संसद के दोनों सदनों में द फार्म लॉज रिपील बिल पास, तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की संसदीय प्रकिया पूरी

देश के बड़े हिस्से में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए साल भर से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन के चलते इन तीनों कानूनों को रद्द करने के लिए संसद में पेश द फार्म लॉज रिपील बिल, 2021 को संसद के दोनों सदनों, लोक सभा और राज्य सभा ने पारित कर दिया है। यह विधेयक संसद के शीत कालीन सत्र के पहले दिन 29 नवंबर को ही सदन में पेश किया गया और कुछ मिनटों में ही दोनों सदनों ने इसे मंजूरी दे दी

संसद के दोनों सदनों में द फार्म लॉज रिपील बिल पास, तीनों कृषि कानूनों  को निरस्त करने की संसदीय प्रकिया पूरी

देश के बड़े हिस्से में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए साल भर से अधिक समय से किसान संगठनों द्वारा चलाये जा रहे आंदोलन के चलते इन तीनों कानूनों को रद्द करने के लिए संसद में पेश  द फार्म लॉज रिपील बिल, 2021 पर संसद के दोनों सदनों लोक सभा और राज्य सभा ने पारित कर दिया है। यह विधेयक संसद के शीत कालीन सत्र के पहले दिन 29 नवंबर को ही सदन में पेश किया गया और कुछ मिनटों में ही दोनों सदनों ने इसे मंजूरी दे दी। इस विधेयक को कंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने संसद में पेश किया। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को गुरू पर्व के मौके पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए इन कानूनों को रद्द करने की घोषणा की थी। उसके बाद 24 नवंबर को कैबिनेट ने इससे संबंधित विधेयक मंजूरी दे दी थी। आज संसद के शीतकालीन सत्र का पहला दिन है और उसमें सरकार ने द फार्म लॉज रिपील विधेयक, 2021 पेश किया, जिसे भारी हंगामे के बीच पारित कर दिया गया। लोक सभा में यह विधेयक मात्र चार मिनट में ही पारित कर दिया गया। इसी तरह राज्य सभा में भी इस विधेयक को चंद मिनटों में ही पारित कर दिया गया। 

पांच जून, 2020 को अध्यादेशों के जरिये सरकार तीन नये कृषि कानून लेकर आई थी। द फार्मर्स प्रॉडयूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) एक्ट, 2020, फार्मर्स (इंपावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्यूरेंस एंड फार्म सर्विसेज एक्ट, 2020 और आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) कानून, 2020 के नाम से यह कानून लाये गये थे। इनमें पहले दो कानून नये थे और तीसरे कानून में कई बड़े बदलाव कर इसे अधिक उदार बनाया गया था। 

देश के इतिहास में यह पहला मौका है जब सरकार को कृषि से जुड़े कानूनों को लागू करने के बाद इस तरह से निरस्त करना पड़ा है। जून में आये अध्यादेश के बाद इन कानूनों को सितंबर, 2020 में सरकार द्वारा के दोनों सदनों में पारित करा लिया गया था। उस समय यह कानून काफी हंगामें के बीच पारित किये गये थे। राज्य सभा में इन कानूनों से जुड़े विधेयकों को पारित करने में सरकार को काफी मुश्किल हुई थी। उस समय राज्य सभा के उपसभापति पर संसदीय प्रक्रिया का पालन नहीं करने के आरोप भी विपक्ष ने लगाये थे।

सरकार द्वारा लाये गये इन तीन कानूनों के कुछ माह बाद से देश भर में किसान आंदोलन कर रहे हैं। किसान संगठनों ने इन कानूनों को रद्द करने और एमएसपी को कानूनी गारंटी देने की मांग को प्रमुख मुद्दा बना रखा है। 27 नवंबर, 2020 से किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। किसानों संगठनों के मोर्चे संयुक्त किसान मोर्चा के साथ सरकार की 11 दौर की वार्ता हुई लेकिन किसान इन कानूनों को रद्द करने से कम पर कुछ भी मानने को तैयार नहीं थे जबकि सरकार इनमें संशोधन के सुझाव मांग रही थी। जिसके चलते 22 जनवरी, 2021 को वार्ता टूटने के बाद सरकार और किसानों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई। लेकिन प्रधानमंत्री की घोषणा और उसके बाद आज में इन कानूनों को निरस्त करने की विधायी प्रकिया पूरी हो गई है। 

कानूनों को रद्द करने की महत्वपूर्ण मांग माने जाने के बाद भी किसान आंदोलनरत हैं। उन्होंने 29 मार्च संसद के लिए ट्रैक्टर मार्च स्थगित कर दिया था और अब 4 दिसंबर की बैठक में किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा में आगे की रणनीति पर फैसला लिया जाएगा। किसानों का कहना है कि वह एमएसपी को कानूनी गारंटी और दूसरी पांच मांगों पर सरकार के साथ वार्ता करना चाहते हैं। इसलिए अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार किसानों को बातचीत के लिए बुलाती है या नहीं है। पांच राज्यों की विधान सभाओं के लिए अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड प्रमुख हैं। इसलिए केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार नहीं चाहती कि किसानों के आंदोलन के चलते उसे कोई बड़ा राजनीतिक नुकसान हो।  

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