सरसों के रिकॉर्ड पैदावार अनुमान के बावजूद खाद्य तेलों का रिकॉर्ड आयात, वैश्विक कीमतें घटने से बढ़ी आवक

जनवरी में खाद्य तेलों का आयात 33 फीसदी उछल कर 16.61 लाख टन के नए रिकॉर्ड पर पहुंच गया है। यह सितंबर 2021 के बाद सबसे ज्यादा है। जनवरी 2022 की तुलना में जनवरी 2023 में आयात में 31 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस महीने सूरजमुखी तेल के आयात में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटने और ड्यूटी बढ़ने की आशंका से आयात में इतनी बड़ा उछाल आया है

सरसों के रिकॉर्ड पैदावार अनुमान के बावजूद खाद्य तेलों का रिकॉर्ड आयात, वैश्विक कीमतें घटने से बढ़ी आवक

सरसों एवं अन्य तिलहन फसलों के बुवाई रकबे में रिकॉर्ड बढ़ोतरी और पैदावार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के अनुमानों के बावजूद खाद्य तेलों के आयात में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है। जनवरी में खाद्य तेलों का आयात 33 फीसदी उछल कर 16.61 लाख टन के नए रिकॉर्ड पर पहुंच गया है। यह सितंबर 2021 के बाद सबसे ज्यादा है। जनवरी 2022 की तुलना में जनवरी 2023 में आयात में 31 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस महीने सूरजमुखी तेल के आयात में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटने और ड्यूटी बढ़ने की आशंका से आयात में इतनी बड़ी उछाल आई है। भारत अपनी कुल जरूरत का करीब 65 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है।

खाद्य तेलों के उत्पादकों के संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, इससे पहले जनवरी 2022 में सबसे ज्यादा 12,70,728 टन वेजिटेबल ऑयल (खाद्य एवं गैर खाद्य तेल) का आयात हुआ था जो जनवरी 2023 में बढ़कर कुल 16,61,750 टन पर पहुंच गया है। बयान में कहा गया है कि तेल वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) 2022-23 के पहले तीन महीने (नवंबर 2022-जनवरी 2023) में वेजिटेबल ऑयल का आयात 30 फीसदी बढ़कर 47,73,419 टन पर पहुंच गया है। इसमें खाद्य तेलों की भागीदारी 47,46,290 टन रही है जबकि गैर खाद्य तेलों का आयात घटकर 27,129 टन रह गया है। एक साल पहले की इसी अवधि में कुल आयात 36,71,161 टन रहा था। तब 36,07,612 टन खादय तेल और 63,549 टन गैर खाद्य तेल का आयात हुआ था।

रूरल वॉयस से बातचीत में आयात बढ़ने की वजह बताते हुए एसईए के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी वी मेहता ने कहा, “नवंबर-दिसंबर में सोया और सूरजमुखी तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत घटकर 1,400 डॉलर प्रति टन तक आ गई थी। इसी तरह पाम ऑयल भी 950-1,000 डॉलर प्रति टन पर आ गया था। इस वजह से आयातकों ने ज्यादा सौदे किए और आयात बढ़ाया। दूसरी वजह ये रही कि इस बात की आशंका थी कि पहली जनवरी से खाद्य तेलों के आयात पर ड्यूटी बढ़ सकती है जिससे भी आयात में तेजी आई। जनवरी में सूरजमुखी के तेल का आयात बढ़ने के पीछे वजह यह है कि रूस और यूक्रेन से मालवाहक जहाज आने-जाने के लिए काला सागर का जो कॉरीडोर है उसके फिर से बंद होने की आशंका थी। युद्ध की वजह से सप्लाई चेन पर असर पड़ा था जिससे दोनों देशों के पास सूरजमुखी का काफी स्टॉक पड़ा था। उन्होंने इसमें से काफी स्टॉक खाली किया है जिसकी वजह से भी अंतरराष्ट्रीय कीमतें घटी हैं। आमतौर पर सोयाबीन तेल की तुलना में सूरजमुखी तेल का अंतरराष्ट्रीय भाव करीब 50 डॉलर ज्यादा रहता है। अभी ठीक इसका उलटा हुआ है। सूरजमुखी के मुकाबले सोयाबीन का भाव ज्यादा है। इस वजह से जनवरी में सूरजमुखी तेल का आयात बढ़कर 4.61 लाख टन पर पहुंच गया है। यह हर महीने औसतन आयात किए जाने की तुलना में करीब तीन गुना ज्यादा है।”

तेल वर्ष 2021-22 में औसतन 1.61 लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात देश में किया गया था। एसईए का कहना है कि सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के आयात में उछाल पाम ऑयल के आयात को कम कर सकता है। इससे पाम ऑयल की कीमतें और घट सकती है। बी वी मेहता ने रूरल वॉयस से कहा, “खाद्य तेलों का आयात बढ़ने से तेल उद्योग भी हैरान है क्योंकि देश में सरसों एवं अन्य तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ा है। सरसों की नई फसल की आवक शुरू हो गई है। इस बार सरसों का बुवाई रकबा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है जिससे उत्पादन भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की संभावना है। खाद्य तेलों का आयात बढ़ने का नतीजा किसानों को भुगतना पड़ेगा क्योंकि इससे घरेलू कीमतों पर दबाव बढ़ेगा। अभी सरसों का भाव 5,900 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा है। फिलहाल इसकी कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,450 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा है। अभी नई फसल आने की शुरुआत हुई है। अगले 15-20 दिन में जब इसकी आवक तेज हो जाएगी तो कीमतें नीचे आएंगी।”

खाद्य तेलों के बढ़ते आयात पर चिंता जताते हुए बी वी मेहता ने कहा कि ऐसा होना नहीं चाहिए। भारत को डंपिंग ग्राउंड के रूप में तब्दील किया जा रहा है। इसे रोकने के लिए उन्होंने ड्यूटी बढ़ाने की भी मांग की। हालांकि, उन्हें अभी ऐसा होता नहीं दिख रहा है लेकिन उनका मानना है कि अगर सरसों की कीमत एमएसपी से नीचे आ गई तो सरकार पर ड्यूटी बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा। सरकार की चिंता महंगाई को लेकर भी है कि अगर ड्यूटी बढ़ाई तो महंगाई पर इसका असर पड़ सकता है। एसईए ने तेल वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में आरबीडी (रिफाइंड) पामोलिन के आयात में भी तेज वृद्धि होने पर चिंता जताई है। इस अवधि में यह 20 फीसदी बढ़कर 6.3 लाख टन पर पहुंच गया है। इसकी वजह से  घरेलू रिफाइनरियां प्रभावित हो रही हैं। आयात बढ़ने की वजह से देश का पाम रिफाइनिंग उद्योग अपनी क्षमता का बहुत कम इस्तेमाल कर पा रहा है।

बुवाई के अंतिम आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा रबी सीजन (2022-23) में 98.02 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई है जो 2021-22 के 91.25 लाख हेक्टेयर की तुलना में 6.77 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। सरसों की बुवाई रकबे का यह नया रिकॉर्ड है। पिछले रबी सीजन में भी बुवाई का नया रिकॉर्ड बना था जिसकी वजह से पैदावार ने भी नया रिकॉर्ड बनाया था। 2021-22 में 117.46 लाख टन की र‍िकॉर्ड पैदावार हुई थी। अपने दूसरे अग्रिम अनुमान में सरकार ने सरसों एवं रेपसीड का उत्पादन इस साल बढ़कर 128 लाख टन रहने का अनुमान लगाया है। जबकि तिलहन फसलों का कुल उत्पादन 4 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया है।  

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