प्रतिबंधों के बावजूद काबू में नहीं आ रही गेहूं की महंगाई, स्टॉक लिमिट लगने के बाद 300 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़े दाम

गेहूं के बढ़ते घरेलू दाम को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने 12 जून, 2023 को स्टॉक लिमिट लगाने का फैसला किया था और गेहूं व्यापारियों, आटा मिलों और गेहूं के उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को स्टॉक की नियमित जानकारी देने का निर्देश दिया था ताकि जमाखोरी पर पाबंदी लगाई जा सके। साथ ही खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत 28 जून से केंद्रीय पूल से गेहूं की ई-नीलामी भी की जा रही है। इसके बावजूद गेहूं के भाव 250-300 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ गए हैं।

प्रतिबंधों के बावजूद काबू में नहीं आ रही गेहूं की महंगाई, स्टॉक लिमिट लगने के बाद 300 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़े दाम
2600 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचा गेहूं का थोक भाव।

गेहूं की महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार जो भी कदम उठा रही है उसका तत्काल फायदा तो मिलता दिखता  है मगर लंबी अवधि में फिर वही ‘ढाक के तीन पात’ वाली स्थिति हो जा रही है। गेहूं के बढ़ते घरेलू दाम को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने 12 जून, 2023 को स्टॉक लिमिट लगाने का फैसला किया था और गेहूं व्यापारियों, आटा मिलों और गेहूं के उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को स्टॉक की नियमित जानकारी देने का निर्देश दिया था ताकि जमाखोरी पर पाबंदी लगाई जा सके। साथ ही खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत 28 जून से केंद्रीय पूल से गेहूं की ई-नीलामी भी की जा रही है। इसके बावजूद गेहूं के भाव 250-300 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ गए हैं।

मौजूदा समय में सामान्य किस्म के गेहूं का औसत थोक भाव 2500-2600 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुका है। केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय के उपभोक्ता मामले विभाग के आंकड़े भी इसकी पुष्टि कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2 अगस्त को अखिल भारतीय स्तर पर गेहूं का थोक भाव 2632.71 रुपये प्रति क्विंटल रहा जो एक महीने पहले 2611.83 रुपये प्रति क्विंटल था। एक साल पहले की बात करें तो भाव में 6.17 फीसदी की वृद्धि हुई है। एक साल पहले गेहूं का भाव 2479.80 रुपये प्रति क्विंटल था।

मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी रूरल वॉयस से कहते हैं, “स्टॉक लिमिट लगने से पहले तक गेहूं की कीमत 2200-2300 रुपये प्रति क्विंटल तक थी जो अब 12-15 फीसदी बढ़कर 2500 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर पहुंच गई है। इसकी वजह यह है कि बाजार में माल कम आ रहा है। किसान तो पहले ही अपनी फसल बेच चुके हैं। जिन व्यापारियों के पास स्टॉक है वे बहुत कम मात्रा में गेहूं बाजार में उतार रहे हैं। वे अपना माल बचा कर रख रहे हैं और कीमतों में और ज्यादा वृद्धि होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके। स्टॉक लिमिट लगाने जैसे फैसलों से तत्काल राहत तो मिलती है लेकिन लंबे समय में बाजार पर उसका नकरात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि बड़े व्यापारी या फिर आटा मिलों जैसे बड़े खरीदार इससे डर जाते हैं और वे अपना माल छुपाने की कोशिश करते हैं। जब स्टॉक लिमिट लगी थी तो गेहूं के भाव में 200-250 रुपये प्रति क्विंटल की कमी देखी गई थी। तब लगा था कि सरकार का यह कदम सही है लेकिन लंबे समय में ऐसे फैसले बाजार के सेंटीमेंट पर असर डालते हैं।”

योगेश द्विवेदी के मुताबिक, “बाजार का सीधा सिद्धांत यह है कि जब भी किसी चीज पर नियंत्रण की कोशिश होती है तो उसका लंबे समय में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और व्यापारी चोरी-छिपे उसकी जमाखोरी करते रहते हैं। भले ही स्टॉक लिमिट लगा दी गई है और स्टॉक की नियमित जानकारी देने का निर्देश दिया गया है लेकिन जमाखोरी करने के बहुत सारे तरीके हैं। सभी की निगरानी करना सरकारी तंत्र के लिए न तो संभव है और न ही इस पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सकती है। बाजार में जब तक यह नहीं होता है कि बड़ा स्टॉक आने वाला है तब तक कीमतों में ज्यादा कमी की गुंजाइश नहीं होती है।”

यह पूछने पर कि ई-नीलामी के जरिये केंद्रीय पूल से गेहूं की बिक्री खुले बाजार में की जा रही, उसका असर गेहूं के दाम पर क्यों नहीं पड़ रहा है, द्विवेदी का कहना है कि एफसीआई के गेहूं की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं होती है इसलिए आटा और मैदा मिलों को छोड़कर बाकी बड़े खरीदार उसे लेने से कतराते हैं। इसके अलावा, अगर एफसीआई का गेहूं बाजार की तुलना में सस्ता मिल रहा होता है तभी खरीदार उसकी ओर रुख करते हैं।     

पिछले साल फरवरी में जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तो आपूर्ति प्रभावित होने से अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बढ़ोतरी होने लगी जिसका असर घरेलू बाजार पर भी पड़ा। घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के लिए पिछले साल मई में केंद्र सरकार ने सबसे पहले गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई। इसकी वजह से तीन-चार महीने तक घरेलू कीमतें स्थिर रही मगर सितंबर 2022 से दाम में फिर बढ़ोतरी होने लगी और यह बढ़ते-बढ़ते जनवरी 2023 में 3,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को पार कर गई। जबकि खुदरा में भाव 3,800 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए। इसके बाद सरकार ने जनवरी 2023 को खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत केंद्रीय पूल से 50 लाख टन गेहूं की बिक्री निजी व्यापारियों, आटा मिलों और गेहूं उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को करने का फैसला किया।

ओएमएसएस के तहत केंद्रीय पूल से 31 मार्च, 2023 तक 35 लाख टन गेहूं की बिक्री की गई। सरकार के इस कदम से गेहूं का थोक भाव घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,125 रुपये प्रति क्विंटल के करीब आ गया। खुदरा भाव भी घटकर 2,800 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए मगर आटा और ब्रेड जैसे गेहूं के उत्पादों की कीमतों में ज्यादा कमी नहीं आई। गेहूं के दाम बढ़ने पर आटा, ब्रेड और बिस्कुट के दाम जिस रफ्तार से बढ़े थे दाम में कमी आने पर कंपनियों ने उस हिसाब से उपभोक्ताओं को कीमतों में कटौती की राहत नहीं दी। दाम घटने का फायदा उपभोक्ताओं को तो ज्यादा नहीं मिला, किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि मार्च में गेहूं की नई फसल आने से दाम एमएसपी से भी नीचे 1800 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे।

सीधे शब्दों में कहें तो उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत देने के नाम पर सरकार ने किसानों का नुकसान किया और सारा फायदा व्यापारी उठा ले गए। इस समय भी ऐसा ही हो रहा है और व्यापारी कीमतों में खेल कर मुनाफाखोरी कर रहे हैं।             

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