साल की शुरुआत की तुलना में ज्यादा हैं।

वैश्विक अनिश्चितता जिस तरह लगातार बनी हुई है और खाद्य प्रणाली के लिए खतरा बढ़ा हुआ है, उसे देखते हुए जी-20 की तरफ से सामूहिक प्रयास की जरूरत है। विविध और गहरा अनुभव होने के चलते ये देश ही कुछ करने में सक्षम है। भारत इन प्रयासों में विशेष योगदान कर सकता है क्योंकि इसके पास गंभीर खाद्य सुरक्षा से निकलने का अनुभव है।

जी-20 देशों के पास एक और एडवांटेज है कि इस समूह के पास एक मजबूत खाद्य सुरक्षा और पोषण (एफएसएन) फ्रेमवर्क है। खाद्य प्रणाली अप्रोच पर आधारित यह फ्रेमवर्क 2014 में तैयार किया गया था। इस फ्रेमवर्क में प्राथमिकता वाले तीन लक्षणों की पहचान की गई है (i) खाद्य प्रणाली में जवाबदेही पूर्ण निवेश बढ़ाना (ii) खाद्य प्रणाली में आमदनी और क्वालिटी रोजगार बढ़ाना तथा (iii) खाद्य आपूर्ति बढ़ाने के लिए उत्पादकता में टिकाऊ रूप से इजाफा करना।

इन प्राथमिकता वाले लक्ष्यों के तहत कई संभावित कदमों की पहचान की गई थी। इनमें फूड वैल्यू चेन के लिए सरकारी-निजी साझेदारी के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश को बढ़ावा देना, विकासशील देशों में डेवलपमेंट फाइनेंस बढ़ाना और कृषि बाजार की विफलताओं को दूर करना, ग्रामीण और कृषि आधुनिकीकरण के संदर्भ में श्रम बाजार की प्लानिंग और कार्यक्रमों के अनुभवों को साझा करना, अनुसंधान के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना, विकासशील देशों की जरूरतों के मुताबिक विकास और इनोवेशन तथा उनका एडेप्टेशन।

इन ढांचागत और संस्थागत सुधारों के अलावा एफएसएन फ्रेमवर्क में एक खुले, पारदर्शी और सक्षम खाद्य एवं कृषि व्यापार की बात कही गई थी, जिससे विकासशील देशों को अपनी नीति बनाने का मौका मिले जो डब्ल्यूटीओ के नियमों और प्रतिबद्धताओं के मुताबिक हो। इससे सस्टेनेबल कृषि के विकास को बढ़ावा मिलेगा, देश की खाद्य आपूर्ति में विविधता आएगी और लचीलापन बढ़ेगा, खाद्य पदार्थों की कीमत कम होगी और उनकी कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव पर अंकुश लगेगा।

एफएसएन फ्रेमवर्क में जो मुद्दे प्राथमिकता के आधार पर तय किए गए थे उनमें से वैश्विक कृषि व्यापार व्यवस्था में सुधार के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि जी-20 देश सभी प्रमुख क्षेत्रों में डब्ल्यूटीओ की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने वाले रहे हैं। इनमें कृषि भी शामिल है। इसलिए एफएसएन नेटवर्क में जिस लक्ष्य को हासिल किया जाना है उसके लिए इन देशों के बीच सहमति होना जरूरी है।

कृषि पर डब्ल्यूटीओ की चर्चाओं में भारत एक प्रभावशील भागीदार रहा है। इसलिए यह खाद्य सुरक्षा और पोषण सुनिश्चित करने में उचित भूमिका निभा सकता है। भारत की अध्यक्षता का एक लाभ यह भी है कि पिछले दो अध्यक्षों के कार्यकाल के दौरान जो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, उन्हें वह आगे बढ़ा सकता है। 2021 में इटली की अध्यक्षता में जी-20 के विदेश मामलों और विकास मंत्रियों ने खाद्य सुरक्षा, पोषण और खाद्य प्रणाली पर मटेरा घोषणापत्र को सहमति दी थी। उस घोषणापत्र में एक खुले, पारदर्शी, पूर्वानुमानेय और भेदभाव रहित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के महत्व को प्रमुखता से दर्शाया गया था। वह व्यापार प्रणाली विश्व व्यापार संगठन के नियमों के मुताबिक होगी। उससे कृषि खाद्य व्यापार का प्रवाह इस तरह होगा जिससे वह खाद्य सुरक्षा और पोषण में योगदान कर सके। इसमें यह भी कहा गया कि इनपुट, वस्तुओं एवं सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने, पोषक और सस्ता भोजन उपलब्ध कराने के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार महत्वपूर्ण है।

लगभग उसी तरह बाली में जी-20 के नेताओं ने खुले, पारदर्शी, समावेशी, पूर्वानुमानेय, भेदभाव रहित और डब्ल्यूटीओ के नियम आधारित कृषि व्यापार का समर्थन किया। उन्होंने निरंतर खाद्य आपूर्ति बनाए रखने (जो कुछ हद तक स्थानीय स्रोतों पर निर्भर करेगी) तथा खाद्य पदार्थों और उर्वरकों के विविध उत्पादन को लेकर प्रतिबद्धता जताई ताकि खाद्य व्यापार सप्लाई चेन में बाधाओं से प्रभावित होने वालों की मदद की जा सके। सबसे महत्वपूर्ण बात, जी-20 के सभी नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि वे खाद्य सुरक्षा को दुष्प्रभावित करने से बचेंगे।

कृषि व्यापार और उत्पादन में पारदर्शिता और पूर्वानुमेयता सुनिश्चित करने में डब्ल्यूटीओ की एक प्रमुख भूमिका है। विभिन्न देशों की सरकारें इस सेक्टर के लिए जो पॉलिसी इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल कर रही हैं वह कृषि पर समझाते (एओए) से नियंत्रित होती है। यहां यह बताया जाना जरूरी है कि कृषि समझौते के तहत जो नियम तय किए गए हैं वह सिर्फ खुली और बिना भेदभाव वाली व्यापार प्रणाली के लिए नहीं है। समझौते में व्यापार से इतर अन्य चिंताओं पर भी जोर दिया गया है। खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका और ग्रामीण विकास को भी उचित महत्व दिया जाना चाहिए।

कृषि समझौते की प्रस्तावना में खाद्य सुरक्षा के महत्व को एक नॉन-ट्रेड चिंता के रूप में बताया गया है। दूसरी तरफ, डब्ल्यूटीओ के तीसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के अंत में जिस घोषणापत्र को अपनाया गया उसमें ग्रामीण आजीविका और ग्रामीण विकास को नॉन-ट्रेड चिंताओं के रूप में दिखाया गया है। इनका कृषि समझौते पर अमल करते समय ध्यान रखा जाना चाहिए। भारत इन नॉन-ट्रेड समस्याओं को दूर करने वाले कदम उठाने का मजबूत समर्थक रहा है।

जैसा कि ऊपर बताया गया है, बाली सम्मेलन में जी-20 नेताओं ने डब्ल्यूटीओ नियमों पर आधारित खुले, पारदर्शी, समावेशी, पूर्वानुमानेय और भेदभाव रहित कृषि व्यापार का समर्थन किया था। जी-20 नेताओं का यह घोषणा पत्र आयोजक देश इंडोनेशिया के लिए महत्वपूर्ण था। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि अनेक विकासशील देशों के साथ भारत और इंडोनेशिया भी कृषि समझौते के कई प्रावधानों में बदलाव का प्रयास कर रहे हैं, खासकर उन प्रावधानों में जो कुछ विकसित देशों में दी जा रही सब्सिडी से जुड़े हैं, ताकि कृषि उत्पादों के बाजार में समानता हो सके।

इस संदर्भ में इस तथ्य को स्वीकार करना आवश्यक है कि एक लचीली और सस्टेनेबल कृषि प्रणाली के विकास के लिए कृषि सब्सिडी का उद्देश्य नए सिरे से निर्धारित करना पड़ेगा। बाली में जी-20 नेताओं ने जो लक्ष्य तय किया है उसे हासिल करने के लिए जरूरी सब्सिडी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अभी खाद्य फसलों की विशाल सरप्लस मात्रा उपजाने के लिए जो सब्सिडी दी जाती है उसकी जगह इन कार्यों के लिए सब्सिडी दी जानी चाहिए, क्योंकि इन फसलों को आगे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचा जाता है। इस तरह के सरप्लस ने न सिर्फ गरीब देशों में स्थानीय खाद्य प्रणाली को नुकसान पहुंचाया है बल्कि उन देशों में कृषि पर निर्भर आजीविका को भी प्रभावित किया है। भारत की अध्यक्षता में जी-20 से उम्मीद की जाती है कि यह समूह इस क्षेत्र में एक टिकाऊ समाधान उपलब्ध कराएगा।

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में प्रोफेसर हैं)

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