न लहर, न शोर, वोटर की चुप्पी अप्रत्याशित नतीजों का संकेत

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब दर्जन भर सीटों पर प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल के साथ भाजपा का गठबंधन किसके लिए फायदेमंद रहेगा और कितना चलेगा, यह भी इन चुनाव नतीजों से तय हो जाएगा। इस बार चुनाव में कोई लहर नहीं है। साथ ही सांप्रदायिक मुद्दों का भी कोई खास असर नहीं दिख रहा है। मतदाता की खामोशी चौंकाने वाले नतीजों का सबब बन सकती है।

न लहर, न शोर, वोटर की चुप्पी अप्रत्याशित नतीजों का संकेत

शामली, कैराना, गंगोह, मुजफ्फरनगर से 

लोक सभा के चुनावों के पहले चरण का प्रचार समाप्त हो गया है। उत्तर भारत में 2014 के लोक सभा चुनावों में भाजपा की लहर बनाने वाले मुजफ्फरनगर और आसपास की सीटों पर इस बार नतीजे चौंका सकते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब दर्जन भर सीटों पर प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल के साथ भाजपा का गठबंधन किसके लिए फायदेमंद रहेगा और कितना चलेगा, यह भी इन चुनाव नतीजों से तय हो जाएगा। इस बार चुनाव में कोई लहर नहीं है। साथ ही सांप्रदायिक मुद्दों का भी कोई खास असर नहीं दिख रहा है। मतदाता की खामोशी चौंकाने वाले नतीजों का सबब बन सकती है।

पहले चरण में उत्तर प्रदेश में 19 अप्रैल को कैराना, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत में मतदान है। इनमें रामपुर और पीलीभीत को छोड़ दें तो बाकी सीटें राष्ट्रीय लोक दल के प्रभाव वाली सीटें हैं। भाजपा को उम्मीद है कि उसे यहां लोक दल के साथ गठबंधन का फायदा मिलेगा। बिजनौर सीट लोक दल के हिस्से में आई दो सीटों में से है जहां पहले चरण में मतदान है। लोक दल से गठबंधन के बाद भाजपा के लिए आसान मानी जा रही पश्चिमी यूपी की सीटों में चुनाव नजदीक आते-आते मुकाबला दिलचस्प हो गया है। कहीं एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है तो कहीं-कहीं त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बन चुकी है।

भाजपा और लोक दल के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी कैराना और मुजफ्फरनगर सीट पर रोचक मुकाबला है। कैराना सीट शामली और सहारनपुर दो जिलों में है। इसमें शामली की तीन विधान सभी सीटें शामली, कैराना, थानाभवन और सहारनपुर की गंगोह व नकुड़ विधान सभा सीट हैं। यहां मौजूदा सांसद प्रदीप चौधरी को भाजपा ने दोबारा टिकट दिया है वहीं सपा ने यहां से इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया, जिनकी मां तबस्सुम हसन और पिता मुनव्वर हसन इस सीट के सांसद रह चुके हैं। तेजतर्रार और लंदन से पढ़कर आई उच्च शिक्षित इकरा ने अपने चुनाव को काफी मजबूत किया है। खास बात यह है कि केवल सपा का मुस्लिम मतदाता ही नहीं बल्कि लोक दल का परंपरागत मतदाता का एक हिस्सा भी प्रदीप चौधरी से नाराजगी के कारण इकरा की ओर जा सकता है।

2022 के विधान सभा चुनाव में शामली की तीनों सीटें भाजपा हार गई थी। किसान आंदोलन के चलते भाजपा के प्रति बना माहौल और मुस्लिम-जाट गठजोड़ इन नतीजों की वजह बना था। लेकिन अब लोक दल का भाजपा के साथ गठबंधन है। राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भाजपा उम्मीदवार प्रदीप चौधरी के समर्थन में जाट बहुल नगर पंचायत ऊन में रैली भी की थी। इसके बावजूद प्रदीप चौधरी के मौजूदा कार्यकाल में कामकाज और रवैये को लेकर लोक दल समर्थकों का एक वर्ग उनके खिलाफ जा रहा है। वहीं इकरा ने महिलाओं के बीच जगह बनाने का प्रयास कर रही हैं। युवा व उच्च शिक्षित होने का उसे फायदा मिल रहा है। हालांकि उनके भाई और कैराना से विधायक नाहिद हसन की निगेटिव छवि उसे नुकसान पहुंचा सकती है। विधान सभा चुनाव में इकरा ने ही नाहिद का पूरा कैंपेन संभाला था। इसलिए वह मतदाताओं के बीच पहले से ही जाना पहचाना चेहरा हैं।

कैराना लोक सभा की सहारनपुर जिले में आने वाली दोनों विधान सभा सीटें भाजपा के पास हैं। इनमें नकुड़ सीट करीब 500 वोटों के मार्जिन से ही भाजपा ने जीती थी। गुर्जर समाज से आने वाले प्रदीप चौधरी सहारनपुर जिले से ताल्लुक रखते हैं। इस सीट पर सहारनपुर जिले में भी जाट मतदाताओं का रुझान प्रदीप चौधरी के खिलाफ दिख रहा है। बसपा ने कैराना से किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाने की बजाय श्रीपाल राणा को मैदान में उतारा है। मायावती के इस दांव ने भी भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कैराना लोक सभा में पड़ने वाले नानौता में ही 7 अप्रैल को भाजपा के खिलाफ क्षत्रिय महापंचायत हुई थी। वहीं से भाजपा को लेकर ठाकुरों की नाराजगी की बात सामने आई। परंपरागत रूप से मुनव्वर हसन के परिवार को गुर्जर समाज के एक वर्ग का समर्थन भी मिलता रहा है। यह फैक्टर भी इकरा के पक्ष में काम कर सकता है।

मुजफ्फरनगर लोक सभा सीट केंद्र सरकार में राज्य मंत्री डॉ. संजीव बालियान की वजह से हाई प्रोफाइल सीट बन गई है। यहां से 2014 और 2019 में वह चुनाव जीत चुके हैं। 2019 में उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल के नेता स्वर्गीय चौधरी अजित सिंह को करीबी मार्जिन से हराया था। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि यहां इस बार चौधरी अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी संजीव बालियान के लिए प्रचार कर रहे हैं। दूसरी ओर सपा के उम्मीदवार हरेंद्र मलिक हैं जो पहले कई बार विधायक और एक बार राज्य सभा सांसद रह चुके हैं। मुजफ्फरनगर लोक सभा की पांच विधान सभा में केवल एक सीट भाजपा के पास है। बाकी दो विधान सभा चरथावल व सरधना सपा के पास है जबकि दो सीटें बुढ़ाना व खतौली राष्ट्रीय लोक दल के पास है। भाजपा और रालोद का गठबंधन होने से संजीव बालियान को जाट मतों का कुछ फायदा हो सकता है। हालांकि हरेंद्र मलिक भी जाट हैं। मलिक ने मुकाबले को टक्कर का बना दिया है। संजीव बालियान दस साल से सांसद और मोदी की दोनों सरकारों में मंत्री रहे हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में काफी काम किया है। लेकिन पश्चिमी यूपी के दो कद्दावर ठाकुर नेता संगीत सोम और सुरेश राणा से उनके रिश्ते बेहतर नहीं माने जाते हैं। दोनों पिछला विधान सभा चुनाव में हार गये थे। संजीव बालियान को लेकर संगीत सोम की तल्खी पिछले दिनों वायरल हुए एक वीडियो में साफ दिखाई दी।  

कैराना और मुजफ्फरनगर दोनों सीटों पर ठाकुरों ने रैली कर भाजपा के खिलाफ वोट करने का आह्वान किया है। यही वजह है उनकी नाराजगी कम करने के लिए मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने संजीव बालियान के पक्ष में सभाएं की। कैराना की तरह मुजफ्फरनगर में भी बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार की बजाय दारा सिंह प्रजापति को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा की समर्थक मानी जाने वाली प्रजापति जाति के उम्मीदवार के चलते संजीव बालियान को कुछ नुकसान हो सकता है। जबकि हरेंद्र मलिक की दावेदारी सपा के कोर वोटरों के अलावा ठाकुर और जाट मतदाताओं के समर्थन पर निर्भर है।   

बिजनौर लोकसभा सीट पर रालोद के उम्मीदवार चंदन चौहान की स्थिति बेहतर मानी जा रही है। सपा ने विधायक रामअवतार सैनी के बेटे दीपक सैनी को टिकट दिया है जबकि बसपा ने जाट उम्मीदवार बिजेंद्र चौधरी को प्रत्याशी बनाया है। नगीना में दलित नेता चंद्रशेखर रावण चुनाव मैदान में है। पहले उन्हें सपा से यह सीट मिलने की उम्मीद थी लेकिन सपा ने वहां अपना उम्मीदवार उतारा है और बसपा का भी वहां उम्मीदवार है। इस सुरक्षित सीट पर दलित-मुसलमान गठबंधन कामयाब होता रहा है। लेकिन इस बार बहुकोणीय मुकाबले के आसार बन गये हैं। दलित-मुसलमान मतदाताओं का किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में लामबंद न होना नगीना में भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है।

सहारनपुर सीट कांग्रेस के हिस्से में आई है जहां से उसने पुराने उम्मीदवार इमरान मसूद को टिकट दिया है। अपने बयानों से विवाद पैदा करने वाले इमरान मसूद के साथ मुस्लिम मतदाताओं का एक वर्ग हमेशा रहा है। यह सीट 2019 में बसपा के फजलुर्रहमान ने जीती थी। लेकिन इस बार बसपा ने वहां उम्मीदवार बदलकर माजिद अली को टिकट दिया है। जबकि भाजपा ने 2014 में सहारनपुर से सांसद रहे राघव लखनपाल को मैदान में उतारा है। राघव 2019 के चुनाव में 4.91 लाख वोट लेकर बेहद करीब मुकाबले में परास्त हुए थे। इस बार सहारनपुर में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बन गये हैं।

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