कश्मीर से उत्तराखंड तक बर्फबारी को तरसे पहाड़, किसानों को उठाना पड़ेगा नुकसान  

उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में जहां कड़ाके की ठंड पड़ रही है, वहीं जम्मू-कश्मीर से लेकर हिमाचल और उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके बर्फबारी से तरस रहे हैं। बर्फबारी के लिए मशहूर गुलमर्ग और पहलगाम जैसी जगहों से पर्यटक निराश होकर लौट रहे हैं जबकि मौसम का यह बिगड़ा मिजाज किसानों के लिए भी परेशानी पैदा करेगा। इस साल जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और लद्दाख में बर्फबारी में भारी कमी आई है।

कश्मीर से उत्तराखंड तक बर्फबारी को तरसे पहाड़, किसानों को उठाना पड़ेगा नुकसान  
गुलमर्ग में 2023 और 2024 की जनवरी में बर्फबारी का अंतर। फोटो: twitter.com/shubhamtorres09

उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में जहां कड़ाके की ठंड पड़ रही है, वहीं जम्मू-कश्मीर से लेकर हिमाचल और उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके बर्फबारी से तरस रहे हैं। बर्फबारी के लिए मशहूर गुलमर्ग और पहलगाम जैसी जगहों से पर्यटक निराश होकर लौट रहे हैं जबकि मौसम का यह बिगड़ा मिजाज पर्वतीय किसानों के लिए भी परेशानी पैदा करेगा। इस साल जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और लद्दाख में बर्फबारी में भारी कमी आई है। 

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने बर्फबारी की कमी पर चिंता व्यक्त जताते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि उन्होंने गुलमर्ग को सर्दियों में इतना सूखा कभी नहीं देखा। अगर जल्द ही बर्फ नहीं पड़ी तो गर्मियां बहुत भीषण होंगी। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने 6 जनवरी 2022 और 2023 को गुलमर्ग में भरपूर बर्फ के साथ ली गई अपनी दो तस्वीरें भी पोस्ट कीं। सोशल मीडिया पर लोग गत वर्षों की बर्फबारी और इस साल सूखे पहाड़ों की तस्वीरें शेयर कर रहे हैं। पूरे दिसंबर में कश्मीर घाटी में 79% वर्षा की कमी हुई और बर्फबारी लगभग नगण्य रही। मौसम विभाग के मुताबिक 12 जनवरी तक शुष्क मौसम की स्थिति बनी रहेगी।

हिमाचल के सेब उत्पादक किसान हरीश चौहान ने रूरल वॉयस को बताया कि इस साल ऊंचे इलाकों में भी बर्फबारी ना होने से बागवानी उपज बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। सेब की अच्छी फसल के लिए बर्फबारी बहुत जरूरी है। कम बर्फबारी और बारिश से बागवानी फसलों पर सूखे की मार पड़ने की आशंका है। नदियों और जल स्रोतों में पानी की उपलब्धता के लिए भी बर्फबारी बहुत जरूरी है। सर्दियों में कम बर्फ पड़ने से गर्मियों में सिंचाई का संकट पैदा हो सकता है।  

हिमाचल प्रदेश में लाहौल, स्पीति और किन्नौर जैसे इलाके सर्दियों के दौरान बर्फ से ढके रहते थे लेकिन इस साल बर्फबारी को तरस गए हैं। बरसात में बाढ़ की आपदा झेलने के बाद अब हिमाचल प्रदेश में सूखे के हालत हैं। इसी तरफ उत्तराखंड में केदारनाथ, नंदा देवी और ओली में पिछले एक महीने में बर्फबारी नहीं हुई है। यहां तक कि बर्फ से लदे रहने वाले हेमकुंड साहिब में भी अपेक्षाकृत कम बर्फ पड़ी है। हिमाचल प्रदेश में बारिश और बर्फबारी की कमी के चलते कुल्लू मनाली घाटी में जंगल की आग की घटनाएं भी बढ़ी हैं। जनवरी में कश्मीर और हिमाचल के जंगलों में आग अकल्पनीय घटनाएं हैं।

उत्तराखंड के देहरादून स्थिति मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह का कहना है कि इस साल सर्दियों के मौसम में राज्य में काफी कम बारिश और बर्फबारी हुई है। मानसून सीजन के बाद से ही पश्चिमी विक्षोभ कमजोर रहा है। हिमालयी क्षेत्रों में वर्षा वाले बादल विकसित नहीं हो सके। मौसम सामान्य से अधिक शुष्क बना हुआ है। 

उत्तराखंड में भी दिसंबर शुरू होते ही उच्च हिमालयी क्षेत्र बर्फ की चादर ओढ़ लेते थे। लेकिन इस साल बर्फबारी के लिए मशहूर औली, धनोल्टी, चोपता, दयारा बुग्याल, काणाताल मुक्तेश्वर और मुनस्यारी जैसी जगहों पर भी लगभग ना के बराबर बर्फबारी हुई है। मौसम के इस बदले मिजाज को जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जा रहा है। इसका असर पर्यटन के साथ-साथ पवर्तीय कृषि और बागवनी पर भी पड़ेगा। 

 

 

 

 

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