सरकार ने कहा कि नैनो यूरिया की मंजूरी में सभी स्थापित नियमों और प्रक्रियाओं का पालन हुआ

केंद्र सरकार ने कहा है कि नैनो यूरिया को मंजूरी देने के लिए फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (एफसीओ), 1985 के तहत सभी मौजूदा नियमों और प्रक्रियाओं का पूरी तरह से पालन किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों द्वारा दिये गये फीडबैक और बेहतर नतीजों के आधार पर नैनो यूरिया को एफसीओ के तहत अधिसूचित किया गया है

सरकार ने कहा कि नैनो यूरिया की मंजूरी  में सभी स्थापित नियमों और प्रक्रियाओं का पालन हुआ

केंद्र सरकार ने कहा है कि नैनो यूरिया को मंजूरी देने के लिए फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (एफसीओ), 1985 के तहत सभी मौजूदा नियमों और प्रक्रियाओं का पूरा पालन किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों द्वारा दिये गये फीडबैक और बेहतर नतीजों के आधार पर ही नैनो यूरिया को एफसीओ के तहत अधिसूचित किया गया है। केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा रविवार शाम को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में यह बातें कही गई हैं। 

अधूरे ट्रायल के आधार पर मंजूरी देने के लिए फास्ट ट्रैक करने से संबंधित खबर को भ्रामक और अधूरे तथ्यों पर आधारित बताते हुए सरकार ने कहा है कि इस तरह की खबर नैनो यूरिया के बारे में उपलब्ध तथ्यों और आंकड़ों की अधूरी तसवीर पेश करती है। सरकार द्वारा जारी एक विस्तृत विज्ञप्ति में नैनो यूरिया के फसलों पर ट्रायल और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा विभिन्न फसलों पर किये गये नैनो यूरिया के परीक्षणों के नतीजों की विस्तृत जानकारी दी गई है।  

देश की सबसे बड़ी उर्वरक उत्पादक और मार्केटिंग करने वाली सहकारी संस्था इफको ने जून, 2021 में तरल नैनो यूरिया को बाजार में उतारा था। इफको द्वारा नैनो यूरिया के उत्पादन के लिए संंयंत्र स्थापित किया है। देश भर में इसकी बिक्री को देखते हुए इफको नैनो यूरिया की नई उत्पादन क्षमता स्थापित कर रही है। नैनो यूरिया का इस्तेमाल पारंपरिक यूरिया के विकल्प के रूप में किया जा रहा है।

उर्वरक मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि नैनो यूरिया को मंजूरी के लिए  न्यूज रिपोर्ट में फास्ट ट्रैक प्रक्रिया की बात गलत संदर्भ में कही गई है। इसकी मंजूरी के लिए फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (एफसीओ), 1985 के तहत सभी मौजूदा प्रक्रिया का पूरा पालन किया गया है। एफसीओ, 1985 के तहत उर्वरक को मंजूरी देने के पहले दो फसल सीजन के डाटा की जरूरत होती है। इसका पालन नैनो यूरिया की मंजूरी में किया गया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों द्वारा दिये गये फीडबैक से मिले बेहतर नतीजों के आधार पर नैनो यूरिया को पहले प्रोविजनल आधार पर एफसीओ के तहत अधिसूचित किया गया था। सेंट्रल फर्टिलाइजर कमेटी (सीएफसी) और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने तथ्यों और जरूरी तथ्यों पर गौर करने के बाद इसकी सिफारिश की थी। वहीं डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) को भी इसे बॉयो सेफ्टी और सुरक्षा मानकों के लिए भेजा गया था। इसकी प्रभावशीलता, बॉयोसेफ्टी और बॉयोटोक्सीसिटी को लेकर संतुष्ट होने बाद ही नैनो यूरिया को एफसीओ के तहत एक अलग श्रेणी नैनो फर्टिलाइजर के तहत लाया गया।

यह तथ्य भी गलत है कि केवल दो सीजन का डाटा उपलब्ध है। चार सीजन से इस पर रिसर्च और फील्ड ट्रायल जारी रहे हैं। नैनो यूरिया का मूल्यांकन और ट्रायल का जिम्मा आईसीएआर के प्रीमियम रिसर्च इंस्टीट्यूट और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों ने उठाया है। फसल उत्पादकता, उर्वरक के उपयोग होने वाली मात्रा और इसके उपयोग से किसानों को होने वाले फायदे समेत तमाम पहलुओं को ट्रायल के समय ध्यान में रखा गया है।  इस विज्ञप्ति के साथ ट्रायल वाली फसलों की सूची और शोध संस्थानों व उन विश्वविद्यालयों की सूची भी दी गई है जहां नैनो यूरिया के ट्रायल हुए। 

विभिन्न स्थानों और एग्रो क्लाइमेटिक जोन में तरल नैनो यूरिया (नैनो एन) के फसलों के विकास चक्र में धान, गेहूं, मक्का, टमाटर, खीरा और कैप्सीकम पर फोलियर एप्लीकेशन के नतीजों की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे गेहूं में उत्पादकता 3 से 23 फीसदी, टमाटर में पांच से 11 फीसदी, धान में दो से 15 फीसदी, मक्का में पांच फीसदी और खीरे व कैप्सीकम में 18 फीसदी की वृद्धि हुई।

सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि विज्ञान और वैज्ञानिक प्रयास एक सतत प्रकिया है और कांसेप्ट के अमल में आने तक यह जारी रहती है। सघन कृषि प्रणाली के दौर में मिट्टी, हवा और जल को होने वाले नुकसान को देखते हुए नैनो यूरिया एक नया उत्पाद है जो हमें तमाम चुनौतियों का सामना करने का मौका दे रहा है। इसलिए रासानियक उर्वरकों की घटती न्यूट्रिएंट यूज एफीसिएंशी (एनयूई) के समय में नैनो यूरिया जैसा विकल्प किसानों को उपलब्ध कराना समय की जरूरत है। 

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