गेहूं की कीमत और खरीद के आंकड़ों से इसके उत्पादन के सरकारी अनुमान पर सवाल

गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए किए गए उपाय अहम जान पड़ते हैं, क्योंकि सरकार ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि उत्पादन में कमी से गेहूं की किल्लत हो सकती है। सरकार ने तो फरवरी में जारी खाद्यान्न उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान में 1121.8 लाख टन रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन की बात कही थी।

गेहूं की कीमत और खरीद के आंकड़ों से इसके उत्पादन के सरकारी अनुमान पर सवाल

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 12 जून को गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगा दी। ऐसा 15 वर्षों में पहली बार हुआ। मंत्रालय ने अपनी अधिसूचना में स्टॉक लिमिट की घोषणा करते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तथा जमाखोरी और सट्टेबाजी रोकने के लिए यह निर्णय लिया गया है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में व्यापारियों, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़े चेन रिटेलर तथा प्रोसेसर के लिए यह स्टॉक लिमिट लागू की गई है, जो 31 मार्च 2024 तक जारी रहेगी। अधिसूचना के अनुसार व्यापारी/थोक विक्रेता के लिए 3000 मीट्रिक टन गेहूं रखने की सीमा है। रिटेलर के लिए हर रिटेल आउटलेट में 10 टन की सीमा निर्धारित की गई है। इसी तरह, बड़े चेन रिटेलर्स को हर आउटलेट में 10 टन और डिपो में तीन हजार टन गेहूं रखने की अनुमति दी गई है। प्रोसेसर अपनी सालाना क्षमता के 75% तक अथवा 2023-24 के बाकी बचे महीनों के लिए मासिक स्थापित क्षमता के बराबर (दोनों में से जो भी कम हो) गेहूं रख सकते हैं।
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के व्हीट स्टॉक मॉनिटरिंग सिस्टम के पास इन सबको हर सप्ताह अपने स्टॉक की स्थिति बतानी है। अगर उनके पास अधिसूचना जारी होने के समय निर्धारित सीमा से अधिक मात्रा में गेहूं था तो उन्हें 30 दिनों के भीतर उसे कम करना पड़ेगा।
गेहूं की सप्लाई सुधारने के लिए केंद्र सरकार ने सेंट्रल पूल से 15 लाख टन गेहूं जारी करने का भी निर्णय लिया है। खुले बाजार की बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत यह गेहूं आटा मिलों, निजी ट्रेडर, थोक खरीदारों तथा गेहूं के उत्पाद बनाने वालों को बेचा जाएगा। यह बिक्री ई-नीलामी के जरिए की जाएगी। सरकार ने 23 जून को भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को ई-नीलामी के माध्यम से गेहूं और चावल बेचने का निर्देश दिया। इस निर्देश के अनुसार निगम को 5 जुलाई से इनकी बिक्री करनी थी। बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत इन दोनों कमोडिटी की कीमतों को नियंत्रित करने के मकसद से यह निर्णय लिया गया। इस ई-नीलामी में कोई भी खरीदार अधिकतम 100 टन खरीद के लिए बोली लगा सकता है। उचित औसत क्वालिटी वाले गेहूं के लिए कम से कम 2150 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत रखी गई है। यह कीमत घोषणा वाले सप्ताह के दौरान औसत थोक मूल्य की तुलना में छठवां हिस्सा कम है।
गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए किए गए उपाय अहम जान पड़ते हैं, क्योंकि सरकार ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि उत्पादन में कमी से गेहूं की किल्लत हो सकती है। सरकार ने तो फरवरी में जारी खाद्यान्न उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान में 1121.8 लाख टन रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन की बात कही थी। मई के अंत में जारी तीसरे अग्रिम अनुमान में इसे संशोधित कर 1127.4 लाख टन कर दिया था। इन अनुमानों के आधार पर माना जा रहा था कि 2022-23 में गेहूं उत्पादन में वृद्धि बीते 5 वर्षों के दौरान (2017-18 के बाद) सबसे अधिक होगी। 2021-22 में उत्पादन में गिरावट को देखते हुए यह अच्छी खबर थी। 
महीने के अंत में रबी मार्केटिंग सीजन शुरू हुआ तो गेहूं की सप्लाई को लेकर स्थिति अच्छी लग रही थी। सरकार का अनुमान था कि इस बार 342 लाख टन गेहूं की खरीद होगी। सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 के दौरान 187.9 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। 9 मई तक सरकारी खरीद सुचारू रूप से चल रही थी। उस समय तक 252 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी जो पिछले साल की तुलना 75 लाख टन अधिक थी।
गेहूं की बाजार परिस्थितियों को लेकर पहली बार मई के मध्य में चिंता उभरने लगी। एफसीआई के आंकड़े बताते हैं कि उसके बाद से गेहूं की खरीद बहुत मामूली रह गई। मई के अंत तक केंद्र और राज्य की एजेंसियों की कुल खरीद 262 लाख टन तक ही पहुंच सकी। महत्वपूर्ण बात यह है कि जून में खत्म होने वाला खरीद का सीजन मई तक भी नहीं चल सका। खरीद सीजन खत्म हुआ तो वास्तविक खरीद सरकार के 342 लाख टन के लक्ष्य की तुलना में लगभग 25% काम थी।
इस तरह मौजूदा रबी मार्केटिंग सीजन में गेहूं की खरीद का स्तर 2016-17 के बाद दूसरा सबसे कम था। उस वर्ष 230 लाख टन गेहूं की खरीब दुई थी। पिछले साल गेहूं उत्पादन में गिरावट से पहले 5 वर्षों के दौरान सालाना औसत खरीद 366 लाख टन थी। यह इस साल की तुलना में काफी ज्यादा है। यही नहीं, रबी मार्केटिंग सीजन 2021-22 में 433.4 लाख टन की खरीद हुई थी। वह भी तब जब उत्पादन सरकार के इस साल के अनुमान से भी कम था। उत्पादन के अनुमानों और वास्तविक खरीद के बीच तारतम्य न होने पर सरकार की तरफ से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन ऐसे अनेक संकेत हैं जो इसकी वजह बताते हैं।
सरकार इस साल गेहूं उत्पादन को लेकर काफी उत्साहित थी, लेकिन मौसम ने विलेन का काम किया। मार्च और अप्रैल में गेहूं उत्पादन वाले प्रमुख इलाकों में बेमौसम बारिश से उत्पादन प्रभावित हुआ। इसके असर को देखते हुए केंद्र सरकार ने गेहूं खरीद के लिए गुणवत्ता मानकों में ढील देने का फैसला किया, खासकर बारिश के कारण गेहूं की चमक खोने के चलते। पिछले साल अपेक्षाकृत कम गुणवत्ता वाला गेहूं एफसीआई के गोदामों में पहुंचा था, जबकि निजी ट्रेडर और मिलिंग इंडस्ट्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक कीमत देकर अच्छी क्वालिटी का गेहूं खरीदा था। इंडस्ट्री ने सीधे बाजार से गेहूं खरीदने का जो फैसला किया वह खुली बाजार बिक्री योजना के तहत गेहूं सप्लाई करने की सरकार की क्षमता को लेकर उनके नकारात्मक एसेसमेंट को दर्शाता है। इस सेंटीमेंट का एक प्रमुख कारण यह हो सकता है कि सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक बहुत कम रह गया। अप्रैल में यह सिर्फ 83.5 लाख टन था जो 2008 के बाद सबसे कम है। उसी वर्ष गेहूं पर पहली बार स्टॉक लिमिट लगाई गई थी। जून में सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक 314 लाख टन पहुंच गया जो जून 2022 के 311 लाख टन की तुलना में थोड़ा अधिक है। पिछले साल का स्टॉक भी 2008 के बाद सबसे कम था।
मौजूदा खरीद सीजन में निजी ट्रेडर्स और मिलिंग इंडस्ट्री के अत्यधिक सक्रिय रहने के पीछे उनका यह आकलन हो सकता है कि 2022-23 में गेहूं का उत्पादन 2021-22 से भी कम रहेगा। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन के अनुसार गेहूं का उत्पादन सरकार के तीसरे अग्रिम अनुमान 1127.4 लाख टन से कम से कम 10 प्रतिशत नीचे रहेगा। गेहूं की कीमतों और खरीद का ट्रेंड बताता है कि इसके उत्पादन को लेकर इंडस्ट्री का आकलन ज्यादा सटीक है।
गेहूं की मौजूदा बाजार परिस्थितियां संकेत देती हैं कि आने वाले महीनों में इसकी सप्लाई कम हो सकती है। इसलिए महंगाई के रिजर्व बैंक की निर्धारित सीमा से नीचे आने से पहले ही अनाजों के दाम बढ़ सकते हैं। गेहूं की कीमतों में तेजी तो है ही, धान उत्पादन को लेकर भी संशय बना हुआ है। खासकर बीते हफ्तों के दौरान मानसून की स्थिति को देखते हुए। किसी भी तरह की सट्टेबाजी को रोकने के लिए सरकार ने तत्काल स्टॉक लिमिट लगाने का निर्णय लिया है। इसे उचित समय पर आवश्यक वस्तु अधिनियम लागू करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

(डॉ. बिस्वजीत धर जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के वाइस प्रेसिडेंट हैं। लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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