पद्मश्री किसान: नारियल अम्मा से ग्रीन वॉरियर तक, जानिए किन किसानों को मिला सम्मान 

खेती-किसानी में कामयाबी की इबारत लिखने वाले कई किसान होंगे पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित

पद्मश्री किसान: नारियल अम्मा से ग्रीन वॉरियर तक, जानिए किन किसानों को मिला सम्मान 

समाज में विशिष्ट योगदान के लिए इस साल 132 लोगों को पद्म पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। इनमें 5 पद्म विभूषण, 17 पद्म भूषण और 110 पद्म श्री पुरस्कार दिए जाएंगे। राष्ट्रपति के द्वारा प्रदान किए जाने वाले इन पुरस्कारों से कई गुमनाम हस्तियों को भी सम्मानित किया जाएगा, जिन्होंने अपने अपने क्षेत्रों में विशेष योगदान दिया है। इनमें खेत-किसानी में पहचान बनाने वाले कई किसान भी शामिल हैं। ऐसे किसान जिन्होंने तमाम मुश्किलों से पार पाकर कृषि के क्षेत्र में कामयाबी की इबारत लिख दी। आइए जानते हैं कौन से हैं ये पद्मश्री किसान

नारियल अम्मा चेलाम्मल

दक्षिण अंडमान में रहने वाली के. चेलाम्मल को नारियल अम्मा के नाम से जाना जाता है। 69 वर्षीय नारियल अम्मा जैविक खेती करती हैं। उन्होंने अपनी 10 एकड़ जमीन में इंटरक्रॉपिंग विधि से अनानास, केले, लौंग और अदरक की खेती की 150 से ज्यादा किसानों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। 

नारियल अम्मा प्रति वर्ष 27,000 से अधिक नारियल का उत्पादन करती हैं। उनके दो हेक्टेयर जमीन में नारियल के बागान हैं। इनमें अंडमान की खास लंबी किस्म के 460 पाम के पेड़ हैं। उन्होंने सिर्फ कक्षा छह तक पढ़ाई की, लेकिन पिछले पांच दशकों से लीक से हटकर खेती कर रही हैं। उन्होंने नारियल और ताड़ के पेड़ों को होने वाले नुकसान से बचाने के प्रभावी और सस्ते उपाय खोजे हैं। 

सत्यनारायण बेलेरी

केरल के कासरगोड में रहने वाले किसान सत्यनारायण बेलेरी पारंपरिक धान की किस्मों के संरक्षण पर काम करते हैं। उनके द्वारा विकसित राजकयमा धान को कम पानी की आवश्यकता पड़ती है और अब कई राज्यों में यह धान उगाया जाता है। पिछले 15 वर्षों की कड़ी मेहनत से उन्होंने बीजों के संरक्षण की पॉलीबैग विधि विकसित की है। वह धान की 650 से अधिक पारंपरिक किस्मों का संरक्षण कर रहे हैं।

सत्यनारायण बेलेरी केरल के सुदूर नेट्टानिगे गांव में धान की खेती करते हैं। उन्हें इलाके के लोग सीडिंग सत्य के नाम से भी जानते हैं। वे धान की पारंपरिक किस्मों को संरक्षित करने के लिए बीज बैंक तैयार कर रहे हैं। उन्होंने अनुसंधान केंद्रों को चावल की 50 किस्में उपलब्ध कराकर और किसानों को मुफ्त चावल के बीज वितरित कर धान अनुसंधान और संरक्षण को बढ़ावा दिया।  

सरबेश्वर बसुमतारी

असम के 61 वर्षीय किसान सरबेश्वर बसुमतारी को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। वह मिक्स्ड इंटिग्रेटेड फार्मिंग से नारियल, संतरे जैसे फसलों की खेती करते हैं। बासुमतारी एक दिहाड़ी मजदूर से किसान बने और उन्नत खेती की मिसाल बन गए। उन्होंने अपने अनुभव को अन्य किसानों तक पहुंचाया, जिससे अन्य लोगों की दक्षता तो बढ़ी ही साथ ही उन्हें अपनी आजीविका बढ़ाने में भी मदद मिली।

बसुमतारी एक आदिवासी किसान हैं जिन्होंने जो मिश्रित एकीकृत कृषि को अपनाया। उन्होंने नारियल के साथ संतरे, धान, लीची और मक्का की खेती की। औपचारिक शिक्षा से वंचित रहे बसुमतारी कभी दिहाड़ी मजदूर थे। लेकिन अपनी लगन और मेहनत के बूते खेती में सफलता की मिसाल बन गए। 

संजय अनंत पाटिल

गोवा के किसान संजय अनंत पाटिल एक ग्रीन वॉरियर हैं, जिन्हें लोग ‘वन-मैन आर्मी’ कहते हैं। उन्होंने 10 एकड़ की बंजर भूमि को हरे-भरे प्राकृतिक खेत में बदल दिया है। 58 वर्षीय नवोन्वेषी किसान संजय अनंत पाटिल को कृषि में उनकी विशिष्ट सेवा के लिए भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री के प्राप्तकर्ता के रूप में घोषित किया गया है।

डॉ. राम चेत चौधरी

यूपी के काला नमक धान को नवजीवन देने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ. राम चेत चौधरी को भारत सरकार ने पद्मश्री देने की घोषणा की है। डॉ. चौधरी लंबे समय से 'काला नमक' चावल के संरक्षण और संवर्धन के काम में जुटे हुए हैं। उनकी मेहनत और प्रयासों के चलते काला नमक चावल आज दुनिया भर में पहुंच रहा है। 

काला नमक चावल को नकदी फसल के रूप पहचान दिलाने में कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामचेत चौधरी ने अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से आज पूर्वांचल के 11 जिलों में 80 हजार हेक्टेयर में नमक धान की खेती हो रही है। उन्होंने पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में 10 साल और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय पूसा, बिहार में 5 साल सेवाएं देने के अलावा संयुक्त राष्ट्र के साथ 40 से ज्यादा देशों में कृषि क्षेत्र में सेवाएं दीं। वे सेवानिवृत्ति के बाद गोरखपुर लौटे और कालानमक धान के संरक्षण संवर्धन में जुट गए। 

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